मृगेश पांडे
विकेन्द्रित विकास में “सबका साथ हो सबका विकास “की अवधारणा उत्तराखंड को बाकी विकसित राज्यों तक पहुँचाने में जनता की भागेदारी के सन्देश के प्रदर्शन प्रभाव का इंतज़ार कर ही रही थी कि आंदोलनजीवी आ पड़े बीच सड़क.इनके लिए नंदप्रयाग -घाट की उन्नीस किलोमीटर रस्ते के डेढ़ लेन चौड़ीकरण जैसा मुद्दा महत्वपूर्ण हो चला था . चुनावी साल के इस आखिरी बजट में सरकार ‘काव कड़क न माँख भड़क’ जैसा माहौल चाहती थी. इसके लिए मुकम्मल इंतजाम चाक चौबंद थे.सो “खायी के जाणो भूखेकि बात” वाले चौकन्ने
अधिकारी पुलिस प्रशासन, सारा अमला, छोटे -बड़े अफसर ग्रीष्म काल की चंद दिनों की राजधानी का रास्ता रोके गाँव वालों-औरतों-बूढ़ों को समझा चुके,उन्हें मनाने की हरमुमकिन कोशिशें कीं.ऐसे तकनीकी आधार व गुणा भाग बताये समझाये कि ये सड़क चौड़ी होनी नामुमकिन है. पर यहाँ ठहरी गाँव की जिद्दी खोपड़ी. वह न कुछ समझी न मानी.हो गया शुरू “गोरु जै ब्याण बहौड़क जै डुडाट”.
बजट पेश होने से सत्तासी दिन पहले से इन गाँव वालों की जिद थी कि सड़क चौड़ी हो . इसे ले पचास दिन से आमरण अनशन में स्थानीय जनप्रतिनिधियों की आवाजें भी आदिबद्री की घाटी में गूंजने लगीं थीं . बजट सत्र था सो पुलिस प्रशासन चाक चौबंद होना ही था . दिवालीखाल से भराड़ीसैण तक सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम किए गये थे और दुगथमासेंण, जंगल चट्टी में बैरियर भी लग गये. बल प्रयोग हुआ, धक्का मुक्की हुई. जब आंदोलन ही जीवन हो तो बिना चोट चपट लगे मजमा कैसे जमे. लाठी -वाठी भी पड़ी. बंद कर फिर छोड़ देने का विधान हुआ. गहन जांच के आदेश भी.बात खतम यादें रह गईं.
बजट अभिभाषण में प्राथमिकता दी जा रही थी कि अब रहे बचे पहाड़ के सात सौ पैसठ गाँव सड़क से जुड़ जायेंगे. पर बजट बनाने वालों को नंदप्रयाग घाट के स्थानीय निवासियों की आवाज सुनाई ही ना दी . उनकी किस्मत में तो पुलिस का बल प्रयोग था और उन्होंने झेलना था सरकारी कोप . सुनना था आंदोलनजीवी का जुमला. विरोध के स्वरों को नये फ़तवे देने का शगल चलन में आता जा रहा है . खैर छोड़िये ऐसी एक आध घटना से सनसनी फैलती है. लोग बागों का ध्यान बंटता है.सरकारी कर्मकांड के आयोजन में कुछ आदर्श नीति वाक्य सुनने समझने का मनोबल बनता है. फिर सब कुछ वैसे ही होता है जैसा चाहा जा रहा था . बजट के अभिभाषण में भी ‘सुशासन’ प्रकट अधिमान के क्रम में सबसे पहले थाप दिया गया था .सो बात सड़क से शुरू हुई सो उसी पर चलेगी.
बताया जा रहा है कि उत्तराखंड के 15745 राजस्व गांवों में से 13186 गांव अभी तक सड़क से जुड़ चुके हैं. ताजा ताजा 1794 गांवोँ के लिए सड़क मंजूर हो चुकी हैं और बाकी बचे 765 गांव तो उनका पेपर वर्क चल रहा है.इसी साल 104 सड़कों का काम पूरा हो चुका है तो 2522 कि.मी सड़कों का नवनिर्माण हुआ है एवं 2700 कि.मी. का पुनः निर्माण भी हुआ.241 पुल भी बने. सेतु भारतम परियोजना में काशीपुर में एन एच 74 पर दो आरओबी बने. वहीं आल वैदेर रोड की 889 कि. मी. परियोजना में 380 कि. मी.सड़क पूरी बन चुकी. इन सबके साथ ही साथ 540 कि. मी. सड़कों का चौड़ी करण हुआ.सिद्ध हुआ कि सड़क बनना तो सरकार की प्राथमिकता है.इसी से अंतरसंरचना मजबूत होती है.अवस्थापना सुविधा जुटती है. समवेशी विकास होता है. सुदूर के सुविधा विहीन गाँव शहर के बड़े बाजार से जुड़ते हैं. बाजार की मांग -पूर्ति की ताकतों का गाँव की स्वनिर्भर प्रणाली और कच्चे माल पर असर पड़ता है. लोक सम्पदा का विदोहन संभव हो पाता है. अब विकास के लिए फिर से गाँव की ओर देखने का समय आ गया है. त्वरित विकास ऐसे ही होता है. पूंजी वादी मानकों पर तय उपभोग, बचत, विनियोग इसी घेरे से वृद्धि दरों को खींच कर ला पाने का मॉडल रचता है.इसे आत्मनिर्भर विकास के घेरे में ढालने का जुगाड़ सरकार करती है. सारे कर्म कांड होते हैं. स्वस्ति वचन. अथ : विनोयोगे.सड़क से उपजा सुपर मल्टीप्लायर. वृद्धि विकास की अभीष्ट अभिलाषा सिद्ध कर दिया जाता है.
उत्तराखंड में वृद्धि की रफ्तार बजट अभिभाषण में 2016-17 में 9.83 रही तो 2019-20 में सिमट कर 4.3% बताई गई. अभी यह शून्य से 6% तो कम होगी ही. सबको मालूम है बीमारी लगी थी. दस साल पहले के उत्तराखंड में सकल घरेलू उत्पाद में खेती की हिस्सेदारी करीब 15% थी जो पिछले साल सिमट कर 10% रह गई. पिछले दस सालों में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी थोड़ी बढ़ी . वृद्धि दर ह्रासोन्मुख रही पर आर्थिक सर्वेक्षण प्रति व्यक्ति आय के बढ़ने के आंकड़े जुटाता है.यह बताता है कि लगभग 6%की वृद्धि उत्तराखंड में पिछले सालों में दिखाई दी है.अभी सकल घरेलू उत्पाद दो लाख त्रेपन हजार छः सौ छियासठ रूपया आंकलित किया गया है जिसके आधार पर राज्य की प्रति व्यक्ति आय दो लाख दो हजार आठ सौ पिचानवे रुपये वार्षिक अनुमानित हुई .
इन सबके साथ एफबीआरबी एम एक्ट के अंतर्गत सरकार द्वारा जारी मध्यावधि राजकोषीय नीति के आगम -व्यय के हर पूर्वानुमान गलत साबित हुए . कारण यह है कि बजट न तो कमाई कर पा रहे और न ही खर्च.बाजार की उधारी और कर्जे बढ़ते ही जा रहे . इसी साल दस हजार करोड़ रुपये का कर्ज लेना पड़ेगा और चौदह सौ करोड़ की बाजार उधारी भी चुकानी होगी. कुल मिला इस वित्त वर्ष में अड़सठ हजार करोड़ का कर्ज सर पर होगा. यह उधार ले कर ही सरकार अपने कर्मचारियों को वेतन और पेंशन के साथ अन्य खर्चे करती है.अस्तु, उत्तराखंड अब उन राज्यों में है जो पुराने उधार को चुकाने के लिए नया उधार लेने के विषम दुष्चक्र में फंस गई है. कैग की रपट भी इस पर आपत्ति लगा चुकी है.
फिर भी अवस्थापना विकास के रोडमैप को कृषि व बागवानी, जैविक खेती, जड़ी बूटी, विपरण, प्रसंस्करण से जोड़ते हुए बजट में यह परिकल्पना स्थापित की गई कि इससे किसानों की आय दुगनी हो जानी है. इसके लिए एकीकृत आदर्श कृषि ग्राम योजना और मुख्य मंत्री राज्य कृषि विकास योजना पर बहुत भरोसा जताया गया है.साथ ही रोजगार हेतु सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों में सरकार ने अप्रैल 2017 से अब तक तीन हज़ार दो सौ पचास करोड़ रुपये का पूंजी निवेश किया है. जिनसे यह उम्मीदें जगीं कि प्रदेश में करीब अस्सी हजार लोगों को काम मिला . पचास के आस पास बड़े उद्यम लगे जिनमें दो हजार पांच सौ पचास करोड़ रुपये का विनियोग हुआ और सात आठ हजार लोगों ने रोजगार पाया. केंद्र पोषित पी एम कौशल विकास योजना 2 में करीब पचास हजार पंजीकरण हुए जिनमें लगभग दस हजार युवाओं को रोजगार के अवसर मिले.
अभी उत्तराखंड में लगभग 3 लाख कामगार हैं तो 8.65 लाख पंजीकृत बेकार हैं. कोविड से लौटे प्रवासियों में भी लगभग बत्तीस हजार युवाओं ने पंजीकरण कराया.दुविधा और आश्चर्य ये भी उपजता है कि एक ओर जहां प्रवास की घनघोर चिंताएं उठा इनके समाधान पर खूब बहस बाजी होती रहीं हैं वहां यह पक्ष हाशिये पर है कि कल कारखानों में जो लोग काम पा रहे उनका अधिकांश ठेके पर होता है और वह श्रम शक्ति उत्तराखंड से बाहर से काम की तलाश में यहाँ आती है. असंगठित क्षेत्र में तो तीन चौथाई से ज्यादा अर्धकुशल व अकुशल मजदूर कई सौ से ले कर हजार कि. मी. दूर से यहाँ आ काम पा जाता है. तराई भाबर के साथ पहाड़ में भी रोजगार से जनित आय में इनकी प्रबल भागीदारी हो चुकी है . धीरे धीरे इनके आधार और वोटर पहचान भी यहीं के बन चुके हैं .इनके रहने के ठौर अस्थाई टेंट, दुकान की दरें हैं जहां समूह में रह ये साथ खाते और त्योहारों में व फसल के टाइम अपने देश लौटने के लिए बचाते भी हैं. खेती के लिए सब्जी के लिए बटाई पर जमीन लेने वालों ने अस्थाई झोपडी डाल जानवर भी पाल रखे हैं. इनकी संख्या उन उत्तराखंड वासियों से कई कई गुना ज्यादा है जो कोरोना काल में अपने हिस्से का भूगोल देखने पहाड़ आने के लिए मजबूर हुए थे और देखा देखी अपने कुछ हुनर दिखा कमाने खाने भी लगे.अब वापस भी जा रहे.
रोजगार की कमी विरोधियों और विपक्ष के लिए एक बड़ा मुद्दा है. तल्ख़ हक़ीक़त है कि सरकारी विभागों और सरकारी उपक्रमों में पेंसठ हजार से ज्यादा पद रिक्त हैं. शिक्षा विभाग में बारह हजार से ज्यादा रिक्तियाँ हैं जिसमें प्राथमिक विद्यालय की लगभग तीन हजार भर्तियों पर हाई कोर्ट ने रोक भी लगायी है. जून 2020 में जारी इस आदेश के हिसाब से अभी कोई नया पद भी सृजित नहीं किया जा सकता.तमाम विभाग अपनी क्षमता का बेहतर प्रदर्शन इसी लिए नहीं कर पा रहे कि अर्ध रोजगार संतुलन से वह जूझ रहे हैं. भाड़े पर एडहॉक रख सरकार काम चला रही है. बेकारी चक्रीय भी है और तकनीकी भी. जो कुशल हैं समर्थ हैं वह धीरे धीरे प्रवासी की श्रेणी में आ जा रहे हैं. इसलिए अंतर्संरचना के विकास को प्राथमिकता देनी होगी जो दीर्घ काल में रोजगार की संभावना पैदा करेगी.
अंतर संरचना के विकास में पर्यावरण का हित चिंतन साधे रखने के प्रभावी तंत्र को साधे रखने का जिक्र बजट में हुआ. पर प्राकृतिक आपदाओं पर किस का नियंत्रण. निर्माण में सड़क प्राथमिक है जिसे बनाने में बड़ी सावधानी और कई मंत्रालयों व विभागों की अनुमति लेनी पड़ती है. धरती को छिलने खुदने धमाकों से बचाना पड़ता है पर उन्हें तो विकास के साइड इफ़ेक्ट मान लिया गया है .पर्यावरण के मानकों के बावजूद डायनामाइट से चट्टान उड़ाए बिना समतल सड़क कैसे बन सकती है? हाँ,जब कभी मलवे से ये अवरुद्ध होगी तो बुलडोज़र तैनात मिलेगा. उसके ड्राइवर का मोबाइल नंबर भी सड़क के किनारे खड़े बोर्ड में होगा. आपको हक है कि उसे फोन कर बुला सकें. पहाड़ में बीएसएनएल की प्रभावी सेवाएं हैं.नये तरीके अपना कर अब आपदा से बचने की फिजियो थेरेपी में सुधरी तकनीक है एसडीआरएफ. जो चारधाम के पर्यटकों के साथ एडवेंचर टूरिस्ट व ट्रैकर्स की यात्रा को सुगम, सुरक्षित व सुविधाजनक बनाएगी. “मेरी यात्रा” ऍप लॉन्च कर दिया गया है. बाकी गाड़ गधेरों में रहने वालों के लिए दो हज़ार पांच सौ लोगों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है . जिलों और तहसीलों में एक सौ अस्सी सेटेलाइट फोन रखे गये हैं. तहसील और थाना स्तर पर ड्रोन तैनात होंगे. ढूंढने खोजने के यँत्र उपकरण, रात में समुचित प्रकाश और बचाव के बाकी तामझाम को तहसील स्तर पर एकबट्या दिया जाना है. साथ ही मौसम की सूचनाओं से परिचित होने के लिए कई स्थानों में आटोमेटिक वैदर स्टेशन बनेंगे. और भी तकनीकी सुधार हैं जैसे 25 सरफेस फील्ड ऑब्जरवेटरी,28 रेन गेज और 16 स्नो गेज उपकरणों का जमावड़ा. फिर भूकंप के खतरों से बचने और आपदा से होने वाली क्षति को न्यूनतम करने के लिए 184 भूकंप की पूर्व चेतावनी देने वाले केंद्र जो आईआईटी रुड़की की मदद से लगाए जाएंगे.मुक्तेश्वर में डॉपलर राडार की स्थापना भी होगी.सड़क चलती सब बाधाऐं दूर हो जाएंगी तो प्रबल प्रयास के आयोजन होंगें.
पिछले बरस तक बजट सत्र में लोकरंगों की विविध छटा देखने को मिली थीं. ढोल दमाऊ रण सिंघों का निनाद के साथ पारम्परिक परिधान में सजे लोक नर्तक गोल घेरे में नाचते एक दूसरे के साथ कई आकृतियाँ बनाये थिरकते ढाल तलवार का करतब दिखाते , पंडितों के समवेत मंत्र स्वर, गाँव गाँव से स्थायी राजधानी की मृगतृष्णा से आकर्षित हो जुट गये लोगबाग और इन सब के बीच कुछ दिन के लिए पर्यटन विकास का कोरम पूरा करते किसम किसम की टोपी वेश भूषा धारण किए जनप्रतिनिधियों के साथ आला अफसरों व उनके मुंहलगों का पूरा अमला जो इस वार्षिक कर्मकांड की अलग छाप छोड़ता था. पूर्वाग्रह तो हमेशा के हैं कुर्सी में जमे वाह वाह का राग अलापेंगे और इसे पाने के जुगाड़ वाले हाय हाय का. पर इस बार ऐसा कुछ ज्यादा न हुआ.समस्याओं को सुलझाने की राह जो दिख रही थी.
वैसे ई -गवर्नेंस के साथ खेती, बगीचा, सहकारिता, उद्योग, शिक्षा सहित विविध क्षेत्रों के कुल जमा दो सौ तिरासी फैसले और परस्पेक्टिव प्लान सदन में रखे गये. भराड़ीसैण के बजट सत्र में जो चुनावी साल की गहमा गहमी के बीच आम जन के लिए कई छोटी मोटी सौगात पा जाने का अवसर व सुविधा देता है विपक्ष पहले यह कह कर बाहर हो लिया कि अभिभाषण में ना तो बेकारी की बात है न रह रह कर आक्रामक होती मंहगाई को काबू करने का जिक्र. विरोधियों ने भ्रष्टाचार का खूब हो हल्ला मचा रखा था तो महिला उत्पीड़न का भी पर ऐन वक्त पर उनका कन्नी काट जाना किसी सरपरस्त का समुचित दिशा निर्देशक न होना भी साफ जता रहा था . अगले दिन शून्य काल में विपक्ष से महंगाई को ले फिर कुछ बहस जरूर हुईं. पर आंदोलनजीवियों पर लाठीचार्ज का मुद्दा ही न उठा कहीं से.
विपक्ष की नजर में महंगाई सचमुच एक बड़ा प्रश्न बन गई थी .जिसके जवाब धटते जा रहे हैं. कोविड से पहले स्थितियां काबू में तो न थीं पर बेकाबू परिस्थिति में आर्थिक वृद्धि और विकास के पैमाने पर तोल मोल करना बंद हो गया था .वैसे भी लोग बाग इस तरह की आर्थिक बहस और चिंतन के आदी नहीं रहे उन्हें नये मीडिया के नित नव सोशियो पोलिटिकल लोचे भाने लगे हैं और भाएं भी क्योँ न दस में नौ खबरिया चैनल और बीस में उन्नीस राष्ट्रीय कहे जाने वाले अखबार उसी सुर का राग अलापने पै मजबूर हैं जिसमें मालिक का फायदा हो, विज्ञापन जुटे और भांड बन के ही सही दाल रोटी उसकी भी चले जिसके लिए कलम घिस सभी रंगों की सियाही दिखाना आज के हालात में मज़बूरी ही बन गई समझो. सो जो दोनों हाथ उलीच रहा उसके दरबार ना जाना तो प्रोटोकॉल का उल्लंघन ही हुआ.
चुनावी साल की रौनक है. लुभावन योजना बजट में न डाली तो बूथ को स्ट्रांग कर कार्यकर्त्ता का सम्मान जताने की भावुकता से वोट बटोरने की रणनीति स्यापा करने पर मजबूर हो जाएगी. इस बजट में समस्या बना राजस्व बढ़ाना. केंद्र ने भी कर बढ़ा कर आय-आगम जुटाना वाजिब नहीं पाया. पिछले साल से कुंडली जमाये महंगाई अब मंदी या स्टैगफ्लेशन की नहीं सरपट भागते मुद्रा प्रसार की दस्तक देने लगी है. अब देहरादून का अर्थ और संख्या निदेशालय 2012 से 2018 की तुलना कर ये बता दे कि उत्तराखंड में मंहगाई एक सौ अड़सठ फी सदी बढ़ गई.तो ताज़ा इकोनॉमिक सर्वे जताता है कि 2019 में नेशनल लेवल पर महंगाई मात्र 7.35 फी सदी बढ़ी तो उत्तराखंड में थोड़ा ज्यादा 7.82 फी सदी. सरकार भी क्या करे उसका नोन प्लान खर्चा सरपट भाग रहा. बहुत बहुत बड़ा आगम का हिस्सा तो वेतन- पेंशन में खप रहा. अब सुरसा की तरह तेल और गैस ने हर हफ्ते बढ़ लगातार मुंह खोले रखा है.तेल जब बढ़ता है तो पूरा मकड़जाल बुनता है. मुनाफे में सेंध लगाने से पहले निजी उपक्रमी वस्तु और सेवा की कीमत में इजाफा कर देते हैं तो सरकारी उपक्रम लम्बे समय घाटा खाने को मजबूर होते हैं. सरकार तेल पर टैक्स कम करे तो फिर आगम कहाँ से जुटे. इसके सिवा सिरफ लिकर ही विकल्प है जहां गुंजाइश हमेशा बनी रहती है.सो ले दे कर केंद्र से ग्रीन बोनस की मांग होगी.पंद्रहवें वेतन आयोग से मिलने वाली पर्यटन सम्बन्धी विकास की 8803 करोड़ रुपये की धनराशि पर तो भरोसा है ही.
अर्थव्यवस्था की सेहत तब सही हो जब रोग शोक के निवारण के प्रभावी इंतज़ाम किए जाएं. आज के हालात की यह मज़बूरी ही है कि स्वास्थ्य को ले वाजिब चिंताएं जताईं जाएं. सो केंद्र के मानक अस्पतालों में सुविधा और संसाधन के आधार पर तय कर प्रदेश में लागू किए जाने हैं. इन्हें आईपीएचएस का नाम मिला है. इस विधि में अस्पताल में डॉक्टरों की संख्या के आधार पर जरुरी सुविधाओं की वृद्धि की जाती है. हर बेड के हिसाब से नर्स और पैरा मेडिकल स्टॉफ की नियुक्ति होती है.यहाँ कैग की 2014 से 19 की लेखा परिक्षण रिपोर्ट को देख लेना जरुरी है जो बताती है कि राज्य सरकार ने सार्वजनिक स्वास्थय हेतु केंद्र की ओर से बनाये मानकों को सही तरीके से लागू नहीं किया है.जिला अस्पताल बस रेफेरल सेंटर की तरह काम कर रहे हैं. विशेषज्ञता, जाँच, ओपीडी, रेडियोलॉजी, मनोचिकित्सा, आपातकालीन सेवा, स्त्री रोग व प्रसूति के हर स्तर पर उपकरणों सहित डॉक्टर, नर्स, दवा, पेथोलॉजी जाँच की कमी है. प्रसव के दौरान मृत्यु और गलत उपचार की घटनाएं आम हैं.मरीज को ना तो डॉक्टर से परामर्श हेतु सही समय मिलता है और न ही मुफ्त औषधियां. जो औषधियां अस्पताल बाहर से क्रय करता है उनका भुगतान अक्सर लटक जाता है ऐसे में आवश्यक दवाओं की भी आपूर्ति अटकती है. स्वास्थ्य सेवाओं के स्तर में उत्तराखंड 21 राज्यों में 17 वें क्रम पर अटका है.
कैग की रिपोर्ट यह भी बताती है कि ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े दो निगमों यूपीसीएल की लापरवाही से उपभोक्ताओं को मिलने वाली सेवाएं बदतर हो गईं और पिटकुल ने सरकार के नियमों के हिसाब से लेबर सेस वसूल न कर राजस्व में भारी हानि कर दी.नियामक आयोग के नियमों के हिसाब से उपभोक्ता को एक माह के भीतर विद्युत् का कनेक्शन मिल जाना चाहिये.पर ऐसा नहीं हुआ और यूपीसीएल ने जुर्माना भी भरा.यूपीसीएल के पास मानव शक्ति की भारी कमी है. मात्र पेंतीस प्रतिशत कर्मचारियों के बूते व्यवस्था चल रही है. कैग की रपट में सामरिक महत्व की सीमांत सड़क की डीपीआर ही गलत बना दिए जाने का भी उल्लेख है. ऐसे ही खनन में जरुरी प्रपत्र ना होने से रॉयल्टी न वसूला जाना और समाज कल्याण विभाग में अपात्र लोगों को धनराशि दिए जाने के भी उदाहरण हैं.
केंद्र की तर्ज पर उत्तराखंड के बजट में भी कोई नया कर नहीं लगा है. राजस्व घाटा भी नहीं दिखाया गया है.शून्य राजस्व घाटे की दशा में खजाने को लुटाने के बजाय हाथ बांधे रखने का मन बनाया गया है. छोटी छोटी कई योजनाओं में वित्त पोषण किया गया है.खेती किसानी गाँव के विकास अवस्थापना की मजबूती पर जोर है. इसके साथ ही कई इंडस्ट्रियल पार्क बनाये जाने की बात भी रखी गई है.बजट का आदर्श सूत्र ‘आत्मनिर्भर उत्तराखंड’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ में निहित है.जिसकी शुरुवात कुछ आदर्श गढ़ती आशावाद जताती कविता से होता है जो बजट प्रस्तुत करते मुख्य मंत्री जी द्वारा पढ़ी गई :
“जीवन नहीं यह रणभूमि है, बस कर्म है तेरे हाथ में. बुरा दौर भी आया था, अच्छा दौर आएगा.”
अस्तु, अच्छे दौर के लिए फिलहाल बजट हेतु आगम में राज्य के हिस्से से जुटे करों का प्रतिशत लगभग बाईस है.इतनी ही धनराशि लोक ऋण से जुटेगी. केंद्रीय करों से राज्य को बारह प्रतिशत आय होगी. केंद्रीय सहायता सर्वाधिक छत्तीस प्रतिशत है. राज्य के कुल बजट में केवल पंद्रह प्रतिशत ही छोटी बड़ी परियोजनाओं के लिए शेष बचता है क्योंकि राज्य सरकार के कर्मचारियों के वेतन भत्ते और मजदूरी पर इसका लगभग तीस प्रतिशत और पेंशन पर लगभग तेरह प्रतिशत चला जाता है. राज्य सरकार जो उधार लेती है व लाभांश की राशि है वह बजट का लगभग दस प्रतिशत होती है.साफ जाहिर है कि वेतन पेंशन सहित अन्य राजस्व मदों में व्यय तेजी से बढ़ता ही गया है और इसके सापेक्ष आगम नहीं जुटे हैं. 2014 से 2019 की लेखा परीक्षा रपट बताती है कि इस अवधि में लगभग चौरासी प्रतिशत राजस्व व्यय रहा. औसत आधार पर राजस्व व्यय करीब पंद्रह प्रतिशत की दर से बढ़ा तो आगम तेरह प्रतिशत. रिपोर्ट में यह भी दिखाया गया है कि केंद्र से सीधे राज्य सरकार को लगभग सात सौ करोड़ रुपये सम्बंधित एजेंसी को न दिए जा कर राज्य सरकार को दे दिए गये.
वक्त की नजाकत को देखते सरकार खेती किसानी और अन्नदाता पर जैविक और क्लस्टर आधारित कृषि के जरिये फोकस कर रही है. बजट भाषण में मुख्य मंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट महिलाओं और नौजवानों की परेशानियों का भावुक समाधान देने की परिधि में लाये गये हैं. इनमें एक सिरे पर ‘घस्यारी योजना’ है जो सैणीयों के सर से बोझ हटाएगी तो दूसरे सिरे पर पलायन रोकथाम के कारबार जिसके लिए पहले ही पलायन आयोग भी गठित हो गया. इनके मध्य सिमटे पहाड़ के ही निवासी जो बाहर काम धंधा कर रहे थे मजबूरी में कोरोना से वापस घर आए. इनके लिए ‘सी एम स्वरोजगार योजना’ बनी .
राज्य के विकास से जुड़ी पंद्रह नई योजनाओं को अधिमान दिया गया . सबसे पहले तो दर्जा आठ तक पढ़ने वाले विद्यार्थियों को सरकार की तरफ से जूता बैग दिया जाएगा. माध्यमिक स्कूलों के रखरखाव और बुनियादी ढांचे पर ध्यान होगा .जरूरतमंद महिलाओं को कानूनी सहायता के लिए वित्त उपलब्ध कराया जाएगा . गाँव में महिला और युवक मंगल दलों को मदद मिलेगी . हर पंचायत में एक भवन का निर्माण किया जाना है.नहर, नलकूप, झील और बांधों के रखरखाव के प्रबंध होंगे. विविध योजनाओं में अनुदान के लिए सहकारिता विभाग को धन राशि दी गई है .दूसरी ओर माइक्रो खाद्य उद्यम उन्नयन योजना का बेहतर संचालन होना है. तो तकनीकी अभिरुचि की संवृद्धि के लिए साइंस सिटी और विज्ञान केंद्र खुलेंगे.परिवहन विभाग के आटोमेटेड टेस्टिंग लेन निर्माण के लिए भी धनराशि अवमुक्त की गई है.इसी तरह चौखुटिया में हवाई पट्टी और किसाऊ, लखवाड़, त्यूणी आराकोट पावर प्रोजेक्ट्स को मदद मिलेगी.
अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार अब सड़क निर्माण को प्राथमिकता दे रही है. साथ में ग्रीन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने की भी ठानी है. यहाँ भी केंद्र सरकार की योजना का आधार है. गाँव की सड़कों को नाबार्ड से मदद मिलनी है. फिर प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना हुई ही. सरकार चाहती है कि हर विकास खंड को संपर्क मार्ग से जोड़ दिया जाये. ऐसे ही सौर ऊर्जा परियोजनाओं के परिचालन से स्वरोजगार बढ़ने की उम्मीद है. पिरूल के उपयोग की भी साठ से अधिक परियोजनाओं का चयन किया गया है .
आम आदमी के पांच लाख रुपये तक के निःशुल्क इलाज की आयुष्मान योजना में बजट बढ़ाया गया है. बेहतर इलाज की सुविधा हेतु राज्य के 175 अस्पतालों को आयुष्मान योजना से सम्बंधित किया गया है. पीपीपी मोड के अंतर्गत चल रहे अस्पतालों की दशा भी सुधारी जाएगी.साथ ही विश्व बैंक की मदद से चिन्हित हॉस्पिटल क्लस्टर एप्रोच से गतिशील किए जायेंगे. पिथौड़ागढ़, रुद्रपुर और हरिद्वार के कई सालों से बन रहे मेडिकल कॉलेज हेतु भी बजट दिया गया है. उच्च शिक्षा भी उच्च अधिमान में रखी गई है. हर कॉलेज में कंप्यूटर लैब स्थापित करने की घोषणा की गई है. अब हर ब्लाक में एक डिग्री कॉलेज खुलेगा.शिक्षा, खेल, युवा कल्याण को सबसे ज्यादा बजट मिला है. तदन्तर चिकित्सा व परिवार कल्याण, लोक निर्माण, ग्रामविकास, पुलिस व जेल, वन,समाज कल्याण को वरीयता दी गई है. कृषि कर्म और अनुसन्धान को सापेक्ष रूप से सबसे कम बजट मिला है.
पहाड़ में जैविक खेती परंपरागत रूप से होती ही आई है.एक तिहाई भूमि पर जैविक खेती है. इसके साथ ही संयुक्त सहकारी खेती में समितियाँ बेमौसम सब्जी, मशरूम, मौन मसाले और सेव के बगीचों की देखरेख के साथ प्रसंस्करण और विपणन को भी पुनर्जीवित करेंगी. स्थानीय उत्पादों को पहचान देने वाले ग्रोथ सेंटर की योजना चलनी है. इसके प्रस्ताव लिए जा रहे हैं जिसमें बहुचर्चित बद्री गाय का दूध और घी तो है ही, एरोमावाले उत्पाद, शहद, मसाले, मशरूम के साथ देवस्थानों का प्रसाद नई पहचान -नया ब्रांड सामने रखेगा. सुगन्धित पदार्थों वाला अरोमा पार्क भी बनना है. अब बजट में आदर्श कृषि ग्राम योजना या आईएमए विलेज की अवधारणा को ले हर ब्लाक में एक -एक गाँव का चयन किया जाएगा. इसमें सौ किसानों के समूह बना क्लस्टर आधारित खेती तो होगी ही बाग भी लगेंगे, पशुपालन, दुग्ध पदार्थ,, शहद और मशरूम पर भी काम होगा.
गांवोँ में विकास मनरेगा के जरिये बेहतर होंगे सो साथ ही आजीविका विकास भी गति लाएगा जो औरतों के स्वयं सहायता समूहों और ग्राम संगठनों के बेहतर तालमेल की प्रतीक्षा में है. कई जिले नैनो पैकेजिंग इकाईयों की सुविधा से लैस किए जाएंगे.
बजट में प्रकृति और पर्यावरण की निरन्तर विगलित दशा और इसके बचाव के बारे में समन्वित रूप से कोई व्यापक रणनीति नहीं दिखाई देती. पर उत्तराखंड लगातार ग्रीन बोनस की मांग करते रहा है तो सरकार ने पर्यावरण के संरक्षण के लिए पौधारोपण की योजना दी है वहीं जल संरक्षण में कैंपा की योजना से वह राहत में है.वन पंचायतें को परंपरागत जल प्रणालियों में सुधार कर अधिक जल संग्रहण करने के विधान भी मौजूद हैं. वहीं सहकारिता विभाग के जिम्मे महिलाओं को अनुदान पर पशुचारा या साइलेज उनके घर दरवाजे तक पहुंचाएगी. इससे पहाड़ की महिलाओं के जंगल जा घा-पात लाने का बोझ काम होने की उम्मीद संजोई गई है. इसे मुख़्यमंत्री घसियारी योजना का नाम दिया गया है. उम्मीद है कालसी, रुद्रपुर और श्यामपुर ऋषिकेश में बनी ये साईलेज सुदूर गाड़ गधेरे पार कर महिलाओं के आंग में व्याप्त गई बीसियों बीमारियों के साथ जंगल के जानवरों के घात से भी उन्हें बचा ले. फिर पानी सारने भी जाना होता है औरतों को. इसो 2022 तक हर परिवार के सैणी मैसों को पचपन लीटर रोज पानी घर तक पहुँचाया जाना है. नये कनेक्शनों पर काम चालू है. वित्त का भारी इंतज़ाम है.. वहीं पेरी अर्बन योजना के लिए भी कई योजनाओं पर काम चल रहा है.नये टेंडर दिए जा रहे हैं. नाबार्ड से भी बंदोबस्त किया जा रहा है. नगरीय इलाके में केंद्र की योजना है. सीवरेज के वास्ते जर्मन विकास बैंक केएफडब्ल्यू दो शहरों में वित पोषण करने वाला है. वहीं स्वच्छ भारत ग्रामीण मिशन के लिए भी इंतजाम किए गये हैं.गैरसैण में पीने के पानी के लिए रामगंगा पर डीपीआर स्वीकृत कर बांध के बनने की तैयारी है. पानी रहे, बचे रहे इसके लिए राजधानी में रिस्पना और कोसी जलागम में पेड़ लगाए जा रहे हैं. देहरादून में सूर्यधार झील बनाई जा चुकी है तो कोलीढेक, ल्वाली, गगास, थरकोट व गैरसैण की झीलों पर काम चल रहा है.पचास साल तक नियमित पानी की आपूर्ति वाली सोंग पेय जल योजना देहरादून में तो पानी के साथ बिजली भी देने वाली जमरानी बहुउद्देशीय योजना का हल्द्वानी में श्री गणेश हो चुका है.
कसमें वादे सब किए गये हैं पर बजट की पंप प्राइमिंग धनाभाव, सिस्टम की लापरवाही और लचर कार्यप्रणाली से त्रस्त जनता को अचानक ही परोस दी उस घोषणा से और हैरान परेशान कर देती है जब वह गैरसैण की नया मण्डल बनाने का भावुक उदघोष सुनती है. सब समझते हैं कि ये भराड़ी सेंण को स्थायी राजधानी बनाने की घोषणा का ऐसा कल्पित विकल्प है जो उधार में डूबी उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को नये तनाव दबाव और कसाव में हिचखोले खाने को मजबूर कर देगा .इस घोषणा के बाद विधानसभा सत्र स्थगित कर दिया जाता है . भारतीय जनता पार्टी आला कमान कुछ नई श्रृंखलाओं को बुनने लगता है . इसे सियासी चक्रवात की तरह देखा जाता है.
मुख्य मंत्री की बजट परिकल्पना में स्वस्थ, सुगम, स्वावलम्बी और सुरक्षित उत्तराखंड पर फोकस किया गया था इससे पहले कि लोग बजट पर ध्यान लगाते तो नये मण्डल की घोषणा ठीक क्लाइमेक्स में हो गई. कई प्रबुद्ध जनों ने इसे निर्णायक कदम बताने में संकोच नहीं किया. ये तो स्थायी राजधानी की ओर जाती सड़क का चौड़ीकरण संकेत था. दूरदर्शी कदम . अब विरोध तो होगा ही. कुमाऊं मण्डल से उसकी सांस्कृतिक थात अल्मोड़ा, बागेश्वर खेंच के गैरसैण पै च्यांप जो दी गई ठहरी.
अब मुख्य मंत्री द्वारा बजट के समापन पर कही कविता उदेख लगाती है . कुछ सोचने पर मजबूर करती है कि:
“मंजिलें भी जिद्दी हैं, रास्ते भी जिद्दी हैं, देखते हैं कल क्या हो, हौसले भी जिद्दी हैं.”