राजशेखर पंत
कल (9 जुलाई) शाम के वक्त मैं हल्द्वानी के एक पुराने मुहल्ले मल्लागोरखपुर में किसी के घर पर बैठा था। नैनीताल रोड पर स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया तथा हल्द्वानी म्युनिसिपल कारपोरेशन के बीच से निकलने वाली एक सड़क सीधे नवाबी रोड तक जाती है। एक पुरानी नहर इस सड़क के साथ साथ बहती है। पिछले एक साल से पता नही क्यों यह सड़क और नहर बहुत टूटी फूटी, खुदी-खुदाई हालत में है। कहा जा रहा है कि भविष्य में इसको भूमिगत किया जाना प्रस्तावित है, अतः खोद खाद कर इसका श्री गणेश शायद मुहूर्तानुसार कर दिया गया होगा। जिलाधीश महोदय के घर के ठीक सामने है यह सड़क और इससे लगी नहर। सड़क में बनी गड्ढेनुमा शक्लों में आजकल पानी भरा है। डेंगू के मच्छरों के पनपने के लिए यह एक बेहतरीन इंतज़ाम है। खैर.. थोड़ा विषयांतर हो गया, मैं बात 9 जुलाई की शाम की कर रहा था।
इन सड़क से एक गली सी निकल कर नवाबी रोड चौराहे तक जाती है, जिसके दोनों ऒर बने ज्यादातर मकान दशकों पुराने हैं। कल शाम 6 बजे के आस-पास जब वर्षा शुरू हुई तो यह सड़क कुछ ही देर में नदी में तब्दील होने लगी। थोड़ी देर बाद ही पानी गेट लांघ कर आंगन और घरों में घुसने लगा। में जिन सज्जन के घर पर था उनके आंगन में छलछलाता पानी अब कमरों में घुसने की तैयारी में था। तभी रसोई में चाय बना रही उनकी पत्नी घबराई हुई बाहर आईं और बताने लगीं की वाशरूम ओर किचन के ट्रैप से पानी उल्टा बाहर निकल रहा है। किचन वगैरा लबालब हो चुके हैं और अब पानी ड्राइंगरूम में आने की तैयारी में है। इसी बीच सड़क के दूसरी ओर रहने वाले जोशी जी वर्षा में भीगते हुए, हाफपैंट ओर टी शर्ट में ही आ धमके। उनके चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई थीं। सीवर का पानी वाशरूम में लगी टॉयलेट सीट से निकल उनके बैडरूम तक आ पहुंचा था।
लगभग 7 बजे वर्षा के थोड़ा थम जाने पर पानी का वेग थोड़ा कम हुआ। तब तक मुहल्ले के प्रत्येक परिवार के पास जल और सीवर-प्रलय के नितांत व्यक्तिगत अनुभव इकट्ठा हो चुके थे, जिन्हें साझा करने के लिए वे सड़क पर बेताबी से जमा होने लगे।
इन लोगों से बातचीत करने पर ज्ञात हुआ कि यह पानी प्रशासन की बेरुखी, lackadaisical attitude कहा जाता है जिसे अंग्रेज़ी में, का एक नायाब नमूना है। कभी यह क्षेत्र खेतों, बागीचों से भरा हुआ था। गूलों से पानी सखावतगंज से होता हुआ यहां आया करता था। गूलों के खंडहर अब भी बाकायदा ज़िंदा हैं, ओर ये आवारा बहते पानी को दिशा देने के अलावा इसे संग्रहित भी कर लेते हैं। वक्त गुजरने के साथसाथ खेतों में आलीशान इमारतें उगने लगीं, खूबसूरत नामों वाली कालोनियां बनीं, पर इनमें ड्रेनेज की सुविधा तो दरकिनार शायद उसकी कल्पना भी शुरू से नदारत रही थी, स्वाभाविक है ऐसी स्थिति में बेचारा मनमौजी फितरत वाला पानी भी जाये तो जाये कहाँ। भला हो मकानों के बीच ढक-दबा दी गई गूलों का जिन्होंने इसे मल्लगोरखपुर की सड़क का रास्ता दिखा दिया। इस सड़क का जो सिरा नवाबी रोड को छूता है, उससे होकर चौराहे का सारा पानी भी गोरखपुर की इसी वैतरणी में समाहित हो जाता है। दोनों सड़कों के संगम पर एक अदद नाली जरूर बनी है, पर वो शायद कूड़े से पटी रहती है या फिर भूलवश इतनी पतली ओर सकरी बन गयी थी कि एक सीमा के बाद पानी की अधिकता को बर्दाश्त नहीं कर पाती है। नतीजतन सखावतगंज से लेकर नवाबी रोड के चौराहे तक का सारा त्याज्य,लावारिस कूड़ा बरसात के पानी के साथ मल्लगोरखपुर की सड़क पर फैलने के लिए अभिशप्त हो जाता है। इस कूड़े में उपलब्ध त्याज्य आइटम्स की विविधता की कल्पना आप स्वयं कर सकते हैं। विस्तृत विवरण देना अशोभनीय होगा।
एक ओर रोचक बात मुझे यहां के बाशिंदों ने बताई। मौसमी नदी बन जाने वाली इस सड़क के दोनों ओर बने अधिकांश मकान आज से दस-बारह वर्ष पूर्व तक सड़क से काफी ऊंचे हुआ करते थे। इस पर कंक्रीट की एक के बाद एक परतें समय के साथ साथ चढ़ती चली गईं। यहां रहने वालों ने इस बात को बार बार प्रशासन के सामने उठाया भी कि सड़क के बार बार ऊँचा होने से बरसात का पानी घरों में घुसने लगेगा; पर शासन-अधिकारी-नेता और ठेकेदारों का गठजोड़ इस तरह की अनुपजाऊ बातों को प्रायः नज़रअंदाज़ कर देता है। अब खबर गर्म है कि इस सड़क पर फिर से कंक्रीट होने वाला है क्योंकि यह जगह जगह से टूट चुकी है। अगर इस बार भी बगैर पुरानी कंक्रीट हटाये नई बिछा दी जाती है तो इंशाअल्लाह, सड़क मकानों की ड्योढ़ी से खासी ऊंची हो जाएगी और पानी हल्की वर्षा में भी बेरोकटोक बैडरूम में पनाह ले सकेगा।
मुझे लगता है शायद सार्वजनिक निर्माण के दौरान किसी भी प्रोजेक्ट के प्रति हमारी approach कभी intigrated नहीं होती है।
यदि पानी की निकासी ठीक हो तो सड़क लंबे समय तक चलेगी, बीमारियों के फैलने का खतरा घटेगा ओर निश्चित रूप से टैक्सपेयर के पैसे का भी ठीक ठाक उपयोग होगा। पर हमारी सोच प्रायः निराली होती है। चूँकि मद में पैसा है इसलिए उसे खर्च करना है। ठेकेदार वाले गठजोड़ के लिए सड़क बनना इम्पॉर्टेन्ट है, क्योंकि पेमेंट तभी रिलीज़ होगा। बाकी समस्याओं से उसका कुछ लेना देना नहीं है। अब बचता है आपका हमारा जैसा साधारण आदमी। झेलना उसका काम है। कहते हैं अगर दुनिया से दुख तकलीफें खत्म हो जाएं तो लोग ईश्वर को भूलने लगेंगे। ठीक ऐसे ही अगर समाज से समस्याएँ खत्म हो गईं तो हमारे माननीय नेताओं और आफीसर्स को कौन ज्यादा पूछेगा। इसलिए इन समस्याओं के साथ जीने की आदत डालिये। बहुत से लोग इस दुनिया में इसीलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि आप हम परेशान हैं।
अगली बार जब बरसाती पानी घर में घुसे तो इस दृश्य को थोड़े पॉजिटिव नज़रिए से देखिएगा। ये सोचियेगा कि आपके घर में कभी आपका प्राइवेट स्विमिंगपूल हुआ तो कैसा दीखेगा।
टेंशन थोड़ी कम हो जाएगी।