राजेश जोशी
गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा उर्फ़ ‘टेनी’ के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिर वही ग़लती कर रहे हैं जो उन्होंने किसान आंदोलन के समय की थी. उन्होंने सोचा था किसान दिल्ली के बॉर्डर पर कुछ हफ़्ते बैठेंगे, भारी दुष्प्रचार के कारण जनता में ये बात घर कर जाएगी कि ये किसान नहीं ख़ालिस्तान समर्थक कुछ सिरफिरे बड़े ज़मींदार हैं, फिर किसान नेताओं में आपसी मतभेद पैदा होंगे और आंदोलन तिरोहित हो जाएगा.
ऐसा नहीं हुआ. एक साल से ज़्यादा वक़्त तक नरेंद्र मोदी आत्मनिर्मित इमेज में क़ैद रहे कि ‘मोदी एक बार जो फ़ैसला कर लेता है, कभी उससे पीछे नहीं हटता’. वो इस पर वाक़ई भरोसा करने लगे थे. पर आख़िरकार उन्हें ख़ुद ही इस इमेज को किरचे किरचे बिखरते देखना पड़ा. तीन विवादास्पद क़ानून वापिस लेने पड़े. तभी हाईवे पर डेरा डाले किसान घर लौटे.
मंत्रियों को नियुक्त करने, उनसे इस्तीफ़ा लेने या उन्हें मंत्रिमंडल से बर्ख़ास्त करने का अधिकार सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रधानमंत्री के पास होता है. इसलिए ये सवाल बेमानी है कि लखीमपुर की खुली सभा में किसानों को ‘दो मिनट में ठीक’ कर देने की धमकी देने वाले ‘टेनी’ अब तक मोदी मंत्रिमंडल में कैसे टिके हुए हैं. उनके बेटे आशीष मिश्र ‘टेनी’ सलाखों के पीछे हैं और अब लखीमपुर कांड की जाँच करने के लिए बनाई गई विषेश जाँच टीम ने भी कह दिया है कि शांतिपूर्ण तरीक़े से सड़क पर जुलूस निकाल रहे किसानों पर भारी गाड़ी चढ़ाना एक सोची समझी साज़िश थी कोई दुर्घटना नहीं. आशीष पर आरोप है कि उन्होंने चार किसानों को कुचलकर मार डाला था.
इस हत्याकांड से पहले उनके पिता और देश के गृहराज्य मंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ ने आंदोलनकारी किसानों को धमकी दी थी कि अगर वो नहीं माने तो दो मिनट में ठीक कर दिया जाएगा. इसके बावजूद वो मोदी मंत्रिमंडल में न केवल टिके हुए हैं बल्कि सवाल पूछने वाले पत्रकारों को खुले आम धमका रहे हैं, गालियाँ दे रहे हैं – यहाँ तक कि मारने के लिए लपक रहे हैं. इसी बुधवार को वो अपने संसदीय क्षेत्र में ‘टेनी’ एक ऑक्सीजन प्लांट का उद्घाटन करने गए थे. वहाँ कुछ पत्रकारों ने उनसे सवाल कर लिया कि एसआइटी ने तिकुनिया कांड को सोची समझी साज़िश बताया है, आपका क्या कहना है?
सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में ‘टेनी’ इस सवाल पर बिफरते हुए, गालियाँ देते हुए और पत्रकारों पर लपकते हुए दिखते हैं. भारत के गृहराज्य मंत्री का ओहदा बहुत ऊँचा होता है. क़ानून और संविधान का पालन करना उसका दायित्व है. लेकिन ‘टेनी’ वो सबकुछ कर रहे हैं जो एक सड़क छाप गुंडा करता है. इसके बावजूद अगर वो मोदी मंत्रिमंडल में बने हुए हैं तो इसके लिए किसे ज़िम्मेदार ठहराया जाए?
मोदी अब तक ‘टेनी’ को बचाए हुए हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि काशी-विश्वनाथ जैसे ‘मेगा ईवेंट’ की चकाचौंध में लोग तिकुनिया कांड को भूल जाएँगे. पर ‘टेनी’ के कारण मोदी और उनके मैनेजरों का किया-धरा बेकार हो गया है और मीडिया का फ़ोकस वाराणसी से हटकर तुरंत लखीमपुर पहुँच गया. मोदी के मैनेजर अब भी उम्मीद कर रहे हैं कि ‘टेनी’ के इस्तीफ़े की माँग पर प्रधानमंत्री चुप रहेंगे तो ये विवाद भी ख़ुद ही शांत हो जाएगा.
भारतीय जनता पार्टी के नेता और कार्यकर्ता आख़िर इस नतीजे पर कैसे पहुँचे कि सरेआम क़ानून की धज्जियाँ उड़ाने के बावजूद उनका बाल बाँका नहीं होगा?
ऐसा इसलिए हुआ कि मवाली-व्यवहार के कारण कुछ कार्यकर्ता मीडिया की सुर्ख़ियों में ही नहीं आए, वो भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की नज़रों में भी चढ़ गए और उन्हें अनुशासन सिखाने की बजाए गुंडागर्दी के लिए पुरस्कृत किया गया. इससे कई लोगों को अपना राजनीतिक करियर आगे बढ़ाने का फ़ॉर्मूला मिल गया.
तेजिंदरपाल सिंह बग्गा याद हैं आपको? वो भारतीय जनता पार्टी की दिल्ली इकाई के महत्वपूर्ण नेता हैं और हरिनगर से बीजेपी के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ और हार चुके हैं. उनकी शुरुआत कहाँ से हुई – ये जानने के लिए 13 अक्तूबर 2011 के अख़बार पलट लीजिए. उस दिन बग्गा अपने साथियों के साथ टीवी कैमरों की मौजूदगी में सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण के चेम्बर मे घुसे, उनपर हमला किया, ज़मीन पर गिराकर भूषण के मुँह पर मुक्के मारे, उनकी क़मीज़ फाड़ दी और फिर ट्वीट पर खुलेआम हमला करने की बात स्वीकार की. लिखा, “उसने मेरे देश को तोड़ने की कोशिश की, मैंने उसका सिर तोड़ दिया. हिसाब चुकता. सबको बधाई. ऑपरेशन प्रशांत भूषण सफल हुआ.”
अब आइए 2015 में. यूपीए को हराकर नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन चुके थे और उन्होंने प्रधानमंत्री निवास में डेढ़ सौ सोशल मीडिया इंफ़्लूएंसर को सम्मानित करने के लिए आमंत्रित किया. इस ‘ईवेंट’ को #सुपर150 कहा गया. इसमें सम्मानित होने वालों में एक तेजिंदरपाल सिंह बग्गा भी थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ख़ुद बग्गा की हरकतों पर सहमति की मोहर लगाई.
उग्र राजनीति बीजेपी का स्थायी भाव बन चुका है. और उसे इसका अकल्पनीय राजनीतिक लाभ भी मिला है. इसलिए हिंसा और आतंकवाद के आरोपों में घिरे नेताओं को महत्वपूर्ण पद देने में अब कहीं कोई संकोच नज़र नहीं आता. मालेगाँव बम विस्फोट कांड की अभियुक्त प्रज्ञा ठाकुर को जिस तरह से पिछले आम चुनाव में लोकसभा का टिकट दिया गया और जिस तरह गोडसे के महिमामंडन की कोशिश को नज़रअंदाज़ किया गया, उससे साबित होता है कि राजनीति के नए व्याकरण में सुरुचि, सद्व्यवहार, करुणा, अहिंसा जैसे समय-सिद्ध विचारों को सिर के बल खड़ा कर दिया गया है.
और इस व्याकरण के पाणिनि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं!
(तस्वीर: साभार ‘पत्रिका’)