पृथ्वी लक्ष्मी राज सिंह
पकोडे़ का नहीं हुआ तो क्या! पहाड़ तो हुआ – हाईकोट हुआ, रोड़ से हुआ – विकास हुआ, उकाव हुआ – हुलार हुआ, बस थोड़ी सी दूर गांव हुआ – उसके फलांग भर बाद अपना घर हुआ। इसिलिए अपने लिए काकूनी भुटने का स्कोप भी अमठिए की जड़ हुआ I
मैं भी अलग जो क्या हुआ, सब है जो इसी के अन-तर-गत हुआ। रात-रात तक रामलीला हुआ, दिन-मान-भर का उनता हुआ, गैंडे की खाल सुखा दे ऐसा चटक हुआ अक्टूबर का घाम जो क्या हुआ। ऐसे में कुछ नी हुआ तो भी फसकिलास स्वरोजगार का विकल्प खुल्ला हुआ, हुआ।
भांग के पेड़ की चम्पी मसाज करते करते अचानक आँखों के आगे फानी तुफान आ गया, लगा कच्ची अतर से दिमाग की बत्ती गुल हो गयी| तुफान हटा तो देखा घटाकोप काला बादल जतिया जैसा सामने खड़ा है, वह मुझे पेले, भांग का पेड़ केले का रूप ले ले, इससे पैलेई बादल में से कुरी जैसा महका, धतुरे के फूल से छजा-धजा पुष्पक विमान प्रकटा, फिर वो बी अखोड़ के बगल्ल जैसा खुला और… कसम विकास के विज्ञापनों की, उसमें से भी मशरूम जैसा दिव्य पुरुष मेरी जान पहचान का और सरकते हुए सा निकला।
मैंने आंख मली, सरक तो मगरमच्छ रहा है, मोदी तो बस उस पर सवार हैं।
मैं हक्का बक्का ! क्या बोलूं ! जिसे याद किया, वही हाजिर !
हाथ जोडूं तो उनकी नजर दम में है, देख लेंगें तो कतई निखाणी कर देंगे।
वह भी मूड में लग रहे हैं। हें हें हें हंस रहे हैं। लगा कि बस कहेंगे; मांगो! क्या मांगते हो!
मैं कहुंगा; आप आ गये बहुत है प्रभु! अब चाहो तो पेट्रोल और चार सौ बढ़ा दो!
उन्होंने मेरा दमची दिमाग पढ़ लिया पंडित जायसी कहा, शेर मुल्ला गालिब का उधेड दिया। बोले;
” मैं जानता हूँ वो जो तू पुछेगा सवाल में”
सदी के महानायक के मिलते हैं ब्रेक के बाद वाले विज्ञापन की र्तज में मैंने भी अपने पन्द्रह लाख के पापी सवाल को दबा दिया।
मोदी भी देने के मूड में थे चुंकि २०१४ के घोषणा पत्र के बीच बालाकोट आ गया था इसीलिए बिना तथास्त्तु कहे ही मुझे भी २०१९ का लेटेस्ट इंटरव्यू थमा दिया।
नोटबन्दी, जीएसटी और सर्जिकल स्ट्राइक में उनके आगे किसी की चली थी क्या! तो मैंने भी बिना हील-हुज्जत के ले लिया।
अब सब तयशुदा था तो मैंने भी परंपरागत प्रश्न शुरु किया;
“आप हिसालू कैसे खाते हो!”
वह लज्जाए;
” कसार देवी में फकीरी करते हुए क्या आपको कभी ऐसा लगा कि भीख तो छोड़ो अल्मोड़े वाले चाय तक नहीं पूछते?”
वह शर्माये;
मैंने फिर पूछा; “एक प्रश्न और पूछू?”
वह भड़के और सारे प्रश्न छीन लिए ; ” किससे पूछे जाने चाहिए प्रश्न?”
बेख्ता मेरे मुंह से निकल गया; ” नेहरु से !”
” कौन देगा जवाब ?”
” जनता देगी! जनता देगी! जनता देगी!”; मेरी स्मृति में डेली शौप से उत्तर झनझनाने लगे।
“मोदी प्रश्न पूछने से पहले…”
“मोदी जी को प्रश्न दो! प्रश्न दो! प्रश्न दो!”
“तब मिलेगा जवाब, कैसे मिलेगा …”
“ईंट से ईंट बजा बजा के”
इतिहास कैसे पढ़ाया!
सब गलत!
शिक्षा, जेएनयू, गणित ?
गलत! गलत! गलत!!
उन्होंने जगरिए की जैसी चाल दी;
“पहली कम्पूटराइजड डिग्री?”
“मोदी!”
“पहला डिजिटल कैमरा?
“मोदी!”
“”पहला इमेल?”
“मोदी! मोदी! मोदी!”
वातावरण दिव्य हो चुका है, कब बीड़ी बनी पता ही नहीं चला!
सुलगाई तो फिर सब घुप्प घटाकोप…..