सुशील उपाध्याय
ये संभव नहीं है कि इतिहास सभी सवालों का जवाब दे सके। अक्सर बहुत सारे उत्तर केवल अनुमानों और परिस्थितियों को देखकर हासिल किए जाते हैं। दोनों देश अपनी आजादी के 75 साल पूरे होने का जश्न मना रहे हैं। और एक-दूसरे की नकारात्मक प्रतिस्पर्धा में खड़े हुए हैं। दोनों तरफ से ये कोशिश लगातार जारी है कि इतिहास का निर्माण आज को सामने रखकर किया जाए। इसलिए ये भुला दिया जाता है कि लाहौर में आगजनी के बाद पंडित नेहरू गुस्से से आपा खो बैठते हैं क्योंकि वे तब भी शायद इस पर यकीन नहीं कर पा रहे थे कि अब लाहौर भारत का नहीं, पाकिस्तान का हिस्सा है। नेहरू ही क्यों, जिन्ना भी इस उम्मीद में अपना मुंबई का घर नहीं बेचते क्योंकि उन्हें यकीन था कि वे छुट्टियों के दिनों में मुंबई के अपने घर में वक्त बिताया करेंगे। हालांकि, उनका ये ख्वाब कभी पूरा नहीं हुआ।
इसके साथ दो और बातों को याद कर सकते हैं, अपनी शहादत से कुछ दिन पहले महात्मा गांधी सार्वजनिक तौर पर ऐलान करते हैं कि वे पासपोर्ट के बिना पाकिस्तान जाएंगे। तब दूसरी तरफ से ये नहीं कहा जाता कि गांधी के आते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। बल्कि, पाकिस्तान सरकार इस बात की तैयारी में जुटती है कि गांधी के पाकिस्तान आने पर क्या-कुछ किया जाएगा। इसी दौरान अमेरिका के राजदूत से बात करते हुए जिन्ना उम्मीद जताते हैं कि भारत-पाकिस्तान का रिश्ता लगभग वैसा होगा जैसा कि अमेरिका और कनाड़ा का है। सीमाएं खुली रहेंगी और दोनों तरफ के लोग पहले की तरह ही एक-दूसरे के यहां आ, जा सकेंगेे। दोनों बातें सपना हो गई। गांधी जी पाकिस्तान नहीं जा सके और जिन्ना की मौत के बाद दोनों देशो की सीमाएं कंटीले तारों की जकड़ का शिकार हो गई।
आजादी के वक्त लाखों लोग मारे गए, करोड़ों बेघर हुए, लेकिन दोनों देशों के नेतृत्व के बीच वैसी कटुता नहीं थी, जैसी कि आज है। मौजूदा हालात में इस बात पर यकीन करना मुश्किल होगा कि गांधी जी की शहादत पर पाकिस्तान ने एक दिन का राष्ट्रीय शोक रखा था। पाकिस्तान का झंडा गांधी जी के सम्मान में आधा झुका रहा था और वहां की नेशनल असेंबली में भी उन्हें याद किया गया था। 22 मई 1947 को डॉन में प्रकाशित एक इंटरव्यू में जिन्ना ने कहा था कि वे पाकिस्तान और भारत के बीच एक दोस्ताना और भरोसेमंद रिश्ता चाहते थे। उन्होंने उम्मीद जताई थी कि भारत का विभाजन दुश्मनी के लिए आधार नहीं बनेगा, बल्कि दो कौमों के बीच के तनाव को हमेशा लिए खत्म कर देगा। और इस इंटरव्यू से काफी पहले गांधी जी ने कहा था कि ये बंटवारा दुश्मनों का नहीं, दो भाइयों का बंटवारा है जो भविष्य में भाई और दोस्त बनकर ही रहेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
बाद में ऐसा दौर आया जब दोनों देशों ने अपने इतिहास को नए सिरे से सजाना-चमकाना शुरू किया और तब पाकिस्तान में गांधी का चरित्र एक घाघ बनिये का चरित्र बना दिया गया, वैसे ही जैसे भारत ने जिन्ना को देश का दुश्मन और खलनायक साबित किया। अब भारत या पाकिस्तान में कोई इस बात को भी याद नहीं रखना चाहेगा कि जिन्ना ने अपने पहले संबोधन में पाकिस्तान को शरिया कानून से चलने वाला देश घोषित नहीं किया था, बल्कि मजहब को सत्ता से दूर रखने की बात कही थी। अब पाकिस्तान में उनके पहले भाषण की रिकॉर्डिंग को कोई नहीं सुनना चाहता। दो साल पहले वुसत खान ने बीबीसी के लिए एक रिपोर्ट की थी, जिसमें बताया गया था कि नेशनल आर्काइव से जिन्ना के इस भाषण की रिकाॅर्डिंग ही गायब हो गई है।
पीड़ादायक परिस्थितियों के बीच दो देश बन गए, दोनों तरफ इस बात को स्वीकार भी कर लिया गया, लेकिन कोई एक महीन धागा जरूर है जो मिलने-जुलने और एक-दूसरे के यहां जाने की तड़प को खत्म नहीं होने देता। इस वक्त यूट्यूब पर ऐसे हजारों पाकिस्तानी गाने, फिल्में, रील्स, टीवी सीरियल मिल जाएंगे जिनमें दिल्ली, आगरा, बंबई और अमृतसर का जिक्र होगा। इन सबका जिक्र करने वाले सभी लोग नफरती और आतंकवादी नहीं हैं। इसके साथ ही अपने आसपास के उन लोगों को भी देखिए जो एक बार मौका मिलने पर लाहौर, कराची या पेशावर न जाना चाहेंगे।
दोनों तरफ ऐसे हजारों लोग अब भी जिंदा हैं जिनकी जन्मभूमि उनसे छूट गई, वे एक बार वहां जाना चाहते हैं या इस ओर आना चाहते हैं। जुलाई, 2022 में 90 साल की पूना निवासी महिला रीना वर्मा का किस्सा सभी को याद है कि उन्हें कराची में अपना घर देखने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़े। पाकिस्तान में भी ऐसे हजारों लोग हैं जो न केवल पंजाब, बल्कि उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, बल्कि पूरे भारत में बिखरी अपने पुरखों की धरती देखना चाहते हैं। लेकिन, आज हालात इतने अनुकूल नहीं हैं कि लोगों की आवाजाही पर कोई बंधन न हो।
ये सच्चाई है कि अपनी आजादी के बाद के शुरूआती 15-16 साल में जो पाकिस्तान था, वो अब नहीं है। कई तरह के खतरे इसके साथ नत्थी है। सबसे बड़ा खतरा तो यह है कि यदि एक बार किसी ने पाकिस्तान की यात्रा कर ली तो फिर दुनिया में जहां भी जाएंगे, इमीग्रेशन पर ये जरूर पूछा जाएगा कि पाकिस्तान क्यों गए थे। पाकिस्तान जाने या वहां किसी से संबंध रखने का मतलब ही ये हो गया है कि संबंधित व्यक्ति किसी संदिग्ध गतिविधि में लिप्त रहा होगा। दोनों तरफ की सरकारों ने एक-दूसरे को विलेन की तरह ही प्रस्तुत किया है और अब नई पीढ़ी को अपनी राष्ट्रभक्ति साबित करनी हो तो पाकिस्तान को गाली देना सबसे सुविधाजनक विकल्प है। हालांकि, इस दुतरफा गाली-बौछार के बीच जब भारत के नीरज चोपड़ा अपने साथी खिलाड़ी अरशद नदीम को शुभकामनाएं देते हैं तो लगता है कि उम्मीद का दीया बुझा नहीं है। इतना ही नहीं, काॅमनवेल्थ गेम्स में भारतीय पहलवान दीपक पुनिया पाकिस्तान के मोहम्मद ईनाम को हराकर इसे दो दुश्मनों की लड़ाई साबित नहीं करते तो स्वाभाविक तौर पर खुशी होगी ही।