– अमानत’ लखनवी
है जलवः-ए-तन 1 से
दर-ओ-दीवार बसंती
पोशाक जो पहने है
मिरा यार बसंती
क्या फस्ले-बहारी 2 ने
शिगूफे 3 हैं खिलाए
माशूक फिरते हैं
सरे बाज़ार बसंती
गेंदा है खिला बाग़ में,
मैदान में सरसों
सहरा वो बसंती है,
यह गुलज़ार 4 बसंती
गेंदों के दरख़्तों में
नुमाया 5 नहीं गेंदे
हर शाख़ के सर पर है
यह दस्तार 6 बसंती
मुंह ज़र्द 7 दुपट्टे के
न आंचल में छुपाओ
हो जाए न
रंगे-गुले-रुख़सार 8 बसंती
खिलती है मिरे शोख़ पे
हर रंग की पोशाक
ऊदी 9, अगरी, चम्पई,
गुलनार 10, बसंती
है लुत्फ़ हसीनों की
दोरंगी का ’अमानत’
दो चार गुलाबी हों
तो दो चार बसंती
1. शरीर का दर्शन, 2. बसंत, 3. कलियां, 4. उपवन, 5. प्रकट, 6. पगड़ी, 7. पीला, 8. गुलाबी गालों का रंग, 9. हरी, 10. लाल।