अखिलेश डिमरी
अमृतकाल के भंयकर यात्रा सीजन में अति व्यस्तताओं के बावजूद सूबे के पर्यटन मंत्री का बयान आ जाना बिल्कुल ऐसा माना जाना चाहिए जैसे बिना चारधाम यात्रा के ही पुण्यफल मिल गया हो।
तो प्रभु नें जब जांच के आदेश दे ही दिए हैं तो कुछ बिंदुओं को शामिल कराए जाने का अनुरोध किया जाता है हालांकि इनके जवाब नहीं मिलेंगे ये भी उतना ही सत्य है फिर भी-
1. स्पष्ट किया जाए कि जिस सोने को अब 23 किलो बताया जा रहा है वह उस वक्त 230 किलो क्यों बताया गया …? तत्समय स्पष्ट क्यों नही किया गया कि ये शुद्ध सोना नहीं बल्कि तांबे की प्लेटों पर सोने की पालिश चढ़ाई जाएगी …?
2. शुद्ध चांदी की प्लेटों को हटा कर तांबे या पीतल की प्लेटों पर सोने की पालिश चढ़ा कर लगाने का औचित्य क्या था यह भी स्पष्ट किया जाये …? और यह भी स्पष्ट किया जाए कि वह चांदी लगने से पहले कितने वजन की थी वह निकालने के बाद कितने वजन की रह गयी है जब सोना पीतल हो सकता है तो अति सर्दी के कारण चांदी का एलमूनियम होने का खतरा भी बना रहता है।
3. जब मंदिर के गर्भगृह को स्वर्ण मंडित किया जा रहा था तत्समय मंदिर समिति द्वारा किसकी देख रेख में यह कार्य किया गया …? क्या इसके लिए कोई पैनल अथवा हक हुकुकधारियों को सम्मलित करते हुए किसी समिति का गठन किया गया ..? क्योंकि मंदिर केवल मंदिर समिति का नहीं बल्कि हक हकूकधारियों का भी है। इतने महत्वपूर्ण आयोजन में बिना साझा स्वीकार के कार्य किया जाना ही संदेहास्पद है।
यह सवाल इसलिए भी कि स्वर्ण मंडित करने के नाम पर जो चांदी की प्लेटें हटाई गई उनकी सुरक्षा व गणना की जिम्मेदारी किसकी थी ..? यदि ऐसा नहीं हुआ तो क्या यह सवाल नहीं उठता कि उन चांदी की प्लेटों में भी कोई गड़बड़ी हुई हो।
4. मंदिर के गर्भगृह को स्वर्णमंडित करने के पश्चात क्या किसी अधिकृत स्वर्णकार से इस बात का परीक्षण करा कर प्रमाणपत्र लिया गया कि लगी हुई धातु सोना ही है या पीतल अथवा तांबे पर सोने की पालिश तो की गयी है..? वरना मंदिर समिति यह स्पष्ट कर कि वह पूर्व में जिस सोने को 230 किलो कह कर प्रचारित कर रही थी व जो आज 23 किलो बताया जा रहा है वह 23 किलो भी सोना ही है कैसे प्रमाणित होता है …? और यह भी कि वह पालिश भी सोने की ही है या कहीं सोने की तरह दिखने वाला पीला रँग ही तो नही..?
5. इस पूरे प्रकरण में दानी का नाम यह कह कर छुपाया जा रहा है कि यह गुप्त दान है व मंदिर समिति द्वारा शायद इस दान के एवज में किसी तरह का आयकर प्रमाणपत्र नही दिया गया …? तो यह स्पष्ट किया जाए कि मंदिर समिति की लेखा पुस्तिकाओं में इस स्वर्णमंडित घटनक्रम की स्टॉक इंट्री किस आधार पर कितनी और कैसे हुई हैं …?
6. मंदिर समिति से यदि दानदाता ने कोई आयकर छूट का प्रमाणपत्र नहीं लिया तो सवाल यह भी है उसने ऐसा क्यों किया होगा …?
7. जांच समिति इस बात का परीक्षण भी करे कि कहीं सोने के नाम पर आई ही तांबे अथवा पीतल की प्लेटें हों और असली सोना ही गायब कर दिया गया हो क्योंकि देने वाले का नाम पता नहीं, उसने आयकर छूट का कोई प्रमाण मांगा या नहीं इसका भी ठीक से पता नहीं पुरानी चांदी निकलने की क्या प्रक्रिया रही इसका पता नहीं …?
8. मंदिर समिति की जिन बैठकों का हवाला देकर कहा जा रहा है कि इसमें स्वर्णमंडित करने हेतु प्रस्ताव पारित किया गया उसकी कार्यवाही सर्वाजनिक की जाए ताकि पता चले कि इतने महत्वपूर्ण व आर्थिक रोओ से भी गम्भीर विषय पर किस किस तरह की चर्चा हुई है व क्या क्या कार्ययोजना बनी जिसका कि पालन किया गया ..? कहीं ऐसा तो नही कि पूरी मंदिर समिति ही इस मामले में आपसी घालमेल कर रही हो ..? क्योंकि ऐसे विषयों पर बोर्ड बैठकों में चर्चा के स्तर व सवाल जवाबों से ही नीयत का पता चल सकता है।
9. मंदिर समिति की बोर्ड बैठकों में हुई चर्चा के उपरांत बैठक पंजिका में दर्ज कार्यवाही से सभी सदस्यों की सहमति हो इसे प्रमाणित किया गया या केवल दो तीन लोगों द्वारा ही कार्यवाही पंजिका में दर्ज अभव्यक्ति को अंतिम मान लिया गया…?
10. अंतिम बात कि सवाल दानी की मंशा पर नही बल्कि लगाने वालों की मंशा पर है क्योंकि दानी तो वहां मौजूद था नहीं वहां पर लगाने वाले मौजूद थे कहीं उन्होंने ही तो कोई गड़बड़ी नहीं की …? और क्या जिस 230 किलो सोने को आज 23 किलो कहा जा रहा है उसे भी किसी अधिकृत सुनार द्वारा प्रमाणित नही करना चाहिए कि वह सोना ही है पीली पालिश नहीं…?
हालांकि इस पूरे प्रकरण में सोने की पालिश करने के तरीकों व प्रक्रियाओं पर भी सवाल है किंतु अंततोगत्वा इस जांच का हश्र भी पांडे जी की जोरू वाली जाँच, अमनमणि को कोरोना काल में आवागमन हेतु परमीशन दिए जाने वाली जांचों जैसी तमाम जांचों की तरह ही होना है।
धन्यवाद।।