राजीव लोचन साह
राहुल गांधी के नेतृत्व में कन्याकुमारी से श्रीनगर तक चल रही पदयात्रा 108 दिन में 2200 किमी. का फासला तय कर 24 दिसम्बर को दिल्ली पहुँच गई, जहाँ दस दिन विश्राम के बाद 3 जनवरी 2023 को यह आगे प्रस्थान करेगी। ऐसे किसी भी अभियान के दिल्ली पहुँचने पर उसे अच्छा मीडिया कवरेज भी मिल जाता है। मगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के रोड शो का घंटों-घंटों लाईव प्रसारण करने वाले टीवी चैनलों ने इस यात्रा में चल रही भारी भीड़ से अपने आप को यथासम्भव अलग ही रखा। इस रहस्य का पर्दाफाश भी शाम को लालकिले के सामने अपने आधे घण्टे के बेहद तीखे और साहसिक भाषण में राहुल गांधी ने किया। उन्होंने कहा कि मीडिया के मित्रों पर लगाम लगी हुई है, जिसके तहत वे लगातार ‘हिन्दू-मुस्लिम, हिन्दू-मुस्लिम’ चिल्लाते हुए जनता का ध्यान भटकाते हैं ताकि अडानी-अम्बानी द्वारा की जा रही देश के संसाधनों और सम्पत्तियों की लूट जनता की नजरों से ओझल रहे। उन्होंने कहा कि हिन्दू धर्मग्रंथों में कहीं नहीं लिखा है कि कमजोर पर अत्याचार किया जाये। इस यात्रा से राहुल गांधी को एक नैतिक बल मिला है और उनका कद विपक्षी नेताओं में सबसे ऊँचा हो गया है। मगर यदि यह यात्रा उन्होंने कांग्रेस के नेता के रूप में की है तो कुछ सवालों के जवाब देने से वे बच नहीं सकते। क्या क्रोनी कैपिटलिज्म भाजपा की ही देन है या कि यह कांग्रेसी राज में बहुत पीछे जाता है ? क्या कांग्रेस शासन में माओवाद के नाम पर दलित-आदिवासियों पर अमानुषिक अत्याचार नहीं हुए ? यदि राहुल कांग्रेस के नेता के रूप में यह सब कह-कर रहे हैं तो अतीत में जो कुछ हुआ है, उसकी जिम्मेदारी उन्हें लेनी पड़गी। मगर यदि यह सब वे अपनी निजी हैसियत से कह रहे हैं तो उनकी हैसियत एक सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक चिन्तक की ही बनी रह जायेगी। उनकी पार्टी के खग्गाड़ नेता उनके ऐसे विचारों से अपने आप को बेहद असहज महसूस कर रहे होंगे।
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