उमा भट्ट
प्रश्न : आपने होली गाना कैसे सीखा ? क्या आप बचपन से ही होली गाती थीं ?
जवाब : मेरा बचपन गाँव में बीता। बागेश्वर के पास तिलसारी गाँव है हमारा। मेरी शादी 23 साल की उम्र में हुई।तब तक मैं गाँव में ही रही। हमारा गाँव बहुत बड़ा है। गाँव में एक जगह पुरुषों की होली होती थी, दूसरी जगह महिलाओं के झोड़े होते थे। महिलायें होली नहीं गाती थीं, झोड़े लगाती थीं। पुरुषों की होली देखने भी हम जाते थे।
प्रश्न : किसी झोड़े की कोई पंक्ति बताइये?
खोलि दे माता खोल भवानी घरक किवाड़ा, क़ै लै रै छै भेट पखौवा के खोलूँ केवाड़ा। ऐसे ही झोडै गाये जाते थे। धीरे-धीरे समय परिवर्तन हुआ तो गाँव में पढ़ी-लिखी हुई बहुएं आईं। शिक्षा का प्रचार-प्रसार बढ़ा। फिर धीरे-धीरे होली शुरू हो गयी। पुरुषों की अलग होती थी। महिलाओं की अलग। दिन में घर का काम-धंधा पूरा करके महिलाऐं होली गाती थीं। जब मैं शादी के बाद अल्मोड़ा आई तो यहाँ तो शहर में खूब होली होती थी तो मैं यहाँ होलियों में रम गयी। अल्मोड़ा आकर मैंने ज्यादा होलियाँ सीखी।
प्रश्न : क्या आदमी झोड़े गाते थे ?
आदमी होली गाते थे ।
प्रश्न : आजकल भी लोग झोड़ें गाते हैं ?
आजकल सब होली गाते हैं।
प्रश्न : बैठकर या खड़े होकर ?
महिलाएं बैठकर ही होली गाती हैं।
प्रश्न : अल्मोड़ा में उन दिनों कैसा माहौल था जब आप अल्मोड़ा आई ?
आज से 30 साल पहले जब मैं शादी के बाद अल्मोड़ा आई तो मेरी सास श्रीमती जयंती तिवारी बहुत सामाजिक थी उनका सामाजिक दायरा बहुत बड़ा था। मेरे ससुर श्री देवी दत्त तिवारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। नंदा देवी के त्यूनरा मोहल्ला में हम रहते हैं। हमारे मोहल्ले में खूब होलियाँ होती थी। खूब रौनक थी। हर रोज किसी न किसी के घर में होली होती थी। तब आलू गुजिया चाय सब चलता था।
प्रश्न : उन दिनों की कुछ होलियां बताइए ?
उन दिनों महिलाएं पुराने किस्म की धीरे-धीरे गाये जाने वाली पुरानी होलियां गाती थी। आजकल जरा होली का सुर बदल गया है। ढोलक, मंजीरा और चिमटे के साथ बैठकर गाती थी। तबला हारमोनियम नहीं बजाती थी।
प्रश्न : सबके घर में होली होती थी या किसी-किसी के घर में ?
जिन महिलाओं ने होली उठाई होती थी वह ही करते थे पर शामिल सब होते हैं।
प्रश्न : क्या आप शास्त्रीय होलियां भी गाते थे ?
पुरुष पौष मास के पहले इतवार से गाते हैं पर औरतों को शास्त्रीय होली गाते हुए अभी तक नहीं देखा है।
प्रश्न : कुछ होलियां बताइए ?
गणेश जी की वंदना से होली की शुरुआत होती है। सिद्धि को दाता विघ्न विनासन होली खेले गिरजापति नंदन। फिर चीर बांधी जाती है किले बांधी चीर हो रघुनंदन। इसमें पहले देवताओं का नाम लिया जाता है फिर जिस घर में होली हो रही हो उसे परिवार के सदस्यों का नाम लिया जाता है। मथुरा में खेले एक घड़ी, चंपा के दस फूल, बलमा घर आए सावन में, पहले यह होली बहुत गाई जाती थी। कुछ होलियां ऐसी है जिनको आदमी-औरत सब गाते हैं। ’मथुरा शहर के लोग हो होली खेलन आए’ इस होली को भी हम गाते हैं। ’मैं होली खेलूंगी उन संग डट के। उन संग डट के हां श्याम संग डट के’।
प्रश्न : क्या होलियों के साथ-साथ नाच भी करती हैं महिलाएं ?
हां। होली का मजा तो तभी है जब खूब नाच हो।
प्रश्न : केवल आदमी कैसी होलियां गाते हैं ?
’सुमिरो सीता राम राम भजे, राम भजो राधे’ जैसी होलियां जो देवताओं से संबंधित होती हैं उनको पुरुष गाते हैं और लंबे स्वरो में गाते हैं।
प्रश्न : अल्मोड़ा में खड़ी होली होती है ?
हां छलड़ी के दिन होती है खड़ी होली उस दिन रात को भी ढोलक के साथ गाते हैं।
प्रश्न : पहले की होली और आज की होली में अंतर दिखाई देता है आपको ?
पहले लोग पढ़े लिखे कम होते थे तो रंग की जगह कालिख लगा देते थे। छरड़ी के दिन गोबर घोलकर डाल देते थे। पर आनंद पहले अधिक था। जो लोग दूसरी जगह होते थे सब घर आते और ढोल, मंजीरा, चिमटा लेकर बहुत होली गाते थे। अब गांव से पलायन होने के कारण बहुत कम लोग रह गए हैं।
प्रश्न : महिलाओं की होली में क्या अंतर आया है ?
महिलाएं अब पढ़ी लिखी हैं तो होली में खूब सज धज कर आती हैं। पहले कपड़ों पर लोगों का ज्यादा ध्यान नहीं था इसलिए वैसे ही चली जाती थी। अब तो महिलाएं सफेद साड़ियां खरीदने लगी हैं। नई-नई होलियां गाती हैं। आजकल महिलाओं के समूह बने हैं तो अपने समूह के लिए ढोलक मंजीरा खरीद लेती हैं। पुरुषों पर निर्भर नहीं हैं। खाने पीने का सामान भी खरीद लेती हैं और बढ़िया खाती हैं।
प्रश्न : गाने के स्तर में क्या अंतर आया है ?
होलियाँ अब बहुत फास्ट हो गई हैं। पहले जो धीमा-धीमा रिदम था उसमें जो रहस्य छुपा होता था वह नहीं है। होली ही क्या हर चीज में यही हो गया है।
प्रश्न : होली की प्रतियोगिता भी होती है अल्मोड़ा में ?
महिला कल्याण समिति की प्रीति दुर्गापाल दीदी हैं, वह करती हैं होली की प्रतियोगिता। उसमें दो-तीन होलियां बैठकर गाई और एक-दो होलियों में नाच किया और कुछ प्रेरणादायक स्वांग भी करते हैं। पहले भी स्वांग करते थे तो किसी को भी लेकर ठेटर करते थे तो उसमें कोई बुरा नहीं मानते थे। जैसे गांव का कोई व्यक्ति जिसे गाली देने की आदत है या किसी को ज्यादा बोलने की आदत है उसके क्रियाकलापों पर औरतें ठेटर करती थी। आज किसी व्यक्ति विशेष पर ठेटर किया जाए तो लोग नाराज हो जाते हैं। इसमें भी अंतर आया है। आज की पढ़ी-लिखी औरतें किसी सामाजिक विषय को लेकर ठेटर करती हैं जैसे सरकारी योजनाओं पर, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर, अल्मोड़ा में बंदर बहुत हो गए हैं तो उस पर, यहां के नेता लोगों पर, नशा मुक्ति पर। तीन चार औरतें मिलकर करती हैं त्यौहारों पर भी ठेटर कर लेती हैं, जैसे भिटौली है। आजकल भिटौली में पैसे भेज देते हैं पर पहले खजूर बनाते थे, कपड़े बनाते थे। माँ या भाई जाते थे भिटौली पर अब वह प्रथा लुप्त हो गई है। अब सीधे खाते में पैसे जमा कर देते हैं।
प्रश्न : आप भी करते हो ठेटर ?
हां मैं भी थोड़ा बहुत कर लेती हूं।