3 Comments

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    Geeta gairola

    रघुवीर दा के बारे में।पढ़ कर आंखें भर आई।हम दोनो ने लगभग एक साथ कैंसर का सामना किया था।उन्हे तकलीफ से छुटकारा मिल गया पर एक खाली जगह छोड़ गए।

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    मृगेश पांडे

    बहुत सरल सुलझा साहसी सहृदय खोज की छटपटाहट में डूबा रघुवीर ,जिस काम के पीछे लगता उसे पूरे मनोयोग से पूरा करता। नैनीताल आने पर उसे जरूर ढूंढता और वह अपने चल रहे कामों के बारे में खूब बताता। आंचलिक अर्थव्यवस्था की उसमें गहरी समझ थी। मेरी बहुत शंकाओं को समाधान करने वालों में दो ही पडोसी थे ,डॉ गिरीश चंन्द्र पांडे और रघुवीर जो बिना लाग लपेट और पांडित्य झाड़े जैसे बात की जड़ पकड़ लेते। सरकारी मास्टरी के मायाजाल में अपने इलाके में हो सकने वाले बहुत काम मैं पूरे कर ही न पाया उसे बताता जरूर था कि ये सोचा है कुछ किया भी है प र कभी ट्रांसफर कभी प्रिंसिपल की कुर्सी और इनमें ख प गयी अपनी सीमित क्ष म ता। सो टिक कर काम सिलसिले से पूरा करना मुझे कभी आया ही नहीं। कभी कैमरे पैर जोर होता तो कभी नाटक पर। रघुवीर इसकी भी तारीफ करता और कहता कि आंचलिक अर्थ पर जो उथल पुथल है आपके दिमाग में उस पर वीडियो की ये जबरदस्त थीम है। बाहर विश्वविद्यालयों में ये ही हो रहा। उसने हर बार एक साफ़ रास्ता दिया। पिथौड़ागढ़ वाला होने से उससे मेरा जुड़ाव कुछ ज्यादा ही था। कई ट्रेकिंग में साथ भी मिला। अपनी भावनाओं को सपने में बदलना और फिर उसे पूरा करने में जान लगा देना ; रघुवीर ये कर गया; वो मंद मंद मुस्काता रघुवीर।

  3. 3

    सुरेन्द्र चंद राजा

    आज आपकी लेखनी पड़ कर डॉ रघुवीर चंद जी बहुत याद आ रहे हैं, उनसे मेरा रिश्ता केवल एक बहनोई (जमाई) वाला ही नही था अपितु उनके साथ आत्मिक जुडाव था, पिछले 40-42 वर्षों मे वह मेरे जिवन का एक हिस्सा बन चुके थे, आज उनके जाने के बाद यह जीवन खाली खाली लगता है, आज आपका लेख पढ कर अश्रुओं को रोक नहीं पाया, वह लगातार बहते रहे, दिल बहुत उदास हुआ, उन्हे मै जितना समझता था और जो कुछ उनके समबन्ध मे जानता था हूबहु वह सब आपकी लेखनी ने इंगित कर दिया, आप जैसे मित्रों व साथियों के धनी हमारे जमाई जी महाराज आज दुनिया में भले ही नही रहे पर वह जहाँ भी होंगे आप जैसे मित्रों व संगी साथियों का उन्हे जीवन पर्यन्त दिया प्यार व सम्मान वह अवश्य मिस कर रहे होंगे, यह सोलह आने सच है कि उनकी उर्जा के स्रोत उनके स्टूडेंट, आप जैसे उनके पठन-पाठन के साथी, उनकी किताबें, उनकी डायरियां व उनकी शोध पत्रिकाएं ही रहीं थीं । मेरा मानना है कि यही कुछ प्रमुख कारण रहे हैं जिसके फलस्वरूप हम पाँच वर्ष और अधिक उनका प्यार व आशीर्वाद पा सके ।
    उम्मीद है डाॅ रघुवीर चंद जी हम सभी के हृदय मे इसी तरह हमेशा हमेशा बने रहेंगे,

    प्रदीप पाण्डे जी व दूसरे डाॅकटर चंद जी के सभी स्टूडेंटस, मित्रों व संगी साथियों का बहुत-बहुत धन्यवाद

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