शंकर सिंह भाटिया
कुछ दिनों पहले बहुचर्चित आयुर्वेदिक संस्थान पतंजलि के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण जब अचानक बीमार हुए तो सोशल मीडिया में इसे हार्ड अटैक बताया गया। लेकिन वास्तव में यह फूड प्वाइजनिंग का मामला था, जो कि स्वामी रामदेव ने खुद बताया। इसके बाद मीडिया में टीका टिप्पणियों की बाढ़ सी आ गई। जिसका लब्बोलुआब यह था कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के खिलाफ खड़े पतंजलि के विशाल अस्पताल में फूड प्वाइजनिंग का समुचित इलाज तक नहीं है। अन्यथा अपने संस्थान में इलाज कराने के बजाय आचार्य को एम्स ऋषिकेश में क्यों भर्ती कराया जाता? इसका नतीजा कई लोगों ने यह निकाल लिया कि एलोपैथ के सामने आयुर्वेद फेल है। यह भी कि आयुर्वेद पर टिका पतंजलि का साम्राज्य सिर्फ ढकोसला है।
हम भारतियों की सबसे बड़ी कमी है कि हम बिना अधिक सोचे बिचारे नतीजे पर पहुंच जाते हैं। अपनी बात को सही साबित करने के लिए कुतर्क गढ़ने लगते हैं। हमें यहां पर एलोपैथ और आयुर्वेद की प्रणालियों को समझना होगा। तब किसी नतीजे पर पहुंचें। आयुर्वेद भारतीय वेद पुराणों से निसृत एक जीवन पद्धति है। जिसमें संपूर्ण शरीर विज्ञान का ज्ञान मौजूद है। चरक, पतंजलि, वाण भट्ट समेत तमाम ऋषि मुनियों ने इस पर शोध कर इसे परिष्कृत किया है। आयुर्वेद का लब्बोलुआब यह है कि मनुष्य शरीर को प्रकृति के साथ तादात्म्य बनाकर चलने से स्वस्थ रखा जा सकता है। साथ ही आयुर्वेद यह भी बताता है कि यदि किसी कारणबश शरीर बीमार हो जाता है तो उसे ठीक करने वाली औषधियां हमारे इर्द-गिर्द प्रकृति में मौजूद हैं। मतलब कि आयुर्वेद एक जीवन पद्धति है। इस पद्धति में उल्लिखित औषधियों का मनुष्य शरीर पर कोई साइडइफेक्ट नहीं होता है।
दूसरी तरफ एलोपैथ है। इसे आप पश्चिमी स्वास्थ विज्ञान कह सकते हैं। यह आम धारणा है और इसमें सच्चाई भी है कि एलोपैथिक दवाओं का कोई न कोई साइडइफेक्ट अवश्य होता है। आप सिर दर्द की दवा लेते हैं, पेन किलर कुछ ही मिनट में आपका सिर दर्द ठीक कर देगा, लेकिन इस दवा के साइड इफेक्ट आपके आर्गन तक पर बुरा प्रभाव डाल सकते हैं। एलोपैथ में अत्यधिक शोध की वजह से कुछ क्षेत्रों में बहुत अधिक प्रगति हुई है। जीवन रक्षा प्रणाली को एलोपैथ ने बेहतर बनाया है। हार्ड अटैक, ब्रेन हेमरेज, फूड प्वाइजनिंग, अत्यधिक रक्तस्राव जैसे तुरंत मृत्यु तक पहुंचाने वाली बीमारियों में एलोपैथ का इलाज तुरंत प्रभावी है। इसके अलावा डायग्नोस्टिक जांच में, खून, यूरिन, स्टूल से लेकर एक्सरे, सिटी स्केन, पैट स्केन, एमआरआई समेत तमाम जांचों के जरिये बीमारियों का पता लगाने की प्रणाली विकसित की है। एलोपैथ की एक और उपलब्धि है, जान लेवा बीमारियों का टीकाकरण। यह सब उच्च स्तरीय शोध कार्यों की वजह से हो पाया है। ये शोध कार्य सालों से हो रहे हैं, अब भी निरंतर जारी हैं। इस सब के बावजूद एलोपैथ की दवाएं साइडइफेक्ट से कभी मुक्त नहीं हो सकती हैं।
इसके विपरीत आयुर्वेदिक दवाएं इतनी गुणकारी होने के बावजूद तुरंत प्रभावी नहीं हैं। क्योंकि आयुर्वेद एक जीवन पद्धति है। सिर दर्द होने पर आयुर्वेद चिकित्सक यह पता लगाएगा कि सिर दर्द की वजह क्या है? कब्ज गैस की वजह से सिर दर्द हो रहा है कि किसी अन्य कारण से हो रहा है। सीधे सिर दर्द की गोली देने के बजाय उस मर्ज का इलाज किया जाएगा, जिसमें समय लगता है। आयुर्वेद का अब अत्यधिक प्रचार हो रहा है। इसमें बहुराष्ट्रीय कंपनियों से लड़ने का दावा करने वाली पतंजलि का भी योगदान है। दावा किया जा रहा है कि पतंजलि के हरिद्वार में स्थित बड़े-बड़े चिकित्सालयों में शोध कार्य हो रहे हैं। जो आयुर्वेद में शोध कार्यों की कमी को दूर करेगा। लेकिन यह तय है कि किसी एक संस्थान या एक व्यक्ति के शोध से आयुर्वेद को वह मुकाम नहीं मिल सकता है। इसके लिए विस्तृत और बहुआयामी शोध करने होंगे। आज एलोपैथ इतनी बुराइयों के बावजूद यहां तक पहुंचा है तो पूरे यूरोप, अमेरिका समेत तमाम देशों में किए गए निरंतर शोध इसकी वजह हैं।
सतही शोधों से यह संभव नहीं हो सकता। जैसे आचार्य बालकृष्ण आयुर्वेदिक औषधियों के बारे में अपने वीडियो जारी करते रहते हैं। जो आस्था चैनल में प्रसारित होते हैं। इन वीडियो में अलग-अलग आयुर्वेदिक दवाओं, बनस्पतियों के बारे में जानकारी दी जाती है। अपने ऐसे ही एक वीडियो में आचार्य बालकृष्ण ने एक पौधे भारंगी के बारे में बताया है। जिसे वे ब्राह्मण यष्ठिका भी कहते हैं। आचार्य के अनुसार भारंगी की पत्तियों का काढ़ा किसी भी तरह के फूड प्वाइजनिंग का अचूक इलाज है। लेकिन जब उन्हें पेड़ा खाने से फूड प्वाइजनिंग हुई तो इस काड़े का प्रभाव नहीं दिखाई दिया। उन्हें इलाज के लिए एम्स में जाना पड़ा। इसलिए आयुर्वेद में सतही शोधों के बजाय गंभीर रूप से काम करने की जरूरत है। किसी दवा के बारे में तभी जानकारी प्रचारित की जाए, जब कई लोगों पर इसके प्रभाव को आजमा लिया जाए।
पतंजलि के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण के फूड प्वाइजनिंग का इलाज पतंजलि के अस्पताल में करने के बजाय एम्स में किया जा रहा है, इसलिए आयुर्वेद, एलोपैथ से कमतर है, इस नतीजे पर पहुंचना कतई उचित नहीं है। पतंजलि संस्थान आयुर्वेद का पर्याय नहीं है। यदि पतंजलि कहीं फेल होता है तो आयुर्वेद भी फेल हो जाता है, इस नतीजे पर पहुंचना मूर्खतापूर्ण होगा। बहुत सारी खामियों के बावजूद एलोपैथ ने जो मुकाम हासिल किया है, वह इस क्षेत्र में किए गए शोध का परिणाम है। आयुर्वेद भी इसी तरह के विस्तृत शोध की अपेक्षा करता है। यह किसी एक व्यक्ति तथा एक संस्थान के बस की बात नहीं है। आयुर्वेद को वहां तक पहुंचाने के लिए अकूत धन, संसाधन और समय की जरूरत होगी।
हिन्दी वैब पत्रिका ‘उतराखंण्ड समाचार ’ से साभार