शंकर सिंह भाटिया
उत्तराखंड सिंचाई विभाग के 13000 हेक्टेयर से अधिक भूमि, चार हजार से अधिक भवनों पर उत्तर प्रदेश का कब्जा है। कुछ भूमि तथा सिर्फ बीस प्रतिशत भवनों को उत्तराखंड को देने पर सहमति हुई है। हरिद्वार में जहां कुंभ मेला, कांवड़ मेला लगता है, वहां की 697.576 हेक्टेयर मेला भूमि पर यूपी सिंचाई विभाग काबिज है, उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग साफ तौर पर कहता है कि यह भूमि उसे सिंचाई संरचनाओं के विकास के लिए चाहिए, उत्तराखंड को नहीं दी जाएगी। हरिद्वार में उत्तराखंड को सिंचाई के लिए अतिरिक्त जल की आवश्यकता है, उत्तराखंड की नदियों का जल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड को देने को तैयार नहीं है। उत्तराखंड के अंदर आवास विकास की भूमि उत्तराखंड को देने के बजाय उत्तर प्रदेश खुद उस भूमि का मालिक बने रहना चाहता है। हरिद्वार का भीमगौड़ा बैराज, बनबसा का लोहियाहैड बैराज, कालागढ़ का रामगंगा बैराज अभी भी यूपी के कब्जे में हैं। टिहरी डैम का जिस हिस्से का मालिक उत्तराखंड को होना चाहिए, यूपी उसका मालिक बना हुआ है और करीब एक हजार करोड़ रुपये सालाना राजस्व ले रहा है। इतना ही नहीं ग्यारह विभागों की भूमि, भवन तथा अन्य परिसंपत्यिों पर उत्तराखंड की सीमा के अंदर उत्तर प्रदेश का कब्जा है। इसके बाद भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच परिसंपत्यिों का मामला सुलझ गया है। पास में खड़े उत्तराखंड के मुख्यमंत्री चुपचाप सबकुछ सुनते रहते हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पिछले दिनों बदरीनाथ-केदारनाथ आए थे। केदारनाथ में पूजा अर्चना के बाद वह बदरीनाथ पहुंचे थे। उत्तराखंड सरकार द्वारा हैलीपैड के बगल में दी गई बीस नाली भूमि पर उन्होंने उत्तर प्रदेश पर्यटन गृह का शिलान्यास किया था। इस दौरान उन्होंने कहा कि दोनों राज्यों के बीच सारे विवाद निपटा लिए गए हैं। यह आश्चर्यजनक है कि उत्तर प्रदेश के जिस मुख्यमंत्री से उत्तराखंड के लोग आस लगाए बैठे थे कि वह उत्तराखंड की परिसंपत्तियों पर उत्तर प्रदेश के कब्जे को सुलझाने में सहयोग करेंगे, लेकिन उन्होंने पूरे मामले पर मिट्टी डालकर मामले को खत्म करने की कोशिश कर डाली। आश्चर्यजनक यह भी था कि इस दौरान उनके बगल में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री खड़े थे, लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं कहा। मतलब यह हुआ कि वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की बात पर मौन सहमति दे रहे थे।
वास्तव में उत्तराखंड इस बात पर मौन सहमति दे चुका है इसका प्रमाण है उत्तराखंड पुनर्गठन विभाग का वह पत्र जिसे 2 मार्च 2020 को विभाग के अपर सचिव अतुल कुमार गुप्ता ने जारी किया है। पत्र के शीर्षक से इस बात की प्रतिध्वनि आती है कि जैसे दोनों राज्यों के बीच परिसंपत्तियों का विवाद निपट गया है।
पत्र का शीर्षक है-‘राज्य पुनर्गठन विभाग, उत्तराखंड शासन की उपलब्धियों का अध्यतन विवरण’-इस पत्र में छह बिंदु दिए गए हैं। पहले बिंदु के अनुसार उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड राज्य के मध्य आस्तियों एवं दायित्वों के विभाजन के संबंध में दोनों प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बीच 10 अप्रैल 2017 को लखनउ में आयोजित बैठक में अधिकांश लंबित प्रकरणों के विभाजन पर सहमति बन गई है। इस संबंध में मुख्य सचिव स्तर की बैठकें 7 अप्रैल 2018, 28 जून 2018 और 17 अगस्त 2019 को देहरादून में आयोजित हुई।
दूसरे बिंदु में कहा गया है कि पेंशन दायित्वों के प्रभाजन के संबंध में उत्तराखंड राज्य के सृजन तिथि से 31 मार्च 2016 तक 7965.495 करोड़ रुपये उत्तराखंड को प्राप्त हो चुके हैं। अवशेष धनराशि के भुगतान उत्तर प्रदेश द्वारा वित्तीय वर्ष 2019-20 में कर दिया जाएगा, यह राशि 3000 करोड़ रुपये है।
तीसरे बिंदु के अनुसार उत्तराखंड राज्य गठन के उपरांत नानक सागर, बौर व हरिपुरा, धौर, बैंगुल एवं तुमड़िया में उत्तर प्रदेश राज्य के शिकारमाही से संबंधित राजस्व के संबंध दोनों राज्यों की सहमति के उपरांत 31 मार्च 2017 की तिथि को अर्जित राजस्व एवं अर्जित ब्याज की दो तिहाई धनराशि उत्तराखंड राज्य को प्राप्त हो गई है। अवशेष एक तिहाई के संबंध में दोनों राज्यों में सहमति हो गई है।
चैथे बिंदु के अनुसार दिनांक 17 अगस्त 2019 की बैठक के अनुसार आस्थियों एवं दायित्वों के विभाजन के संबंध में अधिकांश प्रकरणों पर दोनों राज्यों में सहमति हो गई है। सहमति के बिंदुओं पर मंत्रिमंडल के अनुमोदन के उपरांत अग्रेत्तर कार्यवाही के संबंध में संबंधित ग्यारह विभागों को निर्देशित करते हुए निर्णयों के समयबद्ध अनुपालन हेतु उत्तर प्रदेश शासन से भी अनुरोध किया गया है।
पांचवें बिंदु के अनुसार दोनों राज्यों के मध्य कार्मिकों के पुनरावंटन से संबंधित अधिकांश प्रकरणों का निस्तारण हो चुका है। अवशेष लंबित प्रकरणों पर निर्णय हेतु कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, भारत सरकार के स्तर पर राज्य परामर्शीय समिति की बैठक भविष्य में संभावित है। उक्त बैठक हेतु राज्य पुनर्गठन विभाग, उत्तराखंड द्वारा संबंधित विभागों की सूचनाएं संकलित कर राज्य परामर्शीय समिति एवं उत्तर प्रदेश पुनर्गठन समन्वय विभाग, उत्तर प्रदेश शासन को प्रेषित कर चुकी है।
अंतिम बिंदु में कह गया है कि 25 जुलाई 2018 को संपन्न मंत्रिमंडल की बैठक में लिए गए निर्णय के क्रम में उत्तराखंड शासन द्वारा पुनर्गठन आयुक्त कार्यालय, उखनउ को बंद कर दिया गया है।
उत्तराखंड की परिसंपत्तियों पर अभी तक उत्तर प्रदेश का काबिज रहना, उत्तराखंड के अंदर जमीनों, आवासीय/अनावासीय भवनों पर उत्तर प्रदेश का कब्जा बरकरार रहना, झीलों की शिकारमाही में उत्तर प्रदेश का हस्तक्षेप बरकरार रहना, हरिद्वार के भीमगौड़ा बैराज, बनबसा के लोहियाहैड बैराज और कालागढ़ के रामगंगा बैराज पर उत्तर प्रदेश का कब्जा बरकरार रहना, टिहरी डैम के जिस हिस्से पर उत्तराखंड का स्वामित्व होना चाहिए उस पर उत्तर प्रदेश का काबिज रहना, और तमाम ग्यारह विभागों की बहुत सारी संपत्तियों पर उत्तर प्रदेश का कब्जा बरकरार रहना, यदि उत्तराखंड पुनर्गठन विभाग की उपलब्धियां हैं तो इस राज्य का भला भगवान ही कर सकते हैं।
‘उत्तराखंड समाचार’ से साभार