ईजा
रात में नहीं
हम ईजा की लोरियों में सोते हैं
ईजा की गोद
हमें चांद सी लगती है
ईजा की बोली में तारों के गीत
हाँ, यही तो
रात जब भी आती है
ईजा जगमग आकाश ही नहीं
सबसे नरम धरती
और सबसे गहरे सागर का
संगीत बन आती है
हाँ, तभी तो
सुबह हमारे चेहरों से
जब हटाती है आँचल
ईजा हमें आंगन का सूर्य बना देती है
– सिद्धदेव
(उत्तरा द्वारा प्रकाशित ‘विरासतों के साये से निकल कर’ से साभार )
उम्मीद
तुम मुट्ठी में इकट्ठा करती हो घास
काटती हो
बनाती हो पू
पू से लूटा
तुम चाहो
तो इकट्ठा कर लो
पूरी की पूरी बिखरी दुनियां
क्योंकि तुम जानती हो
मुट्ठी में घास इकट्ठा करना
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गले में में रस्सा / हाथ में हथकड़ी / पाँव में बेड़ी
गहन धैर्य के साथ
आजादी की प्रतीक्षा करता
पीढ़ीयों से कैद ये कैदी
बर्तन मांजता / कपडे धोता / खाना पकाता
छोटे-बडे जेल खानों की
साज सज्जा का पूरा ध्यान रखता
गहन धैर्य के साथ ये कैदी
गालियां / मार / हिंसा सहता
फिर भी रहना तुम्हारे साथ है
ओ जेलरो
अभी रहना तुम्हारे साथ ही है
कहता गहन धैर्य के साथ
पीढीयों से कैद ये कैदी
और अब दिखलाई पड़ती है
द्वितीय विश्व युद्ध के आस पास हुई
क्रान्तियों के बाद
जन्म लेती नई क्रान्ति
दुनियाॅ के तमाम हिस्सों में
इकट्ठा हो रहे हैं
गहन धैर्य के साथ
पुश्तैनी कैदी
-दिनेश उपाध्याय
(उत्तरा द्वारा प्रकाशित ‘विरासतों के साये से निकल कर’ से साभार )
नैनीताल समाचार परिवार की ओर से अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनायें