अरुसा बजाज
कक्षा 11, ऑल सेंट्स कॉलेज, नैनीताल
नेशनल एसोसियेशन फॉर द ब्लांइड की शुरुआत सन 1947 में श्रीमान वी.जे. खरे के द्वारा मुम्बई में की गयी थी। यह एसोसियेशन हर आयु के नेत्रहीन लोगों के लिये काम करती है। इस एसोसियेशन के द्वारा विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिनमें एकीकृत शिक्षा तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। विविध प्रकार के साधनों और तरीकों की मदद से नेत्रहीन बच्चों और बड़ों को जीवन जीने का नया तरीका सिखाया जाता है। यह ऐसोसियेशन लोगों को अंधेरे के दलदल से निकालकर उन्हें एक नये उजाले में लाने को प्रयासरत है।
इस साल बहुत सोच-विचार करने के बाद और जिंदगी की असलीयत देखने की तीव्र इच्छा के कारण मैं अपने बड़े भाई और नाना जी के साथ नेशनल एसोसियेशन फॉर द ब्लाइंड की हल्द्वानी शाखा में गई। यहाँ मेरी मुलाकात धानिक जी से हुई जिन्होंने हमें यह ब्रांच खोलने के मकसद से परिचित करवाया।
धानिक जी ने हमें बताया कि 1994 में उनके 14 वर्ष के बेटे की आँखों की रोशनी चली गयी। हजारों अस्पतालों में चक्कर काटने के बावजूद उनके बेटे की आँख ठीक नहीं हो पायी। अंत में शंकर नेत्रालय चेन्नई में डॉक्टरों ने उनके भ्रम को तोड़ दिया और उन्हें साफ-साफ बता दिया कि उनके बेटे की आँख कभी ठीक नहीं हो पायेगी। इस बड़ी घटना के बाद धानिक जी ने सउदी अरब में अपनी नौकरी छोड़ दी और साथ ही साथ उन्होंने अपने बेटे को दिल्ली पब्लिक स्कूल, वसंत कुंज में डाल दिया, जहाँ वह अन्य सामान्य देखने वाले बच्चों के साथ पढ़ना और रहना सीख गया। उनका बेटा दिल्ली युनिवर्सिटी का पढ़ा हुआ है और आज डॉ. रेड्डीज में ऊँचे पद पर कार्यरत है। साथ ही उनके बेटे का स्वयं एक बेटा है जो सामान्य तौर पर देख सकता है।
अपने बेटे की सफलता को देखकर धानिक जी को बांकी नेत्रहीन लोगों के लिये काम करने का विचार आया। विचार बेहतरीन होने के बावजूद इसे निजी जिंदगी में लागू करने में उनके जीवन के कई वर्ष बीत गये। उन्होंने नेशनल एसोसियेशन फॉर द ब्लांइड की मुंबई ब्रांच के साथ संपर्क किया। उपकरण देने के विश्वास के अलावा एन.ए.बी मुम्बई कुछ और न कर सकी। अब इस एसोसियेशन को शुरू करने के लिये धानिक जी को फंड इकट्ठा करने में कई वर्ष लग गये और उनके पथ में कई रुकावटें भी आई। इन प्रयासों के बीच एसोसियेशन की नींव बनाते हुए धानिक जी ने सर्वप्रथम हल्द्वानी में एक गैराज किराये पर लिया। मुंबई से एक ब्रेल जानने वाले अध्यापक को बुलाया और आस-पास के बच्चों को रोजाना घर से गैराज लाने के लिये गाड़ी का इंतजाम किया। उस दौरान पाठ्य सामग्री भी कैसटों पर रिकॉर्ड की जाती थी जिसमें अंग्रेजी के बड़े शब्दों के उच्चारण में कई समस्यायें आती थी और बच्चे के लिये समझना भी मुश्किल हो जाता था और एक साल बीतने के बावजूद भी कोई सकारात्मक परिणाम हासिल नहीं हो पाया।
सन् 2005 में धानिक जी ने एक चिकित्सा शिविर लगाया जहाँ उनकी मुलाकात उस समय के जिलाध्किरी डॉ. राकेश कुमार से हुई जो स्वयं एक जाने-माने आँख के डॉक्टर रहे थे। उन्होंने धानिक जी को प्रेरणा दी और उनका हौंसला दोबार जीवंत हो गया। इसके बाद धानिक जी ने बड़ी मेहनत, परिश्रम और लगन से सन् 2009 में एक कमरे की मदद से अपनी एसोसियेशन की शुरूआत की, जहाँ नेत्रहीन लोगों को सही शिक्षा मिलने लगी। इसके कई वर्ष बाद उन्होंने नेशनल एसोसियेशन फॉर द ब्लांइड की हल्द्वानी ब्रांच को सही तरीके से डिवेलप किया।
आज के समय नेशनल एसोसियेशन फॉर द ब्लांइड की हल्द्वानी ब्रांच में लगभग 90 बच्चे पढ़ते और रहते हैं। यह बच्चे पहाड़ के अलग-अलग कोनों से आकर अपनी जिंदगी यहाँ बसाते हैं। इस एसोसियेशन के कई बच्चे उत्तर प्रदेश से भी आये हैं। यहाँ बच्चों को ब्रेल और अन्य गतिविधियों के द्वारा पढ़ाया व सिखाया जाता है। कई बच्चे दिल्ली युनिर्वसिटी जैसे बड़े कॉलेजों से पढ़ कर बैंकों और अन्य जगह नौकरी कर रहे हैं। यहाँ बच्चों के लिये पढ़ने रहने और खाने का भरपूर इंतजाम है।
हमारी मुलाकात एसोसियेशन के कई बच्चों से हुई। इनमें से दो बच्चे – ज्योति और प्रिया ने हमें एसोसियेशन के अलग-अलग कमरों और जगहों से परिचित करवाया। यहाँ लड़कों के रहने के लिये एक डॉरमेट्री थी और लड़कियों के लिये एक अलग डॉरमेट्री। यहाँ पर एक रसोईघर, भोजन कक्ष, कम्प्यूटर लैब तथा अन्य और कमरे हैं। एक कमरे में कई बच्चे रस्सियों की मदद से एक गतिविधि में व्यस्त थे। रसोईघर में स्वादिष्ट भोजन बनाया जा रहा था। बच्चों के खेलने के लिये भरपूर झूले लगाये गये हैं।
अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि धानिक जी ने वो कर दिखाया जो असंभव था। उनकी जिन्दगी में हजारों रुकावटें आयी परन्तु वो फौलाद की तरह डटे रहे। उनकी मेहनत के कारण आज कई नेत्रहीन लोग अपने जीवन में सफल और खुश हैं। मुझे यह सीखने को मिला कि जिंदगी को कैसे जीना है वो मनुष्य के हाथ में होता है। कोई इंसान नेत्रहीन और गरीब होकर भी जिंदगी में संतुष्ट और खुश रहता है और कोई इंसान अमीरी और सफल होकर भी जिंदगी में दुःखी रहता है। मैंने यह भी सीखा कि अगर मेहनत और शिद्दत से कुछ चाहो तो उसे अवश्य हासिल कर सकते हो। धानिक जी के निडर प्रयासों के मेरा सलाम।