राजीव लोचन साह
अब यह लगभग तय है कि नरेन्द्र मोदी का निजाम मई 2024 से आगे नहीं जा सकता, कम से कम लोकतांत्रिक ढंग से तो नहीं। सारे संकेत यही बता रहे हैं। कोई चमत्कार ही अब भाजपा को बचा सकता है। चार राज्यों, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में अगले दो महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं। जितने भी चुनाव पूर्व सर्वेक्षण आये हैं, उनमें कहीं भी भारतीय जनता पार्टी जीतती हुई नहीं दिखाई दे रही है। यह घोषणा स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया कर रहा होता तो सवाल उठाये जा सकते थे। मगर ऐसी खबरें वह गोदी मीडिया दे रहा है, जिसका काम ही पिछले नौ सालों में मोदी की असफलताओं को भी चरम सफलता बता देने का रहा है। यदि ऐसे ही चुनाव परिणाम आये तो एकाध अपवादों को छोड़ कर पूरी हिन्दी पट्टी में भाजपा का सफाया हो जायेगा और विंध्याचल के दक्षिण में तो भाजपा की दमदार उपस्थिति कहीं है ही नहीं। जिस नफरत के आधार पर भाजपा ने अपना विस्तार किया है, उस पर दक्षिण भारत के लोग ज्यादा विश्वास नहीं करते। और यदि ये चुनाव पूर्व सर्वेक्षण सही साबित हुए तो कमोबेश यही स्थिति सन् 2024 के लोकसभा चुनावों में भी दोहरायी जायेगी। तब तक कुछ और घटनायें भी घट चुकी होंगी। मोदी, अमित शाह और नड्डा की तानाशाही के नीचे पिस रहे क्षत्रप भी तब विद्रोह पर उतर आयेंगे, जैसा वसुन्धरा राजे करने भी लगी हैं, और हो सकता है भाजपा में एक विभाजन ही हो जाये। तब गोदी मीडिया भी पलटी मार रहा होगा और वे बुद्धिजीवी और कलाकार भी अपना मुँह खोलेंगे जो इस समय डरे-सहमे बैठे हैं। मोदी जी भी ये सच्चाई भली भाँति समझ रहे हैं। अपनी पार्टी के तपेतपाये नेताओं पर तो उनका विश्वास कभी था ही नहीं, जिस गोदी मीडिया में उनके प्राण बसते थे, उस पर भी उनका विश्वास टूटने लगा है। कुछ दिन पूर्व वे अगणित सामान्य यू ट्यूबरों की भाँति अपना चैनल सब्सक्राइब करने की अपील करते हुए नजर आये। एक तानाशाह की ऐसी असहायता करुणा ही उत्पन्न करती है।