प्रमोद साह
इन दिनों गंगा जमुनी तहजीब में एक जलधारा को कम करने की साजिश जारी है . तथ्य और इतिहास बदलने की जल्दबाजी है . यह जाने बगैर इस सांझी विरासत का इतिहास लहू के रंग से भी गाडा़ और सांझा है । दूब सी हैं , इसकी जड़ें .उखाड़ो उजाडों मगर फिर – फिर हरी होकर उग आंएगी . दूब सी ही चीरायु है .हमारी सांझी विरासत और कितना समृद्ध है .इसकी सांझी शहादत का इतिहास आईए समझें .
1750 आते-आते व्यापारिक कंपनी ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत की राजनीति में अपना दखल प्रारंभ कर दिया और राजाओं से कर वसूलने में सहायता देने का प्रस्ताव रखा .खुद एक तिहाई उपज कर के रूप में लेना ईस्ट इंडिया कंपनी ने प्रारंभ किया .और खुदके बड़े-बड़े अनाज के गोदाम बना लिए ।
दमन और स्थानीय राजाओं की मदद के नाम पर 1763 आते-आते ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी सेना की संख्या 26 हजार तक पहुंचा दी . कोलकाता ईस्ट इंडिया कंपनी की राजधानी बनने को तैयार हो रही थी .तब कंपनी की अधिकांश गतिविधियां बंगाल और बिहार में केंद्रित थी .
#सन्यासी विद्रोह
1763 में भयंकर अकाल पड़ा तब ईस्ट इंडिया कंपनी को पहले भारतीय विद्रोह का सामना करना पड़ा . जिसे हम सन्यासी विद्रोह के रूप में जानते हैं तब सूफी फकीर और हिंदू सन्यासियों ने मिलकर अंग्रेजों के अनाज गोदामों पर धावा बोल दिया भूख से बिलखते भारतीयों को यह अनाज बांटा गया इस विद्रोह का नेतृत्व मजनू शाह फकीर और भवानी पाठक ने संयुक्त रूप से किया और यह विद्रोह बंगाल ,बिहार और उड़ीसा के जंगलों में 50 वर्षों तक चलता रहा , आनंद मठ में इसका उल्लेख है . जिसे ऐतिहासिक रूप में आनंद भट्टाचार्य ने लिखा है.
#1857 अट्ठारह सौ सत्तावन का पहला स्वतंत्र संग्राम तो हिंदू मुस्लिम एकता की बेमिसाल कहानी है . जो बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में लड़ी गई .इस जंग में जो सबसे बड़ा ईनाम 5o हजार ब्रिटिश हुकूमत ने रखा वह ईनाम दिलावर जंग अहमदुल्लाह शाह मद्रासी के ऊपर रखा गया . अंग्रेजो के खिलाफ बहादुर शाह जफर को जहां 2 गज जमीन नसीब ना हुई. वहीं जीते जी उन्हें नाश्ते की थाली में अपने दो जवान बेटे और एक पोते का सर देखने का भी जिक्र है . बहादुर शाह की पीड़ा हम समझ सकते हैं. ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पहला फतवा भी फजलें खैराबादी ने जारी किया ।जिन रानी लक्ष्मीबाई के बहादुरी के किस्से हम सुनाते हैं . उनका हर कदम पर साथ देने वाला सेनापति मीर बख्शी था . अपने जीते जी उसने झांसी की रानी की हिफाजत की झांसी की रानी के मारे जाने से पहले खुद भी मारा गया . 1858 में प्रकाशित यह तथ्य कि 1857 की आजादी की पहली लड़ाई में 51200 भारतीयों को फांसी की सजा दी गई. इनमें 27 हजार उलेमा शामिल थे .
1930 के खानी बाजार सत्याग्रह का हीरो खान अब्दुल गफ्फार खान जो अपने 90 साल की आयु में 45 साल जेल में रहा. जो वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जैसे नायकों का शुक्रगुजार रहा, इस सांझी विरासत ने ही एक भारत के स्वप्न को साकार किया.
काकोरी कांड के नायक राम प्रसाद बिस्मिल के साथ अशफाक उल्ला को क्या अलग करके देखा जा सकता है ?आजाद हिंद फौज में सुभाष चंद्र बोस के साथी कर्नल हबीबुर रहमान को हम भूल सकते हैं .
#आजादी के बाद . ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान जो आजादी के वक्त बलूचिस्तान में तैनात थे लेकिन उन्होंने पाकिस्तानी सेना में रहने से इंकार कर दिया उन्हें पाकिस्तानी सेना के जनरल पद का भी लालच दिया गया. लेकिन वह उसे ठुकरा कर भारतीय सेना में शामिल हुए और उन्होंने कबाईली युद्ध में लड़ते हुए 3 जुलाई 1948 को नौशेरा में शहादत दी शहादत से पहले वह कबायलीयो से उनके कब्जे के महत्वपूर्ण झांगल को मुक्त करा चुके थे . पाकिस्तान ने उन पर जिंदा मुर्दा इनाम रख दिया था. सैनिक मोहम्मद हामिद , को हम कैसे भूलें ,
और तो और एक वक्त भारत की समस्या रहे हैदराबाद के निजाम मौहम्मद उस्मान अली ने 1965 के पाक युद्ध में लाल बहादुर शास्त्री को उनकी अपील पर 5 हजार किलो सोना दिया जो आज भी सरकार को दिए गए दानों में सर्वाधिक है .
आजाद भारत के निर्माण में इसके खेत और खलिहान में हिंदू मुस्लिम का खून और पसीना साथ-साथ बहा है . डी.आर.डी.ओ की तरक्की और अग्नि मिसाइल को बनाने में एपीजे अब्दुल कलाम के योगदान को कैसे कमतर आंका जा सकता है . गंगा जमुना के लहलाती फसलों के मैदान में गंगा और जमुना दोनों का बराबर योगदान है . दोनों की सलामती में ही इस मुल्क की खुशहाली का मंत्र छिपा है .
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(खिलाफत आंदोलन की असफलता में छिपे हैं भारत विभाजन के बीज )