प्रमोद साह
कामयाबी , उसकी चमक और उसे बरकरार रखने की चुनौती , कामयाबी हासिल करने से भी #अधिककीमत आप से मांगती है । उस चमक को बरकरार रखने के लिए हम अक्सर अपने आप से दूर चले जाते हैं । खुद को भूल जाते हैं ,इस चमक को बरकरार रखने की कीमत कई बार हमें #आत्महत्या से चुकानी होती हैं . यह परिस्थितियां कब और क्यों कर आती हैं । यह #मनोविज्ञान का गूढ़ विषय है । हर बार इसके निष्कर्ष अलग-अलग होते हैं । सामान्य रूप से यह कहा जाता है कि व्यक्ति अपने मन मस्तिष्क की #क्षमता का मात्र दो से तीन प्रतिशत ही प्रयोग करता है. जो इन क्षमता का सही से प्रयोग करता है ,वह सफल व्यक्ति कहलाता है। यानी हर सफल व्यक्ति के भीतर के , उसके मन मस्तिष्क का #97-98 प्रतिशत भाग वह होता है ,जिसका उपयोग नहीं हुआ होता ,जो दफन होता है । यह भाग #अवचेतन का हिस्सा हो जाता है . वह अवचेतन किस रूप में व्यवहार करता है ,कब खुश होता है ,कब नाराज हो जाता है यह व्यक्ति को खुद भी पता नहीं होता है ।
मनोभाव की उस विराट दुनिया की अगर हम बात ना भी करें ,तो भी मोटे तौर पर यह कहा जाता है कि जिस प्रकार व्यक्ति के #दोहरेदायित्व होते हैं। एक व्यक्तिगत दूसरा सामाजिक अथवा व्यवसायिक. इन दो दायित्व में इनसे जुड़े दोनों मनोभाव में, अपनी निजी दुनिया और व्यवसायिक दुनिया ,इनमें संतुलन बना रहे तो ब्यक्ति का जीवन अधिक सुखी और संतुष्ट रहता है ।
आज की कंप्टीटिव दुनिया में हम अपने अंदर की दुनिया की लगातार उपेक्षा करते हैं। एक तरफ ही बडते जाते हैं। जब वहां कुछ गड़बड़ होती है . असफलता मिलती है, हताशा होती है ।तब तक हमारे पास लौटने के लिए वह अपनी दुनिया नहीं बचती है ।उसके स्थान पर होती है. गहरी खाई. । भीतर भावनाओं की बाढ़ के बीत जाने के बाद दूर तक पसरी रेत और अवसाद बस अवसाद !
जिस प्रकार अधिक ऊंचाई में पहुंचने वाली ट्रॉली के अंडर ग्राउंड सस्पेंशन बहुत मजबूत होते हैं ,ठीक ऐसे ही कामयाब व्यक्ति के भीतर भी एक सशक्त निजी दुनिया होती है ,अपनी वही साधारण कमियां होती है। यदि वह निजी दुनिया भरी पूरी हो वहां अपनेपन #अध्यात्म और छोटी-छोटी खुशियों के दीप जल रहे हों.तो …#अवसाद वहां फटकता भी नहीं ।
, जब हम सिर्फ कामयाबी की दुनिया में रहने की भूल करते हैं । अपनी #छोटीखुशनुमा साधारण दुनिया बचाकर नहीं रखते , तो वापसी पर हमारे पास कोई अपना ठिकाना नही रहता , जहां हम कामयाबी का चमकता #भारीकवच उतार कर फेंक सकें । हो सके भार और तनाव मुक्त ,जहां मनमाफिक खेल सकें ,
रो सकेंं , हंस सकेंं ! इसके लिए हमें रोज अपने अंदर की दुनिया की जतन करनी चाहिए, अपने साथ बचपन से चले आ रहे उस एक आदमी का जतन करना चाहिए जो बेतकल्लुफ होता है , जो औपचारिक नहीं होता, जो शिष्टाचार में समय जाया नही करता ,जो अधिकार से तुम्हारे कान खींच सकता है ।वहीआदमी तुम्हारा अपना होता है अंदरूनी सच्चा दोस्त ,जिसे हम #जोकर कहते हैं ।
.हम सबके भीतर वह जोकर होता है, लेकिन हम कामयाबी की ख्वाहिश में उसे भुला देते हैं । पीछे छोड़ देते हैं फिर जब हमें जरूरत होती है किसी सच्चे दोस्त की तो हम खाली होते हैं कोई भरोसेमंद साथी हमारे पास नहीं होता। जिससे हम कह सकें दिल की बात. जो बेधड़क हमें बता सकें सिर्फ चमकना नहीं है जिंदगी । सिर्फ ऊंचाई नहीं है पैमाना, जीवन है अपनी जमीन से जुड़े रहना, जब जैसे चाहो उस पर ढल जाना यह सब काम कराता है वह जोकर ,जो जो समय समय पर तुम्हारे भीतर भर रही घमंड की हवा को निकालते रहता है, तुम्हें एक साधारण आदमी बनाकर रखता है जिसके पास जमीन पर होते हैं ।
जब ऐसा भरोसेमंद साथी ,हमारे पास नहीं होता ,तब हम अवसाद की गहरी खाई में गिर जाते हैं । अवसाद और उसके कारणों को हम कैसे जानेंगे कैसे पहचानेंगे यह एक अलग विषय है। लेकिन हमारा साथी, हमारा जोकर अगर हमारे भीतर जिंदा होगा हमारे साथ होगा तो वह इतना प्रकाश तो जरूर साथ रखेगा कि हम अवसाद की गहरी खाई में ना समाएं…… कुछ भी हो अवसाद और आत्महत्या आज दुनिया में हो रही मौतों में तीसरी बड़ी संख्या की मौत है । #8से10लाख व्यक्ति हर वर्ष इस गहरी खाई में समा जाते हैं ।
इसलिए समय रहते अपने भीतर के सच्चे साथी अपने जोकर को जिंदा करलें ।
यह जोकर हम सबके भीतर है ,जिसे समाज नहीं जानता ,जिसको अक्सर अकेले में ,रात के अंधेरे में बस हम ही देख पाते हैं। वह जो बचपन में चंदा मामा को देखकर खुश होता था. जो बादलों में आज भी अनगिनत चित्र देखता है, वह जो तितलियों को पकड़ने भागता है, जिसे चिड़ियों का संगीत रोक लेता है .जो आज भी तमाम मुसीबतों के बाद अपनी खूबसूरत रंगीन दुनिया में रहता है. वही, बस वही आदमी हमारा मूल होता है .जो हमें चूहल बाजी सिखाता है . मन की उड़ानों में उड़ना सिखाता है , गिरे तो उठना और अंधेरे में राह दिखाता है . वही है हमारा सच्चा साथी जो हमें कभी अकेले नहीं होने देता । हमारा जोकर …
लेकिन जोकर के साथ दिक्कत है, उसका मत अक्सर हमारे उस मत से जुदा होता है .जो हम व्यक्त कर रहे होते हैं . वह मत जो हमारा सामाजिक चेहरा हमें व्यक्त करना सिखाता है .अक्सर वह हमारे अंदर के आदमी से जुदा होता है . यही तकलीफ है . यहीं से ही हिप्पोक्रैशी का जन्म होता है । मन मार के जीने की हमारी यह विवशता ,हमारे दुख और अवसाद का कारण बनती है ।
कथित सफलता से जीवन में हताशा का जो #रेगिस्तान पसर रहा है।वह अब हमें बादलों का उड़ना नहीं दिखता,जिसे तितलियों का इस फूल से उस फूल में उड़ जाना मूर्खता लगता है.अब चिड़िया जिसके रास्ते को नही रोकती हैं .. जिस अंदर सोते उस चुहल बाज आदमी को हम अपनी कामयाबी की राह में भुला देते हैं , सुला देते गहरी नींद ।
चांदनी तब शीतलता नहीं देती, घर जलाने लगती है ।
इस लिए निरर्थक जीवन को फिर से अर्थपूर्ण बनाने के लिए अपने जोकर को फिर से जगा कर साथ रखें , जो हिप्पोक्रेशी को काटता छांटता रहे ,आने वाले दिनों में यह चुहलबाजी ही कोरोना कि भी दवा भी होगी ।
#गांधी जी कहते थे “मेरे अंदर #सेंसऑफह्यूमर ना होता ,मैं मजाकिया ना होता तो ,आत्महत्या कर लेता” तो चलो गांधी की बात मान लो उस मजाकिया आदमी को जगा लो, अपनी दुनिया को फिर से खूबसूरत बना लो !
अपने जोकर को फिर जगा लो ।
सुशांत सिंह को श्रद्धांजलि