घड़ियाल से जुड़ा एक दुखद पहलू यह है कि इसके बच्चों में मृत्यु-दर का प्रतिशत अधिक होने के कारण इनकी संख्या में बढ़ोतरी नहीं हो पाती, मगर रामगंगा में इनकी बढ़ती संख्या करती है उत्साहित
रामनगर से सलीम मलिक की रिपोर्ट
बाघ संरक्षण के लिए प्रसिद्ध कार्बेट नेशनल पार्क के बीच से बहकर जाने वाली रामगंगा नदी की आबोहवा में विलुप्तप्राय घड़ियाल का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है। भारतीय उपमहाद्वीप के भारत-नेपाल में पाये जाने इन घड़ियालों को दुनिया में तेजी से खत्म हो रहे वन्यजीवों की खास श्रेणी में रखा गया है।
अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) के पिछले सर्वे में दुनिया भर में बचे 650 घड़ियाल में से करीब एक चौथाई घड़ियाल केवल कार्बेट पार्क की रामगंगा नदी में होने का अनुमान है। 2012 से 2016 तक की चार साल की अवधि में घड़ियाल विशेषज्ञ सुबीर मारियो चौफीन द्वारा किये गये सर्वे में रामगंगा नदी में इनकी कुल संख्या 90 थी। जबकि अब कार्बेट पार्क के वार्डन शिवराज चन्द्र के दावे को सही माना जाये तो बीते दिनों तक इनकी संख्या बढ़कर (वयस्क-अवयस्क) 150 हो चुकी है।
ताजा घटनाक्रम में रामगंगा में घड़ियालों का कुनबा और तेजी से बढ़ने की खबर है। रामगंगा नदी के तटीय क्षेत्र में पार्क प्रशासन ने करीब चार दर्जन घड़ियाल के अंडे टूटे देखे तो उसे इन अंडों के बच्चों की चिंता होने लगी। लेकिन कुछ ही देर में वनकर्मियों की खुशी का उस समय ठिकाना नहीं रहा जब इस स्थान के निकट ही घड़ियाल के यह नवजात रामगंगा के पानी में अठखेलियां करते नजर आये। दुर्लभ और आईयूसीएन की रेड लिस्ट में शामिल घड़ियाल के कुनबे में हुई इस बढ़ोतरी से पार्क प्रशासन खास उत्साहित है।
कार्बेट नेशनल पार्क से होकर गुजरने वाली इस रामगंगा नदी के आसपास खनन क्षेत्र न होने तथा यहां पर मानवीय हस्तक्षेत्र नगण्य होने के कारण वन्यजीव प्रेमियों को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में बाघों की राजधानी कहा जाने वाला कार्बेट नेशनल पार्क रामगंगा में अठखेलियां करने वाले घड़ियालों के लिये भी जाना जा सकेगा। इस मामले में पार्क के निदेशक राहुल का कहना है कि पूर्व में पार्क प्रशासन इनकी गिनती नहीं कराता था, जिसके चलते रामगंगा नदी में इनकी संख्या का केवल अनुमान है। लेकिन अब अन्य वन जीवों के साथ ही घड़ियालों की भी गणना करायी जायेगी।
घड़ियाल से जुड़ा दुखद पहलू
नदी में मुख्य तौर पर अपने आहार के लिए मछलियों पर आश्रित घड़ियाल का किसी मानव पर अभी तक हमला करने का कोई इतिहास न होने के कारण इसे अमूमन इंसानों के लिए खतरनाक नहीं माना जाता। मछलियों पर निर्भर यह जलीय प्राणी अपने वास स्थल को साफ रखने के कारण नदी का सफाईकर्मी भी कहा जा सकता है।
घड़ियाल से जुड़ा एक दुखद पहलू यह है कि इसके बच्चों में मृत्यु-दर का प्रतिशत अधिक होने के कारण इनकी संख्या में बढ़ोतरी नहीं हो पाती। वन्यजीव विशेषज्ञ ए.जी. अंसारी बताते हैं कि बाढ़ आदि के कारण घड़ियाल के अंडे व छोटे बच्चों के बह जाने के कारण केवल एक प्रतिशत बच्चे ही अपने यौवन तक पहुंच पाते हैं, जिसकी वजह से दुधवा नेशनल पार्क के कतर्निया घाट में इनकी संख्या बढ़ाने के लिए लखनऊ के क्रोकोडाइल ब्रीडिंग सेंटर में घड़ियाल के अंडों को एक निश्चित तापमान पर रखकर उसमें से बच्चे निकालकर उनका पालन-पोषण सेंटर में ही किया जाता है।
घड़ियाल के इन नवजात को करीब तीन से चार फिट का होने के बाद ही नदी में छोड़ा जाता है, जिससे उनके जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है। अंसारी बताते हैं कि भारत में घड़ियाल केवल उत्तराखण्ड, राजस्थान, यूपी के हिस्सों रामगंगा नदी, कतर्निया घाट बहराइच, चितबन, गडक, बबाई, चम्बल नदी आदि में ही पाये जाते हैं।
कतर्निया घाट से लाये गये थे कार्बेट में घड़ियाल
कार्बेट नेशनल पार्क की रामगंगा नदी में पाये जाने वाले घड़ियालों से जुड़ा एक रोचक तथ्य यह है कि यहां पर पाये जाने वाले घड़ियालों को एक दौर में बहराइच के दुधवा नेशनल पार्क के कतर्निका घाट से लाकर छोड़ा गया था। प्रयोग के तौर पर रामगंगा में लाकर छोड़े गये घड़ियालों को यहां की आबोहवा न केवल रास आई, बल्कि इनके कुनबे में प्राकृतिक तौर पर आश्चर्यजनक वृद्धि भी देखी गई।
वैब पत्रिका ‘जनज्वार’ से साभार