‘नैनीताल समाचार’ का होली अंक सदा से ही संग्रहणीय रहा है। अब जबकि कुमाउंनी होली का तेजी से शरण हो रहा है या वह व्यावसायिकता की ओर उन्मुख हो रही है, उसे संरक्षित करना और भी ज्यादा जरूरी हो गया है। इस क्रम में हम ‘नैनीताल समाचार’ के इस वर्ष के होली अंक की रचनाओं को क्रमश: वैबसाइट पर दे रहे हैं…
सम्पादक
तेरी पतली कमर लम्बा केश सुघड़
जल भरन गयी पनघट पर हो।
काहे को तेरो हीरा मुनड़ी। दो बोल।।
काहे को तेरो बीन सुघड़
जल भरन गयी पनघट पर हो।।
तेरी पतली कमर लम्बा केश सुघड़
जल भरन गयी पनघट पर हो ।
सोने की तेरी हीरा मुनड़ी। दो बोल।।
मोतियन को मेरो हार सुघड़
जल भरन गयी पनघट पर हो।।
तेरी पतली कमर लम्बा केश सुघड़
जल भरन गयी पनघट पर हो।
काहे की तेरी वांसुरी। दो बोल।।
काहे को तेरो बीन सुघड़
जल भरन गयी पनघट पर हो।।
तेरी पतली कमर लम्बा केश सुघड़
जल भरन गयी पनघट पर हो।
सोने की तेरी वांसुरी। दो बोल।।
लोहे को तेरो बीन सुघड़
जल भरन गयी पनघट पर हो।।
तेरी पतली कमर लम्बा केश सुघड़
जल भरन गयी पनघट पर हो।
– सोर घाटी की होली
शिव जी चले गोकुल नगरी।।
हाथ में ठिंगा कान में झोली
अंग भभूत रमायो हरी,
शिवजी चले।।
माता जसौदा भिच्चा लाई
मोतियन थाल भरी,
शिव जी चले।।
ना लूं हीरा ना लूं मोती
बालक झलक दिखाओ हरी,
शिव जी चले।।
माता जसौदा जातक लाई
शंकर दरसन पायो हरी,
शिव जी चले।।
तुमको बालक जुग-जुग जीवौ
हरि, हर शीष नवायो हरी,
शिव जी चले।।
उतर कैलास को लौटो फकीरा
फटक बघंबर ले झंझड़ी,
शिवजी चले।।
– प्रयाग जोशी की पुस्तक
‘भयो बिरज झकझोर कूमूं’ से
हाँ इधर को भी ऐ गुंचादहन पिचकारी
देखें कैसी है तेरी रंगबिरंग पिचकारी
तेरी पिचकारी की तक़दीद में ऐ गुल हर सुबह
साथ ले निकले है सूरज की किरण पिचकारी
जिस पे हो रंग फिशाँ उसको बना देती है
सर से ले पाँव तलक रश्के चमन पिचकारी
बात कुछ बस की नहीं वर्ना तेरे हाथों में
अभी आ बैठें यहीं बनकर हम तंग पिचकारी
हो न हो दिल ही किसी आशिके शैदा का ’नज़ीर’
पहुँचा है हाथ में उसके बनकर पिचकारी
– नज़ीर अकबराबादी
तुम अपने रँग में
रँग लो तो होली है।
देखी मैंने बहुत दिनों तक
दुनिया की रंगीनी,
किंतु रही कोरी की कोरी
मेरी चादर झीनी,
तन के तार छूए बहुतों ने
मन का तार न भीगा,
तुम अपने रँग में
रँग लो तो होली है।
– हरिवंशराय बच्चन
छिटका दे केश भंवर काली
छिटका दे केश भंवर काली छिटका दे हो।
जब तेरी स्योणि में डंडिया हो तो।
तेरी डंडिया मुझे प्यारो, छिटका दे हो।।
छिटका दे केश भंवर काली छिटका दे हो।
जब तेरी कपलि में विंदिया हो तो।
तेरो विंदिया मुझे प्यारो, छिटका दे हो।।
छिटका दे केश भंवर काली छिटका दे हो।
जब तेरी अंखियां में कजरा हो तो।
तेरो कजरा मुझे प्यारो, छिटका दे हो।।
छिटका दे केश भंवर काली छिटका द हो।
जब तेरी नकिया में नथिया हो तो।
तेरो नथिया मुझे प्यारो, छिटका दे हो।।
छिटका दे केश भंवर काली छिटका द हो।
जब तेरी छतिया में अंगिया हो तो।
तेरा अंगिया मुझे प्यारो, छिटका दे हो।
छिटका दे केश भंवर काली छिटका दे हो।
– सोर घाटी की होली
फूलों ने होली फूलों से खेली
लाल गुलाबी पीत-परागी
रंगों की रँगरेली पेली
काम्य कपोली कुंज किलोली
अंगों की अठखेली ठेली
मत्त मतंगी मोद मृदंगी
प्राकृत कंठ कुलेली रेली
– केदारनाथ अग्रवाल
केशर की, कलि की पिचकारी
पात-पात की गात सँवारी
राग-पराग-कपोल किए हैं
लाल-गुलाल अमोल लिए हैं
तरु-तरु के तन खोल दिए हैं
आरती जोत-उदोत उतारी
गन्ध-पवन की धूप धवारी
– सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
दुर्दिन देश मत दिखाओ छलिया,
कुछ मन की बात सुनाओ रसिया।
तेरे देश में जीडीपी की ग्रोथ बहुत है
महंगाई डायन को भगाओ रसिया।
दुर्दिन देश मत दिखाओ छलिया,
कुछ मन की बात सुनाओ रसिया।
तेरे देश में नेता घाघ बहुत हैं
कमीशन से तनिक बचाओ रसिया।
दुर्दिन देश मत दिखाओ छलिया,
कुछ मन की बात सुनाओ रसिया।
तेरे देश में बेरोजगारी की फ़ौज बहुत है
खट्ट-मिठ्ठ लॉलीपॉप न खिलाओ रसिया।
दुर्दिन देश मत दिखाओ छलिया,
कुछ मन की बात सुनाओ रसिया।
तेरे देश में सब्जबाग बहुत हैं
कभी तो अच्छे दिन दिखाओ न रसिया।
दुर्दिन देश मत दिखाओ छलिया,
कुछ मन की बात सुनाओ रसिया।
(यह पैरोडी होली ‘ब्रज मंडल देश दिखाओ रसिया’
की तर्ज पर आधारित है।)
चंद्रशेखर तिवारी, मार्फ़त नैनीताल समाचार