मदन चन्द्र भट्ट
आज भारतभर में फैले उत्तराखण्डी यह भंली-भाँति जानते हैं कि शहीदों के खून से सिंचित उत्तराखण्ड आन्दोलन अभी जारी है। आन्दोलन के दो मुख्य उदेश्य थे-
1. गैरसैंण में राजधानी बनाना।
2.आरक्षण रहित उत्तराखण्ड।
इन दोनों उदेश्यों की सफलता तक आन्दोलन जारी रहेगा और जारी रहना चाहिए। फ्रांस की क्रांति की तरह उत्तराखंण्ड आन्दोलन के कारण भी दो भागों में विभक्त हैं।
1.भौगोलिक कारण 2. तात्कालिक कारण
मेरा इन दोनों कारणों से गहरा सम्बन्ध रहा है। यह कहना अत्युक्ति न होगा कि पिथौरागढ़ में आन्दोलन का श्री गणेश मैंने किया। जब उत्तरप्रदेश के सबसे असफल मंत्री मुलायम सिंह यादव का कक्षाओं में प्रवेश सम्बन्धी आरक्षण का काला कानून राजकीय पी.जी. कांलेज पिथौरागढ़ में पहुँचा, मैं प्रवेश समिति का अध्यक्ष था। मेरे साथ प्रो. नरेन्द्र सिंह नेगी विज्ञान संकाय, श्री जगदीश चन्द्र गढ़कोटी कला संकाय और डॉ हरीश चन्द्र जोशी वाणिज्य संकाय के प्रवेश प्रभारी थे। डॉ के.सी. शर्मा प्राचार्य के कक्ष में आयोजित प्रवेश समिति की बैठक ‘काले कानून‘ को पढ़ते ही मैंने कहा- लगता है उत्तराखण्ड राज्य के लिए आन्दोलन का समय आ गया है। डॉ. के. सी. शर्मा अल्मोड़ा अशासकीय विघालय से राजकीय सेवा में आये थे लोक सेवा आयोग से चयनित होने के कारण वरिष्ठता में मुझसे कनिष्ठ थे। श्री सोबन सिंह जीना की कृपा से मुझसे वरिष्ठ हो गये थे लेकिन मेरा पर्याप्त आदर करते थे। मैं पहले से महाविघालय में मुख्य अनुशासंक और छात्रसंघ चुनाव प्रभारी था उन्होंने आते ही मुझे एन.एस.एस. प्रभारी और परीक्षा समिति का सदस्य बना दिया ताकि मुझे आर्थिक लाभ हो जाए। मेरी बात सुनते ही उन्होंने ठहाका मार कर कहा-‘भटृ जी‘! मुझे भगा तो नहीं दोगे। मैंने कहा- आप तो चन्दौसी के रहने वाले हैं जो गोरखा आक्रमण 1804 ई0 तक उत्तराखण्ड का अभिन्न अंग रहा। उत्तराखण्ड की दक्षिणी सीमा शिवालिक के शाकम्भरी मन्दिर तक भी पृथ्वीराज रासों में साफ लिखा है- दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान के समय कुमाऊँ गढ़वाल का राज्य शिवालिक तक फैला था-संव्वालक्ख उत्तरा सयल कमऊगढ़ दूरंग।
रजत राज कुमुदभाशी हय गय दज्य अभंग।। वे अल्मोड़ा कांलेज में रसायन विज्ञान के विभागध्यक्ष और वार्डन रहे।
आम कुमाऊँनी से अधिक पहाड़ी बोलना जानते थे। अपने लड़के की शादी पिथौरागढ़ के मखौलिया परिवार में की थी। मुसकुराकर बोले तब तो आन्दोलन के लिए पहला चन्द्रा मैं देता हूँ। मैंने कहा-थोड़ा छात्रसंघ से बात कर लें फिर आन्दोलन के लिए चन्दा इकटृ करेंगे। प्राचार्य कक्ष से बाहर निकलते ही छात्रसंघ का अध्यक्ष श्री निर्मल पण्डित और सचिव श्री महेन्द्र लुण्ठी दिखायी दिये। उन्हें इतिहास विभाग में बुलाकर मैंने प्रवेश में आरक्षण समस्या के साथ ही उत्तराखण्ड राज्य की आवश्यकता पर विस्तार से समझाया। पण्डित गोविन्द बल्लभपन्त की उत्तराखण्ड विरोधी नीति, उत्तराखण्ड़ क्रान्ति दल और पर्वतीय विकास के बाधक तत्वों को ऐसे समझाया कि वे आन्दोलन का नेतृत्व करने के लिए तैयार हो गये। श्री निर्मल पण्डित ने महाविधालय की घंटी बजायी और आधे घंटे के अन्दर सारी कक्षायें छोड़ कर विधार्थी महाविधालय के प्रांगण में आ गये। मेरा उत्तराखण्ड राज्य की आवश्यकता पर एक सारगर्भित भाषण हुआ और उसके साथ ही विधार्थी ‘मुलायम सिंह चोर है‘। ‘आरक्षण समाप्त करो‘। उत्तराखण्ड राज्य ले के रहेंगे के नारे लगाते हुए पिथौरागढ़ के सभी इंटर कालेजों में गये और उन्हें बन्द कराकर गांधी चौक में टेन्ट लगाकर धरने पर बैठ गये।
विधार्थियों के जाते ही मैंने शिक्षक मंच की बैठक की और विद्यार्थियों के आन्दोलन का सारे उत्तराखण्ड में फैलने के लिए सभी दैनिक और स्थानीय समाचार पत्रों के लिए आन्दोलन के समाचार छपवाने के लिए भेज दिए। मैं उस समय स्नातकोत्तर शिक्षक संघ का अध्यक्ष था। आन्दोलन को तेज धार देने के लिए मैंने नई कार्य कारिणी का चुनाव कराया और अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ. जगदीश चन्द्र पन्त को नया अध्यक्ष चुनलिया। मैं उस समय जी.आई.सी. पिर्थारागढ़ में अभिभावक संघ का अध्यक्ष था, मैंने प्रधानाचार्य श्री चन्द्र जोशी से कहकर तीन दिन बाद अभिभावक संघ की बैठक बुलायी और उसे भी आन्दोलन के लिए प्रेरित किया।
कुछ ही दिनों में आन्दोलन आकाश पहुँच गया। मुजफ्फरनगर काण्ड, मंसूरी काण्ड और खटीमा गोलीकाण्ड से स्थिति कुछ नाजुक हो गई। विधार्थियों की पढ़ाई में व्यवधान हो गया था। साल बर्बाद होने की नौबत आ रही थी। धरना स्थल पर जाकर आयोजित सभा में मैंने प्रस्ताव रखा कि कुछ दिनों धैर्य रखा जाय, स्कूल कालेज और आंफिस खोल दिये जाय। मैंने गांधी जी द्वारा असहयोग आन्दोलन को वापस लेने की पूरी क्रिया और उसके परिणाम को समझाया। आन्दोलनकारी स्वयं थक चुके थे अतः उन्होने मेरा प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। सर्वसम्मति से यह तय हुआ कि महिला इंटर कालेज माटकोट में आन्दोलन स्थागित करने कि लिए एक सभा की जाय और उसकी अध्यक्षता सासंद श्री जीवन शर्मा से करायी जाय। उसमें वर्तमान और भूतपूर्व विधायकों से आन्दोलन स्थागित करने के लिए पक्ष में भाषण कराये जाय। जब श्री जीवन शर्मा, श्री भगत सिंह, कोश्यारी के उत्तराचंल दीप होटल में पहुँचा, उसके स्वागत के लिए एकत्रित भीड़ में आगे बढ़कर श्री निर्मल पण्डित ने अपने झोले से जूतों की माला निकाली और द्रुतगति से जीवन शर्मा के गले में डाल दी, उसके साथ ही आन्दोलनकारियों ने गगनभेदी तालियाँ बजा दी, फोटोग्राफरों ने कई फोटो खींच दीं। श्री जीवन शर्मा उसी समय पिथौरागढ़ से चला गया। यही घटना उसके राजनैतिक जीवन का अन्त कर गई। भारतीय जनता पार्टी ने अखबारों में छपी खबरों के कारण नये चुनाव में उसे टिकट नहीं दिया और उसकी जगह श्री बच्ची सिंह रावत को सांसद का टिकट मिला।
अब समस्या यह आयी कि भाटकोट सम्मेलन में विधायकों की बैठक में कौन अध्यक्षता करें? घटना के संयोजक और प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री लक्ष्मण सिंह महर के बेटे श्री बलबीर सिंह महर से प्रस्ताव रखा कि मारकोट सम्मेलन के अध्यक्ष डाँ मदन चन्द्र भटृ रहेंगे। प्रसिद्व कुमाऊनी कवि श्री महेन्द्र सिंह मटियानी ने प्रस्ताव का अनुमोदन कर दिया। सभा में वर्तमान विधायक श्री महेन्द्र सिंह महरा और भूतपूर्व विधायक श्री गोपाल दत्त ओझा, श्री नारायण सिंह भैंसौड़ा आदि के भाषण हुए। जब मेरी बारी आयी तो कई ने प्रश्न किया कि आपने इतनी जोर-शोर के साथ आन्दोलन में भाग क्यों लिया? मैं उस समय उत्तराखण्ड शोघ संस्थान में उपाध्यक्ष था। मैंने उसके तत्वाधान में दी स्तर की निबन्ध प्रतियोगिता करायी-‘उत्तराखण्ड राज्य क्यों? कब और कैसे? और नकद पुरस्कार दिये। एक स्तर विघाथियों के लिए था और दूसरा वयस्कों के लिए। उसमें भारतभर से उत्तराखण्डियों ने निबन्ध भेजे। मैंने अपने आवास पर स्थित ‘सुमेरू संग्रहालय‘में पुरस्कार वितरण समारोह कराया।
मैंने कहा-जब उत्तराखंण्ड राज्य बनेगा तो गैरसैंण में विधान परिषद बनेगी। उसमें गढ़वाल और कुमाऊँ से दो इतिहासकार मनोनित होंगे। मैं कुमाऊँ के इतिहास पर पहला पी एच.डी हूँ अतः मुझे भी मनोनित होने की संभावना हुई। इतिहासकारां की तरह कवियों और वैज्ञानिकों को भी गैरसैण में विधान परिषद के न बनने से निराशा हुई। शिक्षकों के प्रतिनिधि भी विधान परिषद में जाते थे। श्रीमती इन्दिरा हृदेयश भी शिक्षकों की नेता से ही राजनीति में आयी। इस प्रकार भाटकोट के सम्मेलन के बाद अस्थाई रुप से उत्तराखण्ड आन्दोलन स्थगित हो गया।
उत्तराखण्ड की स्थापना के बाद गैरसैंण में विधानसभा तो नहीं बनी लेकिन पण्डित नारायण दत्त तिवारी के समय पर्यटन परिषद और अभिलेख समिति में तथा श्री हरीश रावत के समय संस्कृति उत्रयन और मेला वर्गीकरण समिति में सदस्य मनोनीत होने से मुझे संतोष हो गया।