कान्ता प्रसाद साह
15 अक्टूबर 20 को घर से निकला तो उड़ती सी खबर सुनी-राजेन्द्र लाल साह नहीं रहे। तुरन्त वृन्दावन स्कूल की ओर रुख किया, देखा-बोझिल वातावरण, उदासी पसरी हुई थी। संभवतः वहीं का कार्मचारी था, मुझे देखकर समझ गया बोला-परसों तो इस क्यारी में हमने काम किया, फूल लगाये। कल रात में ये सब हो गया।
इस बीच प्रायः सड़क पर घूमते हुए, बाजार में सामान लेते भेंट हो जाती थी ‘‘अब लम्बा नहीं जाता हूं बीच में बैठ जाता हूँ। बांकी सब ठीक है।’’ ठीक ही दिखते भी थे, आशंकित होने का कोई कारण नहीं था। फिर फोन पर उनके पुत्र आलोक से बात हुई पता चला कि हृदयाघात हुआ, नैनीताल अस्पताल, हल्द्वानी फिर बरेली ले गये। वहाँ कोविड संक्रमण भी घोषित कर दिया जो जानलेवा साबित हुआ। पहले कभी बातचीत में कहते थे वेन्टिलेटर, आई.सी.यू में मत रखना। इनकी हकीकत जानते थे।
24 जनवरी 1938 को नैनीताल में जन्मे। सी.आर.एस.टी में शिक्षा ग्रहण की और फिर इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिये पिलानी चले गये। पता नहीं क्यों अधूरी पढ़ाई छोड़कर साल डेढ़ साल में वापिस आ गये। नन्दादेवी की मूर्ति को कलात्मक रूप देने वाले मूलराज के सम्पर्क में आये। उनसे सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए और जब मूलराज नैनीताल छोड़कर गये तो उनका प्रतिष्ठान ‘कला-मंदिर’ इनके हाथों में आ गया। नगर पालिका के सदस्य रहते हुए लोकनिर्माण समिति के अध्यक्ष के रूप में इंजीनियरिंग की पढ़ाई का अनुभव इनके काम आया और स्नोव्यू के सुन्दरीकरण, विश्राम गृह आदि का काम इनके कार्यकाल में हुआ। उस समय अन्य स्थानों की भी योजनाएँ बनीं। नगर की सड़कों के निर्माण और सुधार के काम में तथा बाद में शारदा-संघ के भवन निर्माण में भी पॉलिटेक्निक के श्री असवाल के सहयोग से अपनी अधूरी ही सही, पिलानी की पढ़ाई के अनुभव का भी इन्होंने सार्थक उपयोग किया।
बहुआयामी व्यक्तित्त्व के धनी, धीर गम्भीर, दृष्टिवान, शारदा-संघ के संस्थापक अपने पिता चन्द्रलाल साह (चन्द्र लाल बाबू के नाम से विख्यात) के निधन के उपरान्त ये 1971 में शारदा-संघ के महासचिव बने। इनके कार्यकाल में भजन-कीर्तन, होली के अतिरिक्त शतरंज, टेबिल टेनिस, अखिल भारतीय नाटक प्रतियोगिता, रामलीला, नन्दा देवी मेले में सहभागिता आदि आयोजन शारदा-संघ करता रहा। चन्द्रशेखर पंत संगीत विद्यालय 1982 में इनके कार्यकाल में प्रारम्भ हुआ।
उन्होंने दिल्ली की अखिल भारतीय शंकर आर्ट प्रतियोगिता से प्रेरित होकर शारदा-संघ में ‘आॅन द स्पाॅट’ बाल-चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन शुरू किया, जिसमें शुरू में 85 प्रतिभागियों से प्रारम्भ होकर अब हर वर्ष 2000 से अधिक बच्चों का प्रतिभाग होता है। राजेन्द्र लाल साह ‘ऐपण’ के भी आधिकारिक जानकार थे। इसे बचाये रखने के उद्देश्य से उन्होंने न सिर्फ नैनीताल में, बल्कि अल्मोड़ा, बागेश्वर, रानीखेत, भीमताल आदि स्थानों पर भी शारदा-संघ के सदस्यों के सहयोग से ऐपण प्रतियोगितायें आयोजित करवाई।
शारदा-संघ की हीरक जयन्ती (2013-14) के अवसर पर प्रकाशित होने वाली स्मारिका के लिये मुझे इनके साथ काम करने का मौका मिला। तब उनसे बहुत मिलना-जुलना हुआ एवं कई सारी बातें जानने-समझने का अवसर मिला। स्मारिका का लगभग तीन चैथाई कार्य सम्पन्न हो चुका था तो राजेन्द्र लाल साह गंभीर रूप से रोगग्रस्त हो गये। मेरी मेहनत के बावजूद शायद स्मारिका इनकी परिकल्पना के अनुरूप नहीं बन पाई। तथापि वह खूब सराही गई।
वे बागवानी के भी शौकीन थे। बाजार के अपने घर में स्थानाभाव के कारण अपनी बहन के घर जाकर अपना शौक पूरा करते थे। तल्लीताल वृन्दावन में आकर तो इनको मनचाहा अवसर मिल गया। गुलदावरी पर तो इन्होंने अनेकों प्रयोग भी किये।
गम्भीर व्यक्तित्व के धनी, प्रायः चुप रहने वाले स्व. राजेन्द्र लाल साह जी से लोग नैनीताल के बारे में तमाम जानकारियाँ लेने आते थे। ऐसे अवसर पर सन्दर्भित ज्ञान के बारे में उनका वाचाल व्यक्तित्व खुलता जाता था और सभी को प्रभावित व चकित करता था। अन्तर्मुखी व्यक्तित्व का यह व्यक्ति अपने कलात्मक, बौद्धिक, सामाजिक समझ में कितना समृद्ध एवं दृढ़ था यह तथ्य इनसे मिलकर और संवाद करके ही ज्ञात होता था।
अपने व्यक्तित्व-व्यवहार में शान्त चित्त मौन-मुखर राजन दाज्यू उतनी शान्ति से ही इस संसार से विदा हो गये।