सुप्रीम कोर्ट ने मुम्बई हाई कोर्ट की नागपुर बैंच के इस निर्णय पर अमल फिलहाल इस आधार पर रोक दिया है कि हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले के सभी पहलुओं पर विचार नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर अगली सुनवाई दिसम्बर में होगी। -संपादक
गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत पांच साल से अधिक समय तक जेल में रहने के बाद बॉम्बे उच्च न्यायालय (नागपुर बेंच) ने शुक्रवार को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और पांच अन्य को कथित माओवादी लिंक के आरोप से बरी किया और तत्काल रिहाई का आदेश दिया।
गौरतलब है कि माओवादी होने और माओवादियों की मदद के नाम पर गिरफ्तार किये गये आरोपियों में से एक पांडु पोरा नरोटे की बीते अगस्त माह में मौत हो चुकी है। महेश तिर्की, हेम मिश्रा, प्रशांत राही और विजय नान तिर्की इस मामले में साईबाबा के साथ अन्य आरोपी थे।
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार ने नहीं दिया स्टे
अभी मिली जानकारी के अनुसार उच्च न्यायालय के बरी करने संबंधी इस आदेश के विरुद्ध महाराष्ट्र सरकार आज शुक्रवार को ही गुहार लगाने सर्वोच्च न्यायालय पहुंची थी। जहां महाराष्ट्र सरकार को यह तगड़ा झटका लगा है।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को साईबाबा को कथित माओवादी संपर्क मामले में बरी करने के हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार करते हुए महाराष्ट्र सरकार को इस बात की अनुमति दे दी कि वह तत्काल सूचीबद्ध किए जाने का अनुरोध करते हुए रजिस्ट्री के समक्ष आवेदन दे सकती है।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायामूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि अदालत बरी करने के आदेश पर रोक नहीं लगा सकती क्योंकि विभिन्न पक्ष उसके सामने नहीं हैं।
इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा कि उसने मामले की फाइल या हाई कोर्ट के फैसले पर भी गौर नहीं किया है। आप मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने के संबंध में भारत के प्रधान न्यायाधीश के प्रशासनिक निर्णय के लिए रजिस्ट्री के समक्ष आवेदन दे करते हैं।
हाईकोर्ट ने दिया तत्काल रिहाई के आदेश
नागपुर खंडपीठ के जस्टिस रोहित देव और जस्टिस अनिल पानसरे की खंडपीठ ने फैसला सुनाया। अदालत ने आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए के तहत दोषसिद्धि और उम्रकैद की सजा के खिलाफ उनकी अपील को स्वीकार कर लिया है। कोर्ट ने शारीरिक विकलांग साईं बाबा की तत्काल रिहाई का आदेश जारी किया है।
अदालत ने साईबाबा के अलावा महेश किरीमन टिर्की, पांडु पोरा नारोते (दोनों किसान), हेम केशवदत्त मिश्रा (छात्र) और प्रशांत सांगलीकर (पत्रकार) को भी बरी कर दिया है। उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। इसके अलावा विजय टिर्की (श्रमिक) को भी बरी कर दिया गया। उन्हें 10 साल कारावास की सजा दी गई थी। नारोते की मामले में सुनवाई लंबित होने के दौरान मौत हो गई।
पीठ ने आदेश दिया कि यदि याचिकाकर्ता किसी अन्य मामले में आरोपी नहीं हैं तो उन्हें जेल से तत्काल रिहा किया जाए।
प्रोफेसर गोकरकोंडा नागा साईबाबा अपने कथित माओवादी संबंधों के लिए 2017 से नागपुर की केंद्रीय जेल में बंद थे। उनके खिलाफ पुलिस ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था।
इस मामले में 7 आरोपियों में एक पांडु नरोटे की मौत जेल प्रशासन की घोर लापरवाही के कारण जेल में मौत हुयी थी, जबकि डीयू प्रोफेस साईं बाबा की पत्नी कई बार उनकी लगातार स्वास्थ्य खराब रहने के कारण रिहाई की गुहार लगा चुकी थी, इसीलिए कोर्ट ने उन्हें तत्काल रिहा करने के आदेश दिये हैं।
यूएपीए के तहत वैध मंजूरी -हाईकोर्ट
इस मामले में पहले गिरफ्तार किए गए पांच आरोपियों के खिलाफ 2014 में यूपीएपी के तहत अभियोग चलाने को मंजूरी दी गई थी और साईबाबा के खिलाफ इसकी अनुमति 2015 में दी गई। पीठ ने टिप्पणी की कि जब 2014 में निचली अदालत ने अभियोजन पक्ष के आरोप पत्र का संज्ञान लिया था, तो उस समय साईबाबा के खिलाफ यूएपीए के तहत अभियोजन चलाने की मंजूरी नहीं दी गई थी। हाईकोर्ट ने कहा कि यूएपीए के तहत वैध मंजूरी न होने के कारण निचली अदालत की कार्यवाही ‘‘अमान्य’’ है और इसलिए निचली अदालत का आदेश दरकिनार किए जाने और रद्द किए जाने के लायक है।
अदालत ने कहा कि गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत मामले में आरोपी के खिलाफ अभियोग चलाने की मंजूरी देने का आदेश ‘‘कानून की दृष्टि से गलत एवं अवैध’’ था।
निचली अदालत से मिली थी आजीवन कारावास की सजा
मार्च 2017 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में सत्र न्यायालय द्वारा यूएपीए की धारा 13, 18, 20, 38 और 39 और भारतीय दंड संहिता की 120 बी के तहत रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (आरडीएफ) के साथ कथित लिंक के लिए इन लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। जिनपर कथित तौर पर गैरकानूनी माओवादी संगठन से संबद्ध होने का आरोप लगाया गया था।
जी एन साईबाबा को ‘गैरकानूनी गतिविधि’, ‘आतंकवादी गतिविधि’ और ‘आंतकवादी संगठन का एक सदस्य’ के तौर पर षडयंत्र करने का आरोप लगाकर 7 मार्च 2017 को उम्रकैद की सजा सुना दी गई थी। यह सजा मुख्यतः प्राथमिक दस्तावेजों और वीडियो, जिसे कोर्ट ने साक्ष्य मान लिया, के आधार पर ही उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया (माओवादी) का सदस्य करार दे दिया।
जीएन साईबाबा पोलियो ग्रस्त होने के चलते दोनों पैरों से विकलांग हैं। मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक वह 90 प्रतिशत विकलांग है। वे 2017 से नागपुर की केंद्रीय जेल में बंद थे, जबकि उनकी लगातार गंभीर होती हालत को देखते हुए अदालत से उन्हें रिहा करने की बार-बार अपील की गई थी।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी कहा था कि जीएन साईबाबा पर जो आरोप हैं वे मनगढंत हैं और उनका मुकदमा अंतर्राष्ट्रीय अपराध मानकों के मुताबिक नहीं है।
2014 में भी हुए थे गिरफ्तार
जीएन साईबाबा को 2014 में भी गिरफ्तार किया गया था मगर उन्हें जमानत दी गई थी। बाद में उनकी पुनः गिरफ़्तारी हुई थी।
2017 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) और प्रतिबंधित रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (आरडीएफ) के साथ संबंधों के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। जीएन साईबाबा लगातार इनकार करते रहे कि उनका प्रतिबंधित संगठन से कोई लेना-देना नहीं है।
आंध्रप्रदेश के एक गरीब परिवार में जन्में जीएन साईबाबा 9 मई 2014 में गिरफ्तार होने से पहले दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े रामलाल कॉलेज में अग्रेजी के प्रोफेसर थे। वे लगातार जनवादी अधिकारों और जन आंदोलनों से जुड़े और सक्रिय रहे। वे हमेशा आदिवासियों-जनजातियों के मुद्दों पर आवाज़ उठाते रहे हैं।
‘मेहनतकश.इन’ से साभार