चन्द्रेश योगी
नब्बे के शुष्क दशक में जब यह देश आर्थिक विकास की काफी लंबी सुसुप्त अवस्था को तोड़ थोड़ा बहुत छटपटा रहा था उत्तराखण्ड के एक सामान्य से परिवार के सेंट्रल स्कूल के अध्यापक के बेटे ने श्रीनगर गढ़वाल विश्वविद्यायल के पर्यटन प्रबंधन के परास्नातक कार्यक्रम में दाखिला लिया …पर्यटन प्रबंधन में कोई विशेष अवसर उस वक्त नही थे और ना ही था देश में गढ़वाल विश्वविद्यायल का कोई खास स्तर … धूमिल आशाओं के साथ शुरू करते हुए नैथाणा गाँव के पुरिया नैथानीयो के इस वंशज ने अपना परा स्नातक पूरा करते ही चार पांच साल में देश विदेश में कई मानी हुई संस्थाओं की नौकरी करने के बाद दो साथियों के साथ दिल्ली में एक अपनी निजी कम्पनी “इंडियन लीजेंड ” शुरू की …जो देखते ही देखते इंडियन सब कॉन्टिनेंट पार कर ओवरसीज ,यूरोप ,मिडल ईस्ट ,फार ईस्ट ,कोरिया ,जापान तक काम करने लगी ….
और आज “इंडीयन लीजेंड” लगातार चौथे वर्ष पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार से “राष्ट्रिय पर्यटन पुरुस्कार” ले रही है चार साल किसी बादशाहत को बरकरार रखना कोई आसान काम नही …ये किसी भी उस कम्पनी के लिए जो की पर्यटन के क्षेत्र में काम करती है के लिए कोई आसान काम नही यह इंडियन लेजेंड की अपनी प्रतिबद्ध कार्यशैली ,उद्देश्य और अपने उपभोक्ताओं के प्रति समर्पण की मिसाल है…
अब बात करते हैं इस घटना में छिपे मुद्दे की … यह सब हम उत्तराखण्डियों के लिए इसलिए मायने रखता है क्योंकि इसी शख्श ने उत्तराखण्ड में भी निवेश करना चाहा किन्तु उसे भू राजस्व नीतियों ,बिजली और पानी के कनेक्शन के लिए ही साढ़े तीन साल सिस्टम और ब्यूरोक्रेसी से दो चार होना पड़ा कुछ भी काम बिना विभागों की जेब गर्म किये संभव नही था विभागों में वही अपने लोग बैठे थे जो नैथानी सरनेम या पहाड़ी नाम सुनते ही गर्व से भर जाने का अचूक अभिनय जरूर करते थे पर बिना पैसे लिए काम नही करते थे…
बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि आज Giri Saurabh Naithani को शायद उत्तराखण्ड में कोई नही जानता ,पर्यटन में राज्य के भविष्य को लेकर हमने 2000 में उत्तरप्रदेश से अलग होकर अपनी यात्रा शुरू की थी… ऐसा प्रदेश जो सरकार की नीतियों के स्तर पर जनता से किये वायदों के स्तर पर आर्थिक विकास में देश के अन्य राज्यो के साथ दौड़ भरने के स्तर पर पर्यटन को अपनी आर्थिक विकास की शक्ति ही नही रीढ़ मानने के झूठे स्वांग भरता है…
जो राज्य अंधों की तरह पर्यटन उपकरण ,व्यवसाय और नीति की अरबो की सब्सिडीयां और रेवड़ियां अपने अपने सगों को बांटता फिर रहा है ,और फिर भी पर्यटन पर्यटन करते हुए सिर्फ देहरादून के पांच सितारा होटलों और ऑफिसों में खाई बाड़ी और जुबानी जमाखर्च के अलावा कुछ नही कर पाता ,वहां गिरी सौरभ जैसे लोग अपनी फाइल लिए पटवारी ,तहसीलदार ,एस डी एम ,और जिला उधोग विभाग विधुत और पर्यटन विभाग के कभी खत्म न होने वाले चक्कर ही काटते रह जाते हैं…
ये हमारे सक्षम तपे खपे लोग है जिनके पास नयी दुनिया का विज़न है ,जिन्होंने दुनिया में देश विदेशों में खुद को साबित किया है जो नयी दृष्टि नयी सोच और प्रतिबध्दता के साथ हमे आबाद कर सकते है ये वो लोग हैं जिनका समर्पण निष्कपट है… दुर्भाग्य है कि उत्तराखण्ड सरकार के पास एक भी ऐसा पुरुस्कार या प्रशस्ति तो छोड़िए एक ऐसा विंडो तक नही जो बिना घूस रिश्वत के इन नव उधमियों को कारोबारियों को आसान जमीनी सुविधाऐ प्रदेश में उपलब्ध करवा सकें…
हमारे प्रदेश के पर्यटन मंत्री मलेशिया में हुई इंटरनेश्नल टूरिस्म समिट में तो गिरी सौरभ नैथानी से मिल सकते हैं किंतु देहरादून में उनके पास ऐसे लोगो के लिए कोई समय नही होता और न ही उन्हें ऐसे प्रदेश के बेटों की जरूरत होती जो एक मौका मिलते ही प्रदेश की तस्वीर बदल दें…
और न ही गढ़वाल विष्वविधालय को ही ,जिसके पास शायद बहुत कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियां गिनाने को हों …विश्वविद्यायल को भी अपने किसी छात्र की किसी उपलब्धियों से उसके प्रचार से कोई मतलब है… क्योंकि वहां अलग अलग स्तर की लॉबिंग में जुटे हैं लोग किसी को एसोसिएट किसी को प्रोफेसर किसी को एच ओ डी किसी को प्रिंसिपल किसी को कुलपति बनना है अपने विश्वविद्यालय के एकेडमिक इतिहास को सहेजने का उनको जरा भी वक्त नही और न ही कोई जरूरत …कायदे से आज पर्यटन फैकल्टी में गिरी सौरभ नैथानी की यह उपलब्धि टँगी होनी चाहिए थी यह गिरिसौरभ नही फेकल्टी का सम्मान होता …
खैर प्रदेश के कई बेटे गिरी सौरभ नैथानी जैसे हैं जो पूरी दुनिया में अपनी धाक जमा रहे है भले अपने प्रदेश में कोई उनको नही जानता …ये उनका नही हमारे प्रदेश का दुर्भाग्य है… सतपाल महाराज जी अपने चारणों और भक्तों की नीतियों से बाहर निकलिए ऐसे दूरदर्शी ऊर्जावान प्रतिबद्ध और सफल लोगो को अगर पैसे देकर मना मना कर गिड़गिड़ा कर भी लाना पड़े तो प्रदेश में लेकर आइये…
यहाँ बैठ टूरिस्म का ढोल मत पीटीए वो फूट चूका है