आशीष नेगी
8 मार्च 2024 को हमें उत्तरकाशी के दूरस्थ गांव फिताडी पहुंचना था। हम 7 मार्च को KGBV मोरी खरसाड़ी में 5.30 बजे तक वर्कशॉप समाप्त कर जखोल की ओर निकल पड़े। हम खूबसूरत पहाड़ों के बीच से गुजर रहे थे और अंधेरा धीरे धीरे इन दृश्यों को अपने आगोश में ले रहा था। आसमान में भारी संख्या में तारे अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके थे। इस अंधेरे में भी धवल हिमालय अपनी धूमिल सी मौजूदगी दर्ज करवा रहा था। अम्मार भाई बार बार इन दृश्यों को अपने कैमरे में कैद करना चाह रहे थे पर अंधेरा पहरा दे रहा था। वो झटके से सर हिलाते और बोलते जखोल पहुंच कर पहले फोटो लूंगा। उनकी फोटो की आस ये खूबसूरत रात और गुनगुनाती ठंडी हवाओं के साथ हम लगभग 9.00 बजे रात ग्राम जखोल पहुंचे, जहां हमारे मित्र कल्याण व सुमन हमारा इंतजार कर रहे थे। इस ठंडे माहौल में स्वागत और मिलाप बहुत गर्म रहा।
चूल्हे के पास बैठ यादों के साथ हम रोटी तोड़ रहे थे और साथ ही साथ फिताडी जाने की रणनीति भी बना रहे थे।क्योंकि सड़कें टूटी होने के कारण हमें कल लगभग 15 से 16 किलोमीटर (आना जाना)पैदल चलना था। देर रात बातों और कॉलेज की यादों के साथ नींद की गोद में कब बैठे पता ही नहीं चला। अगली सुबह जखोल का खूबसूरत नजारा और हिमालय हमारे स्वागत में खड़े थे। वैसे मैं जखोल बहुत बार आ चुका हूं पर ये हर बार नया लगता है। सुबह 8:30 बजे वर्कशॉप के सामान को उठाकर निकले पड़े एक सुंदर सफर में। यह रास्ता पहाड़ों के बीच नदी के किनारे होते हुए आगे बढ़ रहा था हिमालय ठीक हमारे सामने खड़ा था और हम धीरे-धीरे हिमालय की ओर बढ़ रहे थे। साथी कल्याण ने बताया कि दो दिन पहले ही क्षेत्र में भारी बर्फबारी हुई है। दूर-दूर तक पहाड़ सफेद चादर ओढ़े हुए थे अम्मार खान भाई पहली बार इस क्षेत्र में चल रहे थे।हर चीज को कैद करने का उनका लालच उनके मन,मस्तिष्क और उनकी चाल पर छा रहा था। हम उन्हें बीच बीच में वर्कशॉप की याद दिलाते।
टूटे-फूटे रास्तों से आगे बढ़ते हुवे कुछ देर नदी के किनारे सीधे सीधे चलने के पश्चात अब चढ़ाई शुरू हो चुकी थी। 8:30 बजे के निकले हुए हम 10:00 बजे तक आधा ही रास्ता नाप पाए थे। स्थानीय लोग बड़ी आसानी से इन पहाड़ों की पगडंडियों और बर्फ से ढके हुए खेतों पर चले जा रहे थे।हमने भी हिम्मत भरी और चढ़ाई चढ़ना शुरू किया l लगा कि थोड़ी तो चढ़ाई होगी हम भी तो पहाड़ से आते हैं लेकिन इस चढ़ाई को चढ़ते चढ़ते अब निगाहें गांव को ढूंढने लगी जो दूर-दूर तक हमें नहीं दिख रहा था। लगभग 6 किलोमीटर पैदल चलने के पश्चात हमें कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। लेकिन दोस्तों का आश्वासन हमें आगे बढ़ा रहा था। हम पूछते और कितना..वह मुस्कुराहट के साथ जवाब देते थोड़ा बाकी है। अब उनके थोड़े बाकी से डर लगने लगा था। लेकिन खूबसूरत पहाड़ियों के नजरों से ऊर्जा भी मिल रही थी। लगभग दो किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई के पश्चात हमें एक गांव दिखा तो जान में जान आई। हम गांव पहुंचे जहां ताजा ताजा बर्फ के साक्ष्य पड़े थे। चारों तरफ नजरे फिराई तो नजारे देखते ही सारी थकावट मिट गई थी।
हमने लकड़ी पर कुछ कलाकारों को खूबसूरत नक्काशी करते देखा तो मेरे मन, दिमाग, शरीर ने एक साथ सजदा किया। ये टक टक करती हथौड़ी की आवाज हमारी किसी लोगगीत की भांति थी जो अपनी संस्कृति और वक्त को उस धुन में संजो रही थी। हम लगभग 11:00 बजे स्कूल परिसर में पहुंचे। विद्यालय परिवार और बच्चों ने बहुत शानदार स्वागत किया। ग्रामीण जीवन के इस संघर्ष एवं आनंद को देख, हमने ऊर्जा के साथ 11:30 बजे अपनी वर्कशॉप शुरू की। हमने कला, समता एवं संवैधानिक मूल्य पर बच्चों के साथ खूब चर्चा की। हम कविताओं, कहानियों के जरिए बच्चों के बीच इतने घुल मिल गए की सारी थकान भूल कब हमने उनके साथ चार घंटे बिताए पता ही नही चला। उनकी जिज्ञासा, प्रश्नों ने मन खुश कर दिया। उन्होंने अपने अनुभव भी हमारे साथ साझा किये। हमारा उन्हें छोड़ने का और उनका स्कूल से जाने का मन नहीं कर रहा था। जब साथी ने हमें थोड़ा चेताया कि दोस्त वापस भी जाना है। फिर हमने 4:00 बजे शाम को चलने की तैयारी की, तो पीछे से बच्चों की आवाज आनी शुरू हुई की सर अगली बार जरूर… आना जरूर आना…हम इंतजार करेंगे,सर चार पांच दिन के लिए आना..नही नही महीने भर के लिए आना……
वह आवाज अभी भी मेरे कानों में गूंज रही है। वर्कशॉप से पहले बहुत सारे प्रश्न थे। हम थक गए तो..?, क्या हम पूरी ऊर्जा के साथ चर्चा कर पाएंगे..?, क्या हम 1.30 से 2 घंटो तक हम बच्चों से चर्चा कर पाएंगे। लेकिन वह 2 घंटे क्या 4 घंटे कब बीते हमें पता ही नहीं चला । जीवन के उस संघर्ष को देख हमारे सीखाने के सारे भाव खत्म हो कर हम सीखने की प्रक्रिया में थे। उसके पश्चात हम वापस जखोल को लौट चले हम धीरे-धीरे बातें करते हुए नीचे की ओर इन पगडंडियों पर उतर रहे थे। जखोल आते-आते रात हो चुकी थी गांव में एकदम सन्नाटा छाया हुआ था। चारों तरफ खामोशी थी पर मेरे अंदर बहुत शोर था…।
इस शानदार अनुभव के लिए, हमारी यात्रा के मार्गदर्शक निदेशक माध्यमिक शिक्षा उत्तराखंड श्री महावीर बिष्ट जी का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं। हम साथी कल्याण और सुमन का भी हार्दिक धन्यवाद देते हैं। इस यात्रा में पग पग में पूरी मजबूती के साथ चलने वाले अम्मार भाई का शुक्रिया वो न होते तो ये दूरी तय करना असंभव था। टीम सृजन समता में मेरे अलावा अम्मार खान, सुमन रावत, कल्याण रावत, सुरेंद्र रावत आदि शामिल रहे।
सम्पूर्ण यात्रा का सार
सृजन समता यात्रा रचनात्मक,संवेदन शील,समतामूलक समाज की ओर एक साझा प्रयास। ये यात्रा हमारे लिए शिक्षाप्रद एवं रोमांच के अनुभव से भरी रही। शिक्षा निदेशक माध्यमिक शिक्षा उत्तराखंड श्री महावीर बिष्ट जी के मार्गदर्शन में 26 मार्च 2024 को रा.इ.का.चोपड़ा से शुरू होकर, रा.बा.इ.का.मलेथा, टिहरी के दूरस्थ परंतु खूबसूरत विद्यालय KGBV प्रताप नगर, डाइट टिहरी, टी.एल.सी. टिहरी, शिक्षा संकाय विश्व विद्यालय बादशाहीथौल टिहरी से होते हुए टिहरी के दूरस्थ विद्यालय रा.उ.मा.वि. कौशल पहुंची। यहां हमने सरल व्यवहार के साथी प्रमोद पैन्यूली भाई एवं टीम टिहरी को अलविदा कहा और जुड़े उत्तरकाशी के साथी जफर भाई के साथ।रविवार 3 मार्च को यात्रा के KGBV चिन्यालीसौड़ एवं टी.एल.सी. अज़ीम प्रेम जी फाउंडेशन चिन्यालीसौड़ उत्तरकाशी पहुंची। यहां हमारी कर्मठ एवं रचनात्मक शिक्षक साथी सुंदर नौटियाल जी के साथ रोचक भेंट हुई। यात्रा में उनका मार्गदर्शन भी मिला। बच्चों और शिक्षकों से संवाद करने के पश्चात हम शाम को टी.एल.सी. अज़ीम प्रेम जी फाउंडेशन उत्तरकाशी पहुंचे, जहां उत्तरकाशी के रचनात्मक शिक्षकों से संवाद किया और उनके अनुभव को अपने जीवन एवं यात्रा से जोड़ा । शाम का खाना खज़ान सर के घर था।
इस रचनात्मक परिवार से मिलकर खास कर अंशिका बिटिया से मिल कर मन खुश हुआ। ढेर सारी बातें और स्वादिष्ट भोजन करते हुए खजान दा के परिवार ने हम पर खूब ऊर्जा भरी। अगले दिन हम निकल पड़े जीजीआईसी देवीधार।विद्यालय के बच्चों से रचनात्मक एवं समतामूलक चर्चा करने के पश्चात हम निकल पड़े बड़कोट, जहां शाम को 5 बजे से टी.एल.सी. अज़ीम प्रेम जी फाउंडेशन बड़कोट में शिक्षक और युवाओं के साथ संवाद था। बड़कोट में शिक्षक और युवाओं से रूबरू हुए और यहीं से यात्रा में जुड़े बेहतरीन, व्यवस्थित और ऊर्जावान साथी संजय भट्ट जी ।अगली सुबह यात्रा डाइट बड़कोट ( उत्तरकाशी) पहुंची। फिर यात्रा टी.एल.सी. अज़ीम प्रेम जी फाउंडेशन पुरोला के लिए निकल पड़ी। पुरोला में देर शाम तक बेहतरीन संवाद हुआ।पुरोला रात्रि विश्राम के लिए दिनेश दा ने अपनी सारी रियासत हमारे नाम कर दी और मोहित दा ने स्वादिष्ट खाना खिलाया। दोनों के अपनेपन ने घर जैसा माहौल बना दिया। अगले दिन हम पहुंचे KGBV मोरी जहां के रचनात्मक माहौल ने मन हर लिया । यहां हमसे खंड शिक्षा अधिकारी श्री पंकज कुमार जी भी जुड़े।KGBV मोरी में संवाद 6 घंटे चला,उसी दिन रात को हम मोरी से उत्तरकाशी के दूरस्थ विद्यालय फिताड़ी के लिए निकल पड़े। जहां लगभग 15,16 किलोमीटर पैदल यात्रा भी करनी पड़ी। शिक्षक साथी कल्याण और सुमन की वजह से फिथाडी यात्रा आसान हो गई। उसके पश्चात हम KGBV त्यूनी से होते हुए जीजीआईसी सहिया व KGBV कौरवा (चकराता) पहुंचे ।
हम 15 दिनों की पहाड़ी यात्रा के पश्चात लगभग 10.30 बजे रात देहरादून पहुंचे। 11 मार्च को डायट देहरादून पहुंचना था, पर वहां इंटरनेशनल प्रतिनिधियों की विजिट थी। वर्कशॉप में खतरा मंडरा रहा था। परंतु सुबह से व्यस्त होने के बावजूद रचनात्मक सक्रिय प्राचार्य डाइट देहरादून श्री राकेश जुगरान जी ने बड़े ऊर्जा से पूर्ण एवं सकारात्मक रूप से स्वागत किया।लगभग 2:30 बजे से संवाद शुरु हुआ। यहां हमें सिर्फ 1.30 से 2 घंटा ही मिला परंतु जो भी वक्त था वो लाजवाब था। प्राचार्य श्री राकेश जुगरान जी से आजतक हम सोशल मीडिया पर ही मिले थे पर ये वास्तविक मुलाकात बहुत ही बेहतरीन थी। डाइट देहरादून के संवाद में प्रांतीय शिक्षक संघ के अध्यक्ष श्री राम सिंह रावत जी भी हम से जुड़े। फिर यात्रा पौड़ी और अंत में 16 मार्च 2024 को अपने अंतिम पड़ाव केंद्रीय विश्व विद्यालय श्रीनगर के शिक्षा संकाय पहुंची। यात्रा के समापन में हम से जुड़े सौम्य, सरल स्वभाव के साथी प्रदीप अंथवाल जी ।
लगभग 1400 किलोमीटर की इस यात्रा में हमने 14 इंटर कॉलेज, 3 डाइट (टिहरी, उत्तरकाशी, देहरादून), 2 विश्विद्यालय शिक्षा संकाय, छः टीएलसी केंद्रों और अज़ीम प्रेम जी फाउंडेशन में सैकड़ों बच्चों, युवाओं, शिक्षकों एवं डीएलएड व बीएड के विद्यार्थियों से संवाद किया। इस एक दिवसीय वर्कशॉप में जहां हम बच्चों को कुछ रचनात्मक सिखा रहे थे वहीं स्थानीय जीवन जीवन एवं क्षेत्र के बच्चों से हम भी बहुत कुछ सीख रहे थे। सफर में धूप,बारिश, बर्फबारी सभी मौसमों को महसूस करते हुए हम रोज औसतन 50 से 60 किलोमीटर चलते और एक दिवसीय वर्कशॉप करते। हमने इस एक दिन की वर्कशॉप को तीन भागों में बांटा था। पहले सेशन पर सृजन एवं कला की यात्रा पर, कला का बाकी विषयों में क्या योगदान है और कला के जरिए बाकी विषयों को कैसे बेहतर बना सकते हैं, इस पर बात हो रही थी साथ ही कुछ कहानियां सुना कर उन्हें कहानियों से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा था। उन्हें कहानी को महसूस करने का तरीका बताया जा रहा था, जिसमें हमने बहुत बार बच्चों और कुछ बड़ों की आंखों को नम होते हुए भी देखा। फिर अगले सेशन में कविता पोस्टर और विभिन्न प्रकार की कलाएं एवं लोक कला की प्रदर्शनी को बच्चे और शिक्षक देख रहे थे। कविताओं, कविता पोस्टरों विभिन्न प्रकार की कलाओं को देखकर बच्चों के मन में बहुत सी जिज्ञासाऐं थी । प्रदर्शनी को देख उन्होंने बहुत से प्रश्न भी किये। यहां हम कविताओं, कविता पोस्टर, विभिन्न कलाओं में चर्चा करके अपने सामाजिक परिवेश को समझ रहे थे।
उसके बाद अगले सेशन में संवैधानिक मूल्यों पर बात हो रही थी। जहां हम संवैधानिक मूल्यों को अपने सामाजिक परिवेश से जोड़ कर उस पर चर्चा कर रहे थे और अपने संविधान, अपने देश और सामाजिक परिवेश को समझने का प्रयास कर रहे थे। उसके बाद 10 मिनट का मेडिटेशन फिर वर्कशॉप का फीडबैक और अंत में चलो की मंजिल दूर नहीं व जैंता इक दिन त आलु…. को गाकर इस वर्कशॉप का समापन किया जा रहा था।
इस यात्रा के अनुभव बहुत ही शानदार थे। हम इस यात्रा में मार्गदर्शन करने वाले हमारे सृजनशील व्यक्तित्व वाले श्रीमान महावीर बिष्ट जी, निदेशक माध्यमिक शिक्षा उत्तराखंड का हार्दिक धन्यवाद देते हैं, जिन्होंने हमें यह अवसर प्रदान किया। कर्मठ रचनाशील शिक्षक साथी अम्मार जी ने 1400 किलोमीटर की इस यात्रा के हर कदम को ऊर्जावान बनाया । हम पौड़ी, टिहरी, उत्तरकाशी, बड़कोट,पुरोला, त्यूनी, देहरादून, श्रीनगर के ए.पी.एफ. के साथी विकास बड़थ्वाल, गणेश बलूनी, प्रदीप अंथवाल, प्रमोद पैन्यूली, जफर भाई, संजय भट्ट, खजान दा, मोहित दा, दिनेश कोठियाल, नितेश एवं समस्त ए. पी. एफ.परिवार को हार्दिक धन्यवाद देते हैं। ये साथी समय-समय पर इस यात्रा में जुड़ रहे थे और इस कारवां को आगे बढ़ा रहे थे। इन साथियों से भी बहुत कुछ सीखने को मिला।
इस यात्रा में शायद हमने सिखाया कम और सीखा बहुत ज्यादा। शिक्षक साथी कल्याण रावत, सुमन रावत, सुरेंद्र रावत, सुंदर नौटियाल, मनीष सर का हार्दिक आभार एवं धन्यवाद। हमारे रास्ते को सुगम बनाने एवं बेहतर रहने की व्यवस्था के लिए श्री प्रशांत नेगी (उत्तरकाशी, बड़कोट), श्रीमती गरिमा व्यास (उत्तरकाशी), श्री जगत बिष्ट, राखी जुयाल,मनीष सर, जाकिब भाई,(टिहरी) मोहित दा व दिनेश दा (पुरोला) ,सुमन रावत (सांकरी) कल्याण रावत (जखोल), अंबुज भाई (चकराता,देहरादून) को हार्दिक हार्दिक आभार एवं धन्यवाद देते हैं, इस यात्रा में सहयोग करने वाले हर साथी का धन्यवाद जिन्होंने इस यात्रा को बेहतरीन शानदार और ऊर्जावान बनाया।