पत्रकार उमेश डोभाल को 25 मार्च 1988 को शराब माफियाओं द्वारा मरवा दिया गया था। उनकी 33वीं पुण्यतिथि पर उमेश डोभाल को याद करते हुए उनकी दो कवितायें।
अब मैं मार दिया जाऊंगा
– उमेश डोभाल
मैंने जीने के लिए हाथ उठाया
और वह झटक दिया गया
मैंने स्वप्न देखे
और चटाई की तरह अपनों के बीच बिछा
उठा कर फेंक दिया गया
अंधेरी भयावह सुरंग में …
रोशनी
मैंने वहां भी रोशनी तलाश की
अब मैं मार दिया जाऊंगा
उन्हीं के नाम पर
जिनके लिए संसार देखा है मैंने
बसंत दस्तक दे रहा है
– उमेश डोभाल
सरपट भागते घोड़े की तरह नहीं
अलकनंदा के बहाव की तरह
धीरे धीरे आयेगा बसंत
बसंत की पूर्व सूचना दे रहे हैं
मिट्टी पानी और हवा से ताकत लेकर
तने से होता हुआ
शाखाओं में पहुंचेगा बसंत
अंधेरे में जहां आंख नहीं पहुंचती
लड़ी जा रही है एक लड़ाई
खामोश हलचलें
अंदर ही अंदर जमीन तैयार कर रही हैं
जागो! बसंत दस्तक दे रहा है