पूरन बिष्ट
ऋषिकेश के आईडीपीएल में हाईकोर्ट की बेंच खोलने करने की संभावनाओं का पता लगाने की कवायद के बाद हाईकोर्ट और जिलों की बार से जुड़े अधिवक्ताओं में जंग छिड़ गई है। अधिवक्ता, कुमाऊं और गढ़वाल खेमों में बंटते जा रहे हैं। कुमाऊं वाले हाईकोर्ट गढ़वाल में नहीं जाने देना चाहते और गढ़वाल वाले हाईकोर्ट की बेंच ऋषिकेश में खोलने के लिए लामबंद हो गए हैं। हाईकोर्ट बार में भी इसे लेकर खेमेबंदी हो गई है। इस पूरे प्रकरण में सरकार की ओर से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है, लेकिन विपक्षी दल कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने पूरा हाईकोर्ट, ऋषिकेश शिफ्ट करने की मांग करके इस पर कुमाऊं-गढ़वाल की सियासत शुरू कर दी है। देर-सबेर अन्य नेता भी इस मसले पर अपनी सियासी मजबूरियों के हिसाब से अपना रुख साफ करेंगे।
हाईकोर्ट एक न्यायिक संस्थान है। राज्य की पांच फीसदी आबादी का वास्ता हाईकोर्ट से बामुश्किल पड़ता होगा। ज्यादातर सरकारी महकमों से जुड़े मामले ही यहां तक पहुंचते हैं। ऐसे में हाईकोर्ट कहीं भी खुले, अधिसंख्य आबादी का इससे कोई मतलब नहीं है। लेकिन अधिवक्ताओं, न्यायिक अधिकारियों पर इसका असर जरूर पड़ता है। कुमाऊं के अधिवक्ताओं को लगता है कि, यदि ऋषिकेश में हाईकोर्ट की बेंच खुली तो सरकार और गढ़वाल मंडल से जुड़े केस वहां चले जाएंगे। जबकि गढ़वाल के अधिवक्ताओं को लगता हैे कि, उन्हें नैनीताल की थकाऊ और महंगी आवाजाही से मुक्ति मिलेगी। इस मामले में तीसरा पक्ष वह न्यायिक अधिकारी हैं, जिन्हें नैनीताल की बनिस्पत ऋषिकेश में ज्यादा सुविधाएं नजर आती हैं।
इन तीन पक्षों के बीच चल रही खींचतान में अनचाहे ही सही, यह मामला कुमाऊं और गढ़वाल बनता जा रहा है। कुमाऊं के लोग कहते हैं कि, क्षेत्रीय संतुलन को देखते हुए राज्य बनाते समय राजधानी गढ़वाल में बनाई गई और हाईकोर्ट कुमाऊं में खोला गया था। अब हाईकोर्ट भी गढ़वाल ले जाकर कुमाऊं के लोगों को उपेक्षित किया जा रहा है। हालांकि, गढ़वाल के आम लोगों में हाईकोर्ट की शिफ्टिंग को लेकर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं है। लेकिन वहां के वकीलों ने इसकी शुरुआत कर दी है। देर-सबेर नेता इस मामले में कूदेंगे और उस एकता को छिन्न-भिन्न करने का प्रयास करेंगे, जो अलग राज्य का आंदोलन और राज्य बनने के बाद मजबूत होती गई है। इसलिए राज्यभर के अधिवक्ताओं को इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम उठाने की जरूरत है ताकि आने वाली पीढ़ियां उन्हें उत्तराखंड की एकता को तार-तार करने का गुनहगार न समझने लगे।
सुविधाओं का सवालः
ऋषिकेश में बेंच खोलने के अलावा हाईकोर्ट को नैनीताल से शिफ्ट करने का मसला भी साथ साथ चल रहा है। हल्द्वानी के गौलापार में हाईकोर्ट शिफ्ट करने से कोर्ट ने इसलिए इनकार कर दिया है कि, ऐसा करने से बड़े पैमाने पर पेड़ कटेंगे। कोर्ट ने अब सुविधाओं की शर्तें रखकर सरकार से एक हफ्ते में रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट ने जिस तरह की शर्तें रखी हैं, तय है कि, नैनीताल जिले में कहीं भी कोर्ट शिफ्ट करने लायक संसाधन नहीं मिलेंगे। ऋषिकेश, हरिद्वार, देहरादून या ऊधमसिंहनगर में ही यह सुविधाएं मिल सकती हैं। हालांकि, सरकार अपने सियासी नफा-नुकसान को देखते हुए कोर्ट को गढ़वाल मंडल में शिफ्ट करने का प्रस्ताव देने पर हिचकेगी।
नैनीताल से राजधानी चल सकती है, हाईकोर्ट क्यों नहीं?
न्यायिक अधिकारियों ने सुविधाओं की कमी और नैनीताल पर बढ़ते बोझ को देखते हुए हाईकोर्ट को शिफ्ट करने पर सरकार से नया प्रस्ताव मांगा है। लेकिन यह भी उल्लेखनीय तथ्य है कि, जिस भवन में आज हाईकोर्ट संचालित हो रहा है, कभी इस भवन से गर्मियों में पूरे नार्थ-वेस्ट प्राविंसेस की सरकार चलती थी। अंग्रेज सरकार ने 1862 में नैनीताल को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया था। पत्रकार प्रयाग पांडे ने अपनी पुस्तक ‘नैनीताल-एक धरोहर‘ में लिखा है कि, लेफ्टिनेंट गवर्नर से लेकर सचिव, लिपिक समेत सैंकड़ों कर्मचारी गर्मियों में नैनीताल से पूरे नार्थ-वेस्ट प्राविंसेस की सरकार का संचालन करते थे। हर साल मार्च आखिरी हफ्ते में सविचालय नैनीताल आ जाता था और पहली नवंबर को आगरा चला जाता था। हालांकि, तब और अब के नैनीताल में काफी बदलाव आ चुके हैं। लेकिन यह सवाल अपनी जगह है कि, जब अंग्रेज नैनीताल से सात महीने उतने बड़े सूबे की सरकार चला सकते हैं, तो अब हाईकोर्ट का संचालन क्यों नहीं हो सकता? कई अधिवक्ताओं ने नैनीताल के कुछ और स्थानों का अधिग्रहण करके कोर्ट को यहीं बनाए रखने का सुझाव भी दिया है।
फोटो इंटरनेट से साभार