तथ्यानवेषण टीम
अंकिता भण्डारी की हत्या और प्रारम्भिक जांच में पाई गई प्रशासनिक लापरवाही तथा शासन के लोगों के लिप्त होने तथा आनन-फानन में सबूतों को नष्ट करने के प्रयासों को देखते हुए उत्तराखंड महिला मंच ने देश भर के जिम्मेदार महिला संगठनों के साथ मिलकर तथ्यान्वेषण के लिए एक टीम गठित की । 6 राज्यों की इस 20 सदस्यीय टीम ने अलग-अलग दलों में बंट कर 27-28-29 अक्टूबर को पौड़ी, श्रीनगर, ऋषिकेश और देहरादून का दौरा किया। 27 अक्टूबर को एक टीम श्रीकोट पौड़ी (अंकिता के माता-पिता के पास) गई। शाम को श्रीनगर में विभिन्न स्थानीय व्यक्तियों पत्रकारों एवं जन संगठनों के साथ बैठक की। दूसरी टीम ने ऋषिकेश में वनन्तरा रिसोर्ट व चीला बैराज के आस-पास की जगहों का दौरा किया, धरना स्थल पर लोगों से बातचीत की।
28-29 अक्टूबर को इस टीम ने एसआईटी प्रभारी पी रेणुका देवी, राज्य महिला आयोग, डीजीपी उत्तराखंड, पर्यटन सचिव, मुख्य सचिव से वार्ता की तथा केस से संबंधित अपने निष्कर्षों और मांगों को पेश किया। 19 वर्षीय अंकिता भण्डारी के गायब होने की सूचना मिलने पर उसके पिता वीरेंद्र सिंह के लगातार पटवारी पुलिस चौकी, जिलाधिकारी राज्य महिला आयोग, विधान सभा अध्यक्ष से गुहार लगाने पर भी एफआईआर दर्ज होने में 72 घंटे लग गए जबकि किसी भी चौकी/थाना में जीरो एफआईआर दर्ज हो जानी चाहिये थी। एफआईआर दर्ज नहीं करना और तत्काल जांच शुरू नहीं करना प्रशासन की एक बड़ी लापरवाही है। प्रशासन की यह गैरजिम्मेदार और असंवेदनशील रवैया अंकिता की मौत का एक बड़ा कारण बना। इसके लिए जिम्मेदार पदाधिकारियों पर कार्यवाही होनी चाहिये और उन्हें दंडित किया जाना चाहिये। यह इसलिए भी हुआ क्योंकि आरोपी सत्तापक्ष से जुड़े हुए सम्पन्न लोग हैं और स्थानीय कर्मचारियों को प्रभावित कर रहे थे।
इस दल ने ऋषिकेश के वनंतरा रिज़ॉर्ट, चीला वैराज तथा अन्य स्थानों का दौरा करने पर पाया कि रिसॉर्ट अवैध जमीन पर बना हुआ है। जमीन आयुर्वेदिक फैक्ट्री के नाम पर ली गई थी। यह पूरे उत्तराखंड में चल रहे ज़मीनों की खरीद फरोख्त से जुड़ा मामला भी है जिसका जनता लगातार विरोध कर रही है। हमें यह भी जानकारी मिली कि वहाँ की कर्मचारियों के साथ पहले भी यौन उत्पीड़न हुआ था। वहाँ विशाखा गाइड लाइन या कार्यस्थल पर यौन हिंसा 2013 कानून के तहत कोई भी आंतरिक शिकायत समिति नहीं थी व जिला स्तरीय स्थानीय शिकायत समिति की कोई जानकारी नहीं थी। यह भी पता चला कि पर्यटन उद्योग के साथ-साथ निजी क्षेत्र की किसी भी इकाई में ये समितियाँ नहीं गठित हैं। समितियों का नहीं होना भी अंकिता की मौत का एक कारण है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने इन कानूनों का खुला उल्लंघन हो रहा है। छोटे बड़े सभी निजी संस्थानों में यह समितियाँ बननी चाहिये।
पुलिस और प्रशासन की लापरवाही से कई महत्वपूर्ण साक्ष्य नष्ट हो गए, जैसे- रिसॉर्ट के सील नहीं होने से उसके एक हिस्से पर बुलडोजर चला दिया गया। अंकिता की पोस्टमार्टम टीम में किसी गायनोकोलॉजिस्ट का नहीं होना भी एक बड़ा सवाल है। महिलाओं के ऐसे किसी भी मामले में गायनोकोलॉजिस्ट की उपस्थिति सुनिशचित हो ऐसी एड्वाइजरी जारी होनी चाहिये।
तथ्यान्वेषण टीम ने पाया कि अभी भी कई जरूरी साक्ष्य मौजूद हैं। साक्ष्यों को सुरक्षित रखना और गवाहों को लगातार पूर्ण सुरक्षा देना जरूरी है। हमें डर है कि आरोपी, प्रशासन और सत्ता पक्ष का गठबंधन बचे हुए साक्ष्यों से छेड़छाड़ कर सकता है, गवाहों पर दबाव डाल सकता है और केस को कमजोर कर सकता है। इन्ही मुद्दों को लेकर उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक याचिका स्वीकार की है। हम आशा करते हैं की उच्च न्यायालय की निगरानी में केस की पूरी प्रक्रिया चलेगी। हमें संतोष है की हाई कोर्ट ने सत्ताधारी पक्ष की विधायक रेनू बिष्ट की साक्ष्य मिटाने में भूमिका का संज्ञान लिया और आशा है की पुलिस उनको जांच के दायरे में लेते हुए उनपर सख्त कार्यवाही करेगी।
कोर्ट की निगरानी के साथ ही नागरिक संगठनों को भी कोर्ट में क्या प्रक्रिया चल रही है? इस पर पर नजर रखते हुए पूरी सतर्कता के साथ खड़े रहना होगा। हमे यह समझना होगा कि आरोपियों की गिरफ़्तारी के साथ यह लड़ाई खतम नहीं होती इसलिए हमारी आप सबसे अपील है कि अंकिता के परिवार के साथ इस कठिन और जटिल संघर्ष में हम सबको मजबूती के साथ खड़ा रहना है। आज उत्तराखंड में नौकरियों का अभाव है और उसमें भी धांधलियाँ हैं, ऐसे में अंकिता जैसी लड़कियों के जिनके आँखों में सपने हैं, आकांक्षाएं हैं, इस असुरक्षित माहौल में वे कहाँ जाएँ? यह भी जरूरी है कि ऐसे मामलों में पीडिता और उसके परिवार के पुनर्वास और राहत के लिए कोई स्थाई नीति बने और पटवारी व्यवस्था को खतम कर पुलिस व्ययस्था लागू हो।
तथ्यान्वेशण दल (फैक्ट फाइंडिंग टीम) में उत्तराखंड महिला मंच, पीयूसीएल, जनवादी महिला समिति, जनांदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, कर्नाटक विथ बिलकिस, महिला किसान अधिकार मंच, ऐपवा, भारतीय महिला फेडरेशन, छात्र संगठन आईसा, डीएसओ के सदस्य तथा पर्यटन विशेषज्ञ, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं।