नवीन बिष्ट
अब नहीं सुनाई देगा पूष माह के पहले इतवार से श्री लक्ष्मी भण्डार हुक्का क्लब के ऐतिहासिक बैठकी कक्ष में शिवचरण पाण्डे ‘शिबदा’ का ठेठ कुमाउंनी बैठकी होली का मौलिक गायकी का हृदय के स्पर्श करने वाला स्वर। कुमाऊँ की परम्परागत बैठकी होली व रामलीला के जग विख्यात रंगकर्मी शिवचरण पाण्डे 15 मार्च 2022 की ठीक दूसरी होली की अलस्सुबह जीवन के 87 वसन्त भोग कर परम तत्व में विलीन हो गए। अपने धुन के पक्के ‘शिबदा’ अपने काम के प्रति जीवनपर्यन्त समर्पित और प्रतिबद्ध रहे। अनुशासन प्रिय ‘शिबदा’ की कमर्ठता का ही परिणाम कहा जाएगा कि नगर के छोटे से मौहल्ले की रामलीला को अंतर्राष्ट्रीय मंच में ख्यातिलब्धता का जामा पहनाने का श्रेय उनके खाते में जाना स्वाभाविक है। कहा जा सकता है कि हुक्का क्लब से श्री लक्ष्मी भण्डार की साल दर साल की सफलता की यात्रा शिवचरण पाण्डे के कुशल नेतृत्व का ही प्रतिफल रहा। एक दौर था जब पौष माह के पहले रविवार से प्रारम्भ होकर होली की बैठक और टीके की संध्या से समापन कार्यक्रम का आगाज किया जाता था तो जून माह के 20, 21, 22 या किसी मंगलवार के दिन तुलसीकृत रामचरित मानस के सुन्दरकाण्ड के साथ रामलीला मंचन की तालीम शुरू होती थी। ‘शिबदा’ ही सबसे आगे रहते थे। लगातार तीन माह की कड़ी तालीम के बाद कलाकारों को मंच में उतारा जाता रहा है। आगे भी यही रवायत कायम रहेगी ऐसी आशा की जानी चाहिए। ऐसा संकल्प वर्तमान कार्यकर्ताओं ने लिया भी है और इस बात की तस्दीक ‘शिबदा’ के बाद क्लब को समर्पित त्रिभुवन गिरी महाराज ने अपनी बातचीत में भी कही है।
बचपन से सांस्कृतिक नगरी की गतिविधियों का प्रभाव शिवचरण पाण्डे के जीवन में पड़ना स्वाभाविक था। शिक्षा पूर्ण करने के बाद वे स्वास्थ्य विभाग में सेवारत रहे। दिन भर सरकारी नौकरी के बाद का समय पूरी तरह हुक्का क्लब, जो 1978 के दौर में कतई बीज के तौर पर रहा, जिसे अनुकूल वातावरण देकर अंकुरण के साथ धीरे-धीरे पल्लवित पुष्पित करने के सभी जतन किए गए। आज वह पौधा, पूरे वृक्ष का रूप ही नहीं ले चुका है बल्कि अपनी सघन छाया से अल्मोड़ा की पहचान बन सांस्कृतिक आलोक चतुर्दिक फैला रहा है। यों तो हुक्का क्लब की स्थापना को लेकर त्रिभुवन गिरी महाराज बताते हैं कि 1907 में हुक्का क्लब की स्थापना के अभिलेख मौजूद हैं, प्रगति की यात्रा 1978 से गतिशीलता में लगातार इजाफा होता रहा जिसमें ‘शिबदा’ के नेतृत्व का ही कमाल कहा जाएगा। हालाकि इस यात्रा में ‘शिबदा’ अकेले नहीं थे पूरी जमात उनके साथ रही। शिवचरण पाण्डे की कड़ी मेहनत का ही परिणाम कहा जाएगा कि जिस साल 1978 में पहली रामलीला समिति संसाधनों के साथ शुरू हुई संयोग कहा जाएगा कि उसी साल प्रशासन के मुखिया जिलाधिकारी सुशील कुमार त्रिपाठी ने अल्मोड़ा के दर्जन भर स्थानों में हो रही रामलीलाओं के बेहतर प्रदर्शन पर पुरस्कार का ऐलान किया और प्रतियोगिता में हुक्का क्लब को प्रथम स्थान मिला। यह एक ऐसा बिन्दु था जिसने उनका उत्साह बढ़ाया और सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए। खजांची मौहल्ले की रामलीला को अनेक राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर शानदार प्रदर्शन करने का मौका मिला।
एक ओर जहां ‘शिबदा’ निर्देशन में निपुण थे तो अभिनय व गायन के लिए उन्हें आगे भी याद किया जाएगा। दशरथ के पात्र का उनका अभिनय सदा याद किया जाता रहेगा। बैठकी होली में वैसे तो वह हर राग को बखूबी निभाते थे, लेकिन राग पीलू उनका प्रिय राग था। ”होरी को खिलाड़ी ऐसो बृज को बसइया गड़वा भरन नहीं देत” या ”मैं ना जाऊं बृज में दूध बेचन, रंग डारी चुनर मेरी आज बृज में” जैसी तमाम होलियों की लम्बी श्रृंखला है। 1 जुलाई 1935 को जन्मे शिवचरण पाण्डे की गायकी का कितना सम्मान और मान था इसका अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि किसी बड़ी होली बैठकी का आगाज बिना ‘शिबदा’ के नहीं होता था। उनकी गायकी मौलिक तो थी ही परंपरागत ठसक उनके गायन को अलग पहचान देती है। कहा जा सकता है कि शिवचरण पाण्डे जैसे परंपरागत गायकी वाले अब नहीं के बराबर रह गए हैं। उनकी आवाज में जो मिठास व कसक थी अद्भुत कही जा सकती है। एक बात जो ‘शिबदा’ को सबसे अलग बनाती थी वह है उनकी बेबाक टिप्पणी और स्पष्टवादिता। सांस्कृतिक विरासतों को संवारने व संरक्षित करने के लिए उन्होंने क्लब को अपने परिवार से ऊपर रखकर काम किया। दिन के भोजन के बाद उनका पूरा समय क्लब को समर्पित रहता जिसमें वह सांस्कृतिक या रंगकर्म का ही कार्य नहीं करते थे बल्कि ‘पुरवासी’ जैसी साहित्यिक पत्रिका का संपादन भी उनके कार्य का हिस्सा होता था। उनके देहावसान की घड़ी में उनके द्वारा गायी जाने वाली तर्ज याद आ रही है- ”करले श्रृंगार चतुर अलबेली साजन के घर जाना ही होगा..।”