नैनीताल समाचार डैस्क
आज भगत सिंह शहीद दिवस है और संयोगवश पिछले चार माह से पूरे देश के किसान कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत हैं। इसी तरह सन् 1907 में भी ‘पंजाब कोलोनाइजेशन एक्ट’ की खिलाफत किसान कर रहे थे। 1907 के इस आंदोलन में बांके दयाल जी की ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ कविता बहुत प्रसिद्ध हुई। भगत सिंह और उनके साथी इस कविता को गीत के रूप में अकसर गाया करते थे। भगत सिंह को याद करते हुए ‘नैनीताल समाचार’ भावानुवाद सहित मूल कविता को यहाँ प्रस्तुत कर रहा है।
पगड़ी सम्भाल जट्टा
पगड़ी सम्भाल जट्टा
पगड़ी सम्भाल ओ।
हिंद सी मंदर साडा, इस दे पुजारी ओ।
झींगा होर अजे, कद तक खुआरी ओ।
मरने दी कर लै हुण तूं, छेती तैयारी ओ।
मरने तों जीणा भैड़ा, हो के बेहाल ओ।
पगड़ी सम्भाल ओ जट्टा?
मन्नदी न गल्ल साडी, एह भैड़ी सरकार वो।
असीं क्यों मन्निए वीरो, इस दी कार वो।
होइ के कटे वीरो, मारो ललकार वो।
ताड़ी दो हत्थड़ वजदी,
छैणियाँ नाल वो।
पगड़ी सम्भाल ओ जट्टा?
फ़सलां नूं खा गए कीड़े।
तन ते न दिसदे लीड़े।
भुक्खाँ ने खूब नपीड़े।
रोंदे नी बाल ओ।
पगड़ी सम्भाल ओ जट्टा?
बन गे ने तेरे लीडर।
राजे ते ख़ान बहादर।
तैनू फसौण ख़ातर।
विछदे पए जाल ओ।
पगड़ी सम्भाल ओ जट्टा?
सीने विच खावें तीर।
रांझा तूं देश ए हीर।
संभल के चल ओए वीर।
रस्ते विच खाल ओ।
पगड़ी सम्भाल ओ जट्टा ?
(भावानुवाद : पवन राकेश )
पगड़ी सम्भाल जट्टा
पगड़ी सम्भाल ओ
हिन्द है मंदिर हमारा, इसके हो पुजारी तुम
उलझने बहुत हैं, रहोगे कब तक परेशान तुम
मरने से बदतर हुआ है जीना, इतने हो बेहाल तुम
जल्दी कर लो अब मरने की तैयारी तुम
पगड़ी संभाल …
नहीं मानती बात हमारी, बहुत बुरी सरकार ये
फिर क्यों माने हम इसकी कोई बात रे।
बंधे हाथ सांकलों से नहीं बजती इनसे ताली रे
दो ललकार! भरो हुंकार, करो कटने की तैयारी रे
पगड़ी सम्भाल — —
फसलों को खा गए कीड़े, रोते हैं बच्चे हमारे
भुखड़ों ने तन पर नहीं छोड़े चीथड़े।
पगड़ी संभाल ….
जाल बिछाने और तुझे फंसाने, आगे कर दिए नेता
लगा है सीने पर राजा और खान बहादुर का तमगा
पगड़ी सम्भाल —
सीने में खाना है तीर, तू रांझा और देश है हीर
कांटों भरा है रास्ता, चलना है संभल कर तुझे ओ वीर
पगड़ी संभाल …