अतुल सती
जोशीमठ आपदा ग्रस्त क्षेत्र सबसे संवदेनशील वार्ड सिंहद्वार (सिंहधार) का इलाका है। किसी समय जब सड़क मार्ग नहीं था और बद्रीनाथ पैदल ही यात्रा होती थी, तब यही मुख्य मार्ग था। इस मुख्य मार्ग से लगी तब कई धर्मशालाएं, मठ और आश्रम थे। जिनमें अधिकांश का अब अस्तित्व न रहा और कुछ की स्थिति अत्यंत जर्जर है। इन्हीं में लगभग 100 साल पुरानी वैष्णव संप्रदाय की धर्मशाला और आश्रम है जो पैदल मार्ग होने पर गुलजार रही होगी पर अब लगभग उपेक्षित है। इस समय त्रिदंडी साधू संतोष महाराज इसकी देखरेख कर रहे हैं।
आपदा के चलते इस पर भी मार पड़ी। शुरू में दरारें आईं तो संतोष महाराज इसे छोड़ टीन के छप्पर में अपनी गौ बछिया के साथ रहने लगे। अब कुछ दिनों की बरसात में यह भवन पूरा ढहने की कगार पर आ गया है। इसके पीछे की दीवार भी ढह गई है। इस दीवार और आश्रम के ठीक ऊपर सिंहधार का मुख्य मार्ग है, जो पहले ही बैठा हुआ था, और अब और एक फीट नीचे बैठ गया है। इस मार्ग से लगी ठीक ऊपर घनी बस्ती है। अगर आश्रम धंसा तो यह मार्ग अपना आधार खो देगा, जिससे पूरा मार्ग और फिर बस्ती भरभरा कर नीचे होगी। इस आश्रम से लगी 50 नाली से ज्यादा भूमि जो सीधे नीचे जय प्रकाश कम्पनी के दफ्तर और कालोनी तक चली गई है पूरी तरह दरारों और धंसाव से पटी है। जिसमें एक से लेकर पांच फीट तक भूमि धंसी है।
यह गम्भीर और संवदेनशील क्षेत्र है जो बड़ी आपदा और खतरे के मुहाने पर है। आश्रम के संतोष महाराज का कहना है कि अभी तक उनके भवन को, जो कि बहुत खतरनाक स्थिति में है, रेड क्रास नहीं किया है, न ठीक से सर्वेक्षण हुआ और न ही उनकी कोई वैकल्पिक व्यवस्था की गयी है। दो माह पहले इस आश्रम को देखा था तब इसे देखते हुए पुराने समय की एक तस्वीर बनी थी जब पैदल यात्री यहां से गुजरते होंगे, इसके आंगन में, छज्जों में सुस्ताते होंगे, आंगन में शाम को ढेर सी रसोईयों से धुंआ उठता होगा। यात्रा के किस्से और बद्रिनाथ के आगे का सफर उसकी चुनौती उत्साह कठिनाई की कल्पनाओं से सरोबार पैदल यात्रियों का पूरा दृश्य आंखों में तैर गया था।
उस दिन सोचा कि इसका संरक्षण होना चाहिये, ये धरोहरें बचाई जानी चाहिये। परंतु यहां बस्तियों की चिंता नहीं हैं एक आश्रम की कौन कहे। अब यह पूरा क्षेत्र गम्भीर खतरे में है। जल्दी ही कुछ किये जाने की जरूरत है। पिछले दो तीन माह में (बरसात से पहले ) अगर इस क्षेत्र की रक्षा हेतु नाली, सुरक्षा दीवार, निकासी प्रणाली बना दी गई होती, जिसके लिए हम लगातार कहते रहे तो शायद संकट कुछ समय के लिए टल जाता। अब हमारी प्रशाशन व सरकार से दरख्वास्त है कि तत्काल इस क्षेत्र और यहां रहने वाले लोगों की सुरक्षा की व्यवस्था सुनिश्चित करे।
यही होल ऑलवैदर बदरीनाथ की सड़क के भी हैं। जिसके हर मौसम सदाबहार चाक चौबन्द रहने के दावे थे। चारधाम सड़क के लिए सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा गठित उच्चाधिकार समिति की देहरादून की बैठक में हम जोशीमठ के बाईपास के संदर्भ में व सड़क की अत्यधिक चौड़ाई के विरोध में, अपना पक्ष रखने उपस्थित हुए। यह उच्चाधिकार समिति की पूर्ण बैठक थी। जिसमें सभी सदस्य उपस्थित थे। हमने अपना पक्ष रखा। इस क्षेत्र की कमजोर भूगर्भिक स्थिति आदि पर बात रखी। जिस पर समिति के एक सदस्य जिन्होंने खुद को बहुत ही बड़ा वाला विशेषज्ञ और इंजीनियर बताते हुए इस मार्ग की पूरी गारंटी लेते हुए बताया कि, हमारे पास ऐसी तकनीक है कि हम सड़क की कटिंग केक की तरह (वी कैन कट इट लाईक ए केक) कर सकते हैं। मैने उत्तर दिया – फिर तकनीक का इस्तेमाल करते क्यों नहीं ? इस मार्ग को और चौड़ा काटने के पक्ष में उन्होंने कई ऐसे ही फर्जी हवाई तर्क दिए जिसे कमेटी के ही एक सदस्य डॉ. नवीन जुयाल ने ही तत्काल खारिज किया। किंतु वे सरकार के पक्षकार थे। अन्त में उन्हीं की चली। आज उस केक की तरह काटी गई सड़क का यह हाल है। यह एक जगह नहीं है, ऐसा खतरा सैकड़ों जगह पर इस निर्माण ने पैदा कर दिया है। जिसके स्थाईकरण में पचासों साल लगेंगे। तब तक न जाने कितना नुकसान होगा और यह सड़क ऐसी रहेगी इसमें ही संदेह है। हजारों करोड़ ऐसे ही बरसातों में पानी मिट्टी मलवा होते रहेंगे। जैसे पहले 2004 के समय की चौड़ीकरण के हुए थे।