अनिल अश्विन शर्मा
आप गंगा नदी का स्वरूप बचाने के लिए 5वीं बार अनशन कर रहे। कब अहसास हुआ कि गंगा का स्वरूप बिगड़ रहा है?
मुझे लगता है कि समय बीतने के साथ धीरे-धीरे गंगा के बारे में सरकार का, समाज का और मीडिया का भी ध्यान बढ़ रहा है। अगर मैं कहूं कि यह जागरूकता बढ़ने में मेरा भी थोड़ा सा प्रयास है तो गलत नहीं होगा। गंगा के बारे में कहूं तो पहली बार गंगोत्री तक 2006 में जाने का अवसर मिला। उससे पहले भागीरथी (गंगा नदी) 1978 में गया था। तब मैं पहली बार गया था तो मनेरी भाली फेज वन परियोजना का प्रारंभ था। उन्होंने वहां के इंजीनियरों के प्रशिक्षण के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर (आईआईटी) से एक टीम बुलाई थी। मैं भी उस टीम का सदस्य था। तब मुझे पहली बार नजर आया कि कितनी तेजी से भागीरथी का न केवल पर्यावरण खत्म हुआ है बल्कि भागीरथी का तेजी से विनाश भी हो रहा है। भागीरथी को मैं धरोहर भी मानता हूं। तब मैंने अपनी धरोहर बचाने के लिए यह निर्णय लिया।
गंगा की अविरलता पर खतरा है, इसका प्रवाह प्रभावित हो रहा, यह आपने कब महसूस किया?
जब मैं 2006 में वहां गया तो देखा कि गंगोत्री से 160 किलीमीटर नीचे धरासू में मनेरी भाली टू का पॉवर हाउस है। धरासू में एक मीटर के बराबर ही जल रहा होगा। मुझे आश्चर्य हुआ कि मई माह में भागीरथी में इतना कम जल। इसके बाद उत्तरकाशी में तो खूब जल है और प्रवाह भी है, लेकिन उत्तर काशी से दो-तीन किलोमीटर आगे तो भागीरथी में प्रवाह न के बराबर था। यह प्रवाह बमुश्किल एक घनमीटर प्रति सेकेंड था। सरकार जलविद्युत परियोजना को “रन आॅफ रिवर प्रोजेक्ट” कह रही है, भला इस रीवर में प्रवाह कहां है? इसे तो वास्तव में “रन इन द टनल” कहें तो बेहतर होगा। इसके बाद भागीरथी के ऊपर लगभग सौ किलोमीटर जो निर्माण कार्य हो चुका है, उसे एक इंजीनियर होने के नाते तोड़ना सही नहीं चाहता।
उसके ऊपर लोहारी नागपाला पर काम तेजी से चल रहा था, सुरंग आधी बन चुकी थी और इसके ऊपर गंगोत्री मंदिर से एक किलोमीटर नीचे, जहां भैरवघाटी परियोजना बननी थी। सरकार ने आश्वासन दिया कि हम इन परियोजनाओं को बंद तो नहीं करेंगे लेकिन गंगा का पर्यावरणीय प्रवाह बनाए रखेंगे। तब मुझे लगा कि यदि सरकार नदी का प्रवाह बनाए रखती है तो एक हिसाब से यह एक उपलब्धि ही कही जाएगी। पर उसके बाद पर्यावरणीय प्रवाह कितना हो यही तय नहीं हो पा रहा था। तब एक विशेषज्ञ समिति बनी। लेकिन उन विशेषज्ञों में कोई आम राय नहीं बनी। ऐसे में मुझे 2009 में एक बार फिर से उपवास करना पड़ा। इसके बाद लोहारी नागपाला पर काम तुरंत बंद करने का आदेश जारी हुआ। इसके बाद ही नेशनल गंगा रीवर बेसिन अथॉरिटी(एनजीआरबी) का गठन किया गया। साथ ही गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया।
लेकिन, लोहारी नागपाला पर तो उच्च न्यायालय ने स्थगन आदेश दे दिया, तब आपने क्या किया ?
जी हां, आपकी बात सही है लोहारी नागपाला के बंद करने का जो आदेश था उस पर उच्च न्यायालय का स्थगन आदेश हो गया। ऐसे करने से मेरा प्रयास निरर्थक हो गया। जब अदालती रास्ते से सफलता नहीं मिली तो 2010 में तीसरी बार उपवास करना पड़ा। तब अंतत: भागीरथी के ऊपर के सौ किलोमीटर बनने वाले तीनों प्रोजेक्ट बंद हुए। और उस इलाके को सेंसेटीव जोन घोषित किया गया।
वर्तमान सरकार से आपको कितनी उम्मीद है कि वह गंगा नदी के स्वरूप को बचाने में कदम उठाएगी?
शुरू में तो हमें लगा कि यह (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) सही आदमी है, जब उन्होंने कहा कि मुझे मां गंगा ने बुलाया है, मां गंगा के लिए काम करना है। इसके बाद सत्ता में आते ही गंगा के लिए अलग मंत्रालय बनाया और “रिजुवनेशन” शब्द का उपयोग किया। इसका मतलब नवीनीकरण नहीं होता है। इसका अर्थ होता है पुरानी स्थिति को बहाल करना। लेकिन उसके बाद से अब तक कोई काम हुआ नहीं। आज चार होने को आए कुछ नहीं हुआ। मुझे तो लगता है कि सरकार नई गंगा बनाने पर तुली हुई है। जैसे वे “नया भारत” तो कहते ही हैं। लेकिन मैं यह कहना चाहूंगा कि मैं “नए भारत” में भी नहीं रहना चाहूंगा, लेकिन कम से कम मैं गंगा को नई गंगा बनते हुए नहीं देख सकता। वास्तव में यह सरकार पूरी तरह से धोखा दे रही है और विशेष रूप से मोदी जी धोखा दे रहे हैं।
आपने गंगा नदी को बचाने के लिए एक कानून बनाने की बात की है, क्या कानून बनाना इस समस्या का हल है?
देखिए कानून बनाने की बात को मैं इस रूप में नहीं लेता हूं कि आप ऐसा नहीं करेंगे तो आपको इतनी सजा मिलेगी। मेरे कानून का मतलब एक संपूर्ण प्रबंधन तंत्र से है। इसे आप लॉ कहें, एक्ट कहें या कानून कहें, कहने का अर्थ कि एक्ट बनाकर ऐसा आॅटोनमस यानी स्वायत्तशासी संस्थान हो जिसमें किसी तरह से सरकार की दखलंदाजी न हो। और, संस्थान में गंगा को जानने व समझने वाले लोग ही काम करें। क्या आईआईटी के लिए एक्ट नहीं बना। हमने गंगा के लिए 2011 में एक ड्राफ्ट बनाया था और 2012 में इसे केंद्र सरकार को भेज भी दिया था।
गंगा नदी की परिस्थितिकी (इकोलॉजी) अब तक किस तरह से नष्ट हो रही है?
देखिए, गंगा नदी में जितने भी प्रकार के बैक्टीरिया, मछली आदि जीव-जंतु हैं, बांध बनते ही वे खत्म होने लगते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि मछली क्या बांध बनने के बाद नीचे से उछल कर ऊपर जा सकती है? या ऊपर से कूद कर नीचे जा पाएगी? उदाहरण के लिए हिल्सा मछली है जो बंगाल की खाड़ी से ऊपर तक यानी गंगोत्री और बदरीनाथ तक अंडे देने जाती थी। अब बांध बनने के बाद हिल्सा इधर से उधर कैसे जा सकती है। इसी तरह से गंगा में पाई जानेवाली विशेष डॉल्फिन है जो कि अब नीचे तो कहीं भी नहीं मिलती।
सरकार का दावा है कि उसने गंगा में जाने वाले कई बड़े नालों का रास्ता बदल दिया है और कई जलशोधन संयंत्र बनाए हैं। क्या गंगा के लिए ये सरकारी प्रयास नाकाफी हैं?
केंद्रीय मंत्री गडकरी ने अपने पत्र में मुझसे कहा था कि हमने कानपुर के सीसामऊ नाले के 140 एमएलडी प्रवाह में से 80 एमएलडी को डायवर्जन किया। 80 एमएलडी तो डायवर्जन की अधिकतम क्षमता हुई। 140 एमएलडी का क्या हुआ? नाले का औसतन प्रवाह? जिस समय, जिस दिन नापा गया उस का प्रवाह? मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि यह नाले का अधिकतम (कम से कम पिछले 10 वर्ष का अधिकतम) नहीं है।
जिसे गंगा नदी की चिंता होती है, वह अधिकतम की बात करता है। सरकार कहती है कि बहुत सी जगहों पर एसटीपी बना दिया है। सवाल उठता है कि ये एसटीपी पर किया जाने वाला खर्च गंगा के मद से क्यों खर्च किया जा रहा है।
आपसे नेशनल मिशन आॅफ क्लीन गंगा के निदेशक राजीव रंजन मिलने आए थे। आपको कोई आश्वासन मिला?
मुझसे मिलने आए थे। मुझे यह आशा नहीं थी कि मेरे पास पहुंचे राजीव रंजन ने “नीरी” की रिपोर्ट देखी भी होगी। हालांकि उन्होंने कहा कि उन्होंने गंगा पर किए गए अलग-अलग अध्ययनों को देखा। और अन्य नदियों से तुलना करने पर पाया कि गंगा नदी के जल में रोगनाशक क्षमता अधिक है। मैंने उनसे प्रश्न किया कि आपने यह रिपोर्ट देखी तो इसके बाद कोई प्रोजेक्ट क्या रोका? उन्होंने कहा कि अभी तो अध्ययन हो रहे हैं। इस पर मैंने उनसे और अध्ययन करने को कहा। उन्होंने मुझे सरकार द्वारा बनाए एक्ट का नया ड्राफ्ट दिया और कहा कि मैं इसे देख लूं। मैंने उन्हें कहा, नए एक्ट में थोड़ा-बहुत परिवर्तन किया गया है। नहीं तो यह हमारे द्वारा तैयार किया गया ड्राफ्ट ही है।
हिन्दी वैब पत्रिका ‘डाउन टू अर्थ्’ से साभार