कमलेश जोशी
16 नवम्बर 2020 को केदारनाथ धाम के कपाट यात्रियों के लिए बंद हो गए व केदार बाबा की डोली को उनके शीतकालीन निवास ऊखीमठ के लिए धूमधाम के साथ रवाना कर दिया गया. कोरोना महामारी के चलते इस बार यात्रा लंबे समय तक बाधित रही लेकिन जैसे ही अक्टूबर माह में यात्रा की इजाजत मिली तीर्थयात्रियों में बाबा के दर्शन को लेकर अलग ही उत्साह नजर आया. अपनी दो बार की यात्रा में मैंने खास यह पाया कि कोरोना महामारी के चलते बुजुर्गों की इस बार यात्रा में भागीदारी न्यूनतम रही व केदारनाथ पहुँचने वाले श्रद्धालुओं में 90% से अधिक नौजवान युवा शामिल रहे.
2013 की आपदा के बाद से केदारनाथ न सिर्फ भारत में बल्कि विश्व पटल में जाना जाने लगा. आपदा की भयावहता को दुनिया भर के समाचार पत्रों व चैनलों ने कवर किया. इस तरह केदारनाथ “डार्क टूरिज्म स्पॉट” के रूप में दुनिया भर के सामने एक रहस्य की तरह स्थापित हो गया. पर्यटन की भाषा में डार्क टूरिज्म स्पॉट उस गंतव्य को कहते हैं जहॉं कभी कुछ अनहोनी या बुरा घटित हुआ हो और भविष्य में लोग उस भयावहता के अवशेष व उसकी दास्ताँ जानने के लिए आते-जाते रहे हों. केदारनाथ से पहले भारत में डार्क टूरिज्म स्पॉट का सबसे ताजातरीन उदाहरण था 26/11 के हमले के बाद मुंबई का ताजमहल होटल. जहॉं आज भी लोग उस आतंकी हमले की झकझोर देने वाली वारदात के सुबूतों को देखने जाते हैं.
केदारनाथ आपदा की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 21 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला केदारनाथ धाम बाढ़ की चपेट में आने के बाद 13 एकड़ में सिमट कर रह गया. केदारनाथ का पुनर्निर्माण दुनिया के दुर्गम इलाकों में किये जा रहे निर्माण कार्यों में से एक है जहॉं निर्माण कार्य के लिए एक लोहे के गार्डर को भी 8-10 मजदूर कंधे में ढोकर 18 किलोमीटर तक का पैदल सफर तय करते हैं. आपदा के बाद सबसे कठिन काम था केदारनाथ को पुनर्जीवित करना व यात्रा को सुचारू रूप से चालू कराना. राज्य लोक निर्माण विभाग का मानना तो यह था कि यात्रा को पुन: शुरू करने में 5-6 साल लग जाएँगे लेकिन नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (NIM) की देख-रेख में केदारनाथ पुनर्निर्माण का काम शुरू हुआ तथा निम व अन्य संस्थाओं के जाबांजों ने रात-दिन मेहनत कर 2014 की यात्रा से पहले यात्रा मार्ग व केदारनाथ के आसपास के इलाके को साफ कर तय तारीख के दिन यात्रा प्रारंभ कराने में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की.
पुराना 14 किलोमीटर का यात्रा मार्ग रामबाड़ा से आगे पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था व जगह-जगह भूस्खलन के कारण टूट गया था. रामबाड़ा से आगे यात्रा मार्ग को एक नई दिशा देकर मंदाकिनी नदी के दॉंयी तरफ से एक नए ट्रैक का निर्माण किया गया व बीच-बीच में छोटी लिंचोली, बड़ी लिंचोली, छानी कैंप आदि ठहरने व विश्राम करने की जगहों को विकसित किया गया. गौरीकुंड से केदारनाथ तक का नया ट्रैक लगभग 18 किलोमीटर लंबा है. केदारनाथ में बढ़ती श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए यात्रा ट्रैक को अच्छा खासा चौड़ा बनाया गया है ताकि एक ही समय में घोड़े/खच्चर, डंडी/कंडी व पैदल चलने वाले यात्री आसानी से ट्रैक पर यात्रा कर सकें.
आपदा के बात से ही केदारनाथ पुनर्निर्माण का कार्य लगातार चल रहा है. प्राकृतिक रूप से अतिसंवेदनशील केदार घाटी में बाढ़ व अन्य प्राकृतिक आपदाओं का खतरा लगातार बना हुआ है इसलिए पुनर्विकास का कार्य नियंत्रित व प्रकृति के अनुरूप बेहद जरूरी है. पुनर्निर्माण कार्य को एक मास्टर प्लान के तहत अंजाम दिया जा रहा है. भविष्य में बाढ़ से बचाव के लिए मंदिर के ठीक पीछे एक थ्री लेयर प्रोटेक्शन वॉल बनाई गई है जिसमें पहली गैबियन वॉल भविष्य में आने वाली बाढ़ की तीव्रता को कम करेगी, दूसरी लोहे के गार्डरों से बनी जालीदार दीवार बड़े-बड़े पत्थरों को रोकने का काम करेगी व आखिरी सीमेंट की दीवार बाढ़ के पानी की तीव्रता को कम कर उसे मंदिर की ओर जाने से रोकेगी व पानी के बहाव को मंदिर के दॉंयी तथा बॉंयी ओर काटेगी.
मंदिर के दृश्य अक्ष को पूरी तरह खुला रखा गया है व मंदिर के सामने लगभग 40 फीट का चौड़ा रास्ता बनाया गया है ताकि श्रद्धालुओं को मंदिर तक पहुँचने में पहले की तरह संकुचित मार्ग से न गुजरना पड़े. यह रास्ता लगभग 20,000 स्थानीय पत्थरों को सुडौल आकार देकर बनाया गया है. दृश्य अक्ष तथा मंदाकिनी व सरस्वती नदी के संगम के समीप ही एक छतरी का निर्माण किया गया है जिसमें भविष्य में शिवजी के डमरू व त्रिशूल को स्थापित किया जाएगा. मंदिर की भव्यता बनाए रखने के लिए उसके पीछे व दोनों तरफ निर्माण कार्यों पर रोक है. फिलहाल मंदिर के दाएँ व बाएँ बने भवनों को तोड़ने को लेकर विवाद चल रहा है लेकिन मास्टर प्लान के तहत इन भवनों का टूटना लगभग तय है. मंदिर की पूर्व दिशा में सरस्वती नदी के तट पर पूजा अर्चना के लिए घाटों का निर्माण कार्य भी किया जा रहा है.
मंदिर के ठीक पीछे आदि शंकराचार्य की समाधि का निर्माण कार्य चल रहा है. जिसे आधुनिक रूप देकर समाधि के बीच में आदि शंकराचार्य की मूर्ति लगाई जाएगी. समाधि के पास के खाली स्थान में आपदा में मारे गए लोगों की याद में एक स्मृति उद्यान बनाया जाना भी प्रस्तावित है. मंदिर के ठीक सामने लगभग 15,200 स्थानीय पत्थरों को तराश कर एक मंदिर प्लाजा का निर्माण किया गया है जिसका आकार 4,000 वर्ग मीटर से ज्यादा है. इस प्लाजा के एक ओर मैडिटेशन सेंटर बनाए जाने का प्रस्ताव भी है. यात्रियों की सुविधा के लिए मंदिर के पास ही चिकित्सा व पोस्ट ऑफिस सेवा का प्रावधान भी रखा गया है.
केदारनाथ में भारी भरकम मशीनों को देखकर आश्चर्य होता है और ऐसा लगता है मानो किसी शहर में विकास कार्य चल रहा हो. भू-वैज्ञानिकों व पर्यावरणविदों की मानें तो हिमालय का यह हिस्सा सबसे नवीनतम है और आज भी धीरे-धीरे विकसित हो रहा है. इसको ध्यान में रखते हुए केदार घाटी जैसे अतिसंवेदनशील व नाजुक क्षेत्र में बेतरतीब विकास किया जाना खतरे से खाली नहीं है. जाने माने पर्यावरणविद शेखर पाठक कहते हैं कि 1882 तक केदारनाथ मंदिर के आस-पास कोई निर्माण नहीं था लेकिन पिछले 60-70 सालों में ही केदारनाथ के चारों तरफ बिना किसी प्लानिंग के बेहिसाब निर्माण कार्य को अंजाम दिया गया. भू-वैज्ञानिक डॉ नवीन जुयाल का मानना है कि किसी भी निर्माण से पहले आपदा द्वारा लाए गए मलबे का सैटल होना बहुत जरूरी है. ग्लेशियर द्वारा लाए गए मलबे के ऊपर किसी भी तरह का निर्माण कार्य भविष्य के लिए खतरनाक हो सकता है.
चंडी प्रसाद भट्ट व अन्य पर्यावरणविदों का भी यही मानना है कि केदार घाटी का विकास सतत व नियंत्रित होना चाहिये. लगभग 3,600 मीटर की ऊँचाई पर बसे इस धाम में यात्रा सीजन में दस लाख तीर्थयात्रियों का पहुँचना तथा विकास कार्यों के लिए अधिक काँक्रीट व सीमेंट का इस्तेमाल किया जाना लोकल वार्मिंग (स्थानीय तापमान का बढ़ना) के खतरे को बढ़ा रहा है. केदारनाथ के साथ ही पंच केदार को भी वैकल्पिक गंतव्य के रूप में बढ़ावा दिया जाना चाहिये ताकि केदार घाटी के ऊपर पड़ने वाले दबाव को कम किया जा सके. साथ ही प्रतिदिन केदारनाथ जाने वाले यात्रियों की संख्या को भी नियंत्रित किया जाना चाहिये.
चौराबारी झील जहॉं से फटी थी वह हिस्सा आज भी खुला है लेकिन हो सकता है भविष्य में वह हिस्सा बर्फ जमने या अन्य किसी कारण से बंद हो जाए और चौराबारी झील पुन: जीवित हो उठे इसलिए राज्य व जिला प्रशासन को लगातार उस क्षेत्र पर निगरानी बनाए रखने की आवश्यकता है. केदारनाथ का सतत, नियंत्रित व पर्यावरण के अनुकूल विकास वांछनीय है अन्यथा प्रकृति ने एक बार ताडंव दिखा मनुष्य को संभलने का मौका दिया. दुबारा यह मौक़ा हमें शायद ही मिले.