राजीव लोचन साह
जम्मू कश्मीर को दो हिस्सों में बाँटने और लद्दाख को जम्मू कश्मीर से अलग करने की प्रक्रिया अब सांवैधानिक रूप से भी पूर्ण हो गई है। मगर लगभग तीन माह बीत जाने पर भी कश्मीरी अवाम को उस खुली जेल से मुक्ति नहीं मिल पायी है, जिसमें उसे 5 अगस्त को डाल दिया गया था। सरकार का प्रचार तंत्र यह साबित करने के लिये पूरी शक्ति लगा रहा है कि घाटी में पूरी तरह अमन-चैन है और जनता पूरी तरह संतुष्ट है। जबकि दूसरी ओर से खबरें आ रही हैं कि वहाँ शिक्षा संस्थायें बन्द हैं, बाजार खाली पड़े हैं और सड़कों पर यातायात बहुत कम है।
सिर्फ संचार सुविधायें कुछ हद तक बहाल हुई हैं। अब यह कैसे सम्भव हो सकता है कि कश्मीर की जनता को ये सब कठिनाइयाँ झेलनी भी पड़ रही हों और वह पूरी तरह संतुष्ट भी हो। यदि आश्चर्यजनक रूप से ऐसा घटित हो भी रहा है तो फिर अपनी आँखों से कश्मीर के हालात देखने जा रहे भारतीय जन प्रतिनिधियों को क्यों वहाँ जाने से रोका जा रहा है और क्यों विदेशों से बुला कर लाये कुछ छँटे हुए जन प्रतिनिधियों को कश्मीर की सैर करा कर यह विश्वास दिलाने की कोशिश की जा रही है कि कश्मीर में सब कुछ सामान्य है। यूरोपीय संघ के इन सांसदों को एक संदिग्ध किस्म की महिला के द्वारा एकत्र करने, उनमें से भी उनको बाहर कर देने जो बगैर सरकारी निगरानी के मुक्त रूप से घाटी में घूमना चाहते थे, उनका खर्च एक ऐसी संस्था द्वारा करवाने जिसके दरवाजे पर ताला लगा है, कश्मीर जाने से पूर्व इनको प्रधानमंत्री द्वारा सम्बोधित किये जाने की कवायद से इस दौरे की विश्वसनीयता घटी है। मौजूदा सरकार की कश्मीर नीति पर अब बहुत सारे ऐसे लोग भी शक करने लगे होंगे, जो नोटबन्दी, हड़बड़ी में लागू किये गये जी.एस.टी., पाकिस्तान सीमा पर बढ़ते अनावश्यक तनाव आदि के बावजूद मौजूदा सरकार के प्रबल समर्थक हैं और जिन्होंने नरेन्द्र मोदी को मई माह में सम्पन्न लोकसभा चुनाव में प्रचण्ड बहुमत से दुबारा दिल्ली की सल्तनत पर भेजा था।
राजीव लोचन साह 15 अगस्त 1977 को हरीश पन्त और पवन राकेश के साथ ‘नैनीताल समाचार’ का प्रकाशन शुरू करने के बाद 42 साल से अनवरत् उसका सम्पादन कर रहे हैं। इतने ही लम्बे समय से उत्तराखंड के जनान्दोलनों में भी सक्रिय हैं।