प्रमोद साह
इन दिनों देश का किसान जिस प्रकार आंदोलित होकर सड़कों पर है. और जिस प्रकार की तस्वीरें सामने आ रही है। वह कई बार सोचने को विवश करती हैं कि आखिर कृषि सुधार के नाम पर बने नए कानूनो में ऐसा क्या है …? जब किसान हितों के लिए अध्यादेश के जरिए कोरोना काल में यह कानून लाने पड़े । कुछ तथ्य कुछ आंकड़े ऐसे जरूर सामने आने चाहिए, जिससे कुत्सित ताकतों को किसानों को भड़काने का अवसर प्राप्त ना हो. और भ्रम की स्थिति दूर हो.
2018-19 तक एम.एस स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को लागू करना सरकार की प्राथमिकता थी , किसानों की न्यूनतम समर्थन मूल्य का आधार स्वामीनाथन कमेटी हो. जिस पर अप्रैल 2019 तक सरकार की सहमति थी। आखिर सवा साल में ऐसे कौन से हालात बदल गए कि सरकार और किसान दोनों आमने-सामने आ गए । यह बिंदु आम सहमति के लिए जरूर विमर्श मेंआना चाहिए ।
एम.एस .स्वामीनाथन जेनेटिक एग्रीकल्चरल के वह कृषि वैज्ञानिक हैं. जिन्हौनें सदियो से हर 10 वर्ष में अकाल से जूझने वाले इस देश को न केवल खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बना दिया, बल्कि आज हमारी आवश्यकता का 25% तक हम भंडारण (बफर स्टाक )करने की स्थिति में रहते हैं ।
यह सन् 1966 का साल था, जब चीन युद्ध के बाद हम भयंकर अकाल से भी जूझ रहे थे . उन दिनों खाद्यान्न की कमी से निपटने के लिए प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को देश को सप्ताह में एक दिन उपवास और जय जवान जय किसान का मजबूत नारा देना पड़ा।
लेकिन लाल बहादुर शास्त्री के राजनीतिक संकल्प से अधिक भारत के खाद्यान्न की स्थिति को बदलने में एम .एस स्वामीनाथन का योगदान है । जिन्होंने मैक्सिको के गेहूं को पंजाब के बीज के साथ मिलाकर, ऐसा शंकर गेहूं बीज पैदा किया, जिसने गेहूं उत्पादन में 3 गुना तक की वृद्धि कर दी । उनका यह योगदान भारत को खाद्यान्न म़ें आत्मनिर्भर बनाने में मील का पत्थर साबित हुआ।
भारतीय कृषि में दिए गए इस अभूतपूर्व योगदान के लिए 1972 में उन्हें पद्म भूषण से अलंकृत किया गया ।लेकिन उसके बाद भी उन्होंने #खेत किसान और #शोध ,इन तीनों को जारी रखा। चेन्नई में स्थापित इनके “एम.एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन” ग्रामीण भारत एंव महिलाओं के स्वाबलंबन की दिशा में लगातार सक्रिय है .साथ ही पूरे देश में कृषि विज्ञान केंद्रों को और अधिक तकनीकी ज्ञान से परिपूर्ण बनाते हुए कृषि की उत्पादकता और कृषि को लाभ का व्यवसाय बनाने के लिए आप लगातार सक्रिय हैं ।
1990 के बाद भूमंडलीकरण और विश्व बैंक के दबाव कि आने वाले समय में खाद्यान्न संकट का सामना कृषि के आधुनिकीकरण तथा जोतों के बढ़ाने से ही किया जाना संभव है। इसके लिए विकास का ऐसा मॉडल तैयार किया जाए कि छोटा किसान खेती छोड़ कर शहरों में मजदूरी के लिए वापस आ जाए और खेती की जोत स्वत:बड जाए.. इस अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण ही उद्योगों के लिए शहरों के आसपास स्पेशल इकोनामिक जोन बनाए गए तांकि कृषि पर निर्भर 54% आबादी का बोझ घट जाए।
इस अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच खेत और किसान की हालत में सुधार हो इसके लिए एन.डी.ए प्रथम के कार्यकाल में भी शांता कुमार के नेतृत्व में एक आयोग का गठन हुआ, जिसने मंडियों को और अधिक सशक्त करने उनकी पहुंच का भारतीय औसत 80 वर्ग किलोमीटर की कमांड एरिया तक लाने के लिए संस्तुति की, तांकि न्यूनतम समर्थन मूल्य का कवच अधिकतम किसानों को प्राप्त हो ,उसकी पहुंच व्यापक हो और किसानों में असुरक्षा का भाव खत्म हो।
आज भी देश में मंडियों की कमांड एरिया कवर औसत लगभग 450 वर्ग किलोमीटर है. सिर्फ पंजाब की मंडियां 124 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के औसत पहुंच में है. देश में 42हजार कृषि मंडी की आवश्यकता के विपरीत आज भी 7हजार के आसपास ही मंडिया हैं । जो कुल उपज का 25% से अधिक नहीं खरीद पाते हैं।आज भी किसान अपनी उपज का बड़ा हिस्सा खुले बाजार में बेच रहा है । कृषि क्षेत्र में बढ़ रहे इस दबाव में किसानों की माली हालत और कृषि व्यवस्था में सुधार करने के लिए नवंबर 2004 में कृषि वैज्ञानिक एम.एस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया गया जिसने अक्टूबर 2006 में मुख्य रूप से 4 बिंदुओं पर अधिक जोर देते हुए अपनी विस्तृत रिपोर्ट पेश की ।
स्वामीनाथन रिपोर्ट के मुख्य चार बिंदु:
1- कृषि उपज के लागत मूल्य पर 50% जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित हो, अपने कमजोर आर्थिक संसाधनों के कारण सरकार किसानो को लागत मूल्य (खाद,बीज,श्रम,सिंचाई ,भूमि मूल्य ) पर 50% अभी तक स्वीकार करने में असमर्थ है. ऐसा करने पर खाद्य पदार्थों की महंगाई अत्यधिक बढ़ जाने का भी खतरा है।
2- कृषि ज्ञान भंडार और तकनीकी सहयोग का विस्तार हो. अर्थात जो किसान विकास केंद्र आज गांव में प्रचलित है उन्हें आधुनिकतम कृषि विज्ञान के सहायता केंद्र के रूप में विकसित कर भारतीय किसान को अंतरराष्ट्रीय स्तर की खेती के लिए तैयार किया जाए,
3- देश में कृषि भूमि लगातार घट रही है इसलिए गैर कृषि उपयोग में उपजाऊ एवं कृषि योग्य भूमि का उपयोग बंद हो. तथा सार्वजनिक महत्व की इकाइयां उसर और कम उपजाऊ भूमि में ही स्थापित की जाएं.
4- किसानों को बीज एवं कृषि उपकरणों के लिए अधिकतम 4% की दर पर ऋण उपलब्ध हो और इस ऋण की वसूली के लिए कोई दमनात्मक कार्रवाई ना हो.
इस प्रकार अपनी विस्तृत रिपोर्ट में स्वामीनाथन ने भारतीय किसानों की दशकों की समस्या को समाधान के साथ पिरो कर प्रस्तुत किया .
जब 2014 में प्रधानमंत्री महोदय ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य दिया तो स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को स्वीकार किए जाने की संभावनाएं बढ़ गई थी ।
2015 में पुनः शांता कुमार की अध्यक्षता में कृषि सुधार की एक और कमेटी ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें उनके द्वारा मंडियों के आधुनिकीकरण और मंडियों के अखिल भारतीय स्वरूप में समानता की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई जैसे गुजरात में 3% लेवी तो पंजाब में 14.5% लेवी मंडिया मनमाने तरीके से वसूल कर किसानों का शोषण कर रही हैं. मंडी व्यवस्था में एकरूपता और सुधार कृषि की आवश्यकता हमेशा से रही है ।
आजादी के बाद एक तुलनात्मक आंकड़ा यह बताता है कि पिछले 50 वर्ष में नौकरी पेशा भारतीय की तनखाह 120 से150 गुना बढ़ी ,तब कृषि उत्पादन की कीमत मात्र 21 गुना. इस तुलनात्मक बढ़ोतरी ने किसान को मुद्रा स्फीति के सापेक्ष आर्थिक रूप से बहुत कमजोर किया है।
#आवश्यक भी हैं #कृषिसुधार वर्तमान में भारत 270 से 275 मिलियन टन खाद्यान्न का उत्पादन कर रहा है 2025 में भारत को 300 मिलियन टन खाद्यान्न की आवश्यकता होगी .इसके लिए उत्पादन और कृषि भूमि की उत्पादकता दोनो को बढ़ाना आवश्यक है। लगातार छोटी होती जोतें भारतीय कृषि का संकट है ।
भारत के 82% किसानों के पास 1.8 हेक्टेयर के औसत से खेती भूमि है। जबकि इसमें आधे किसानों के पास एक एकड़ कृषि भूमि भी नहीं है। इतनी छोटी जोतों के साथ वैज्ञानिक पद्धति अपनाकर ,उत्पादन बढ़ाना आसान नहीं है।इसलिए छोटी जोतो के किसानों की कृषि से बेदखली के बाद कॉर्पोरेट फार्मिंग का विकास किया जाना भी समय की मांग है।
मंडियो के भ्रष्टाचार और तानाशाही को समाप्त करने के लिए विक्रय की खुली व्यवस्था भी जरूरी है। मगर उस सबसे जरूरी है भारतीय किसान को #न्यूनतमसमर्थन मूल्य के कवच से #संरक्षित रखना ।
अगर वाकई बाजार की खुली प्रतियोगिता कृषि के लिए जरूरी है । तो यह सार्वजनिक रूप से स्वामीनाथन कमेटी के उप बंधो के साथ तुलनात्मक रूप से प्रस्तुत की जानी चाहिए । अधिक दिनों तक भारत का किसान सड़कों पर ना रहे इसके लिए जरूरी है शीघ्र बीच का रास्ता अपनाया जाए और सदभावना पूर्वक बातचीत से समस्या का सम्मानजनक समाधान होंगे
One Comment
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