साभार:- कृष्णकांत के twitter Handel से
फिरंगी सरकार का हुक़्म था –
हिंदू चाय अलग बनेगी, मुसलमान चाय अलग बनेगी।
चाय आई – हिंदू चाय… मुसलमान चाय
क्रांतिकारियों ने उसे एक बड़े बर्तन में मिलाया फिर बांटकर पी गए।
दिल्ली का लाल किला। आजाद हिंद के क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करके यहीं बंद किया गया था। लाल किला ट्रायल शुरू होने वाला था। सहगल, ढिल्लन, शाहनवाज़ की मशहूर तिकड़ी भी यहीं बंद थी, जिनका मुकदमा लड़ने के लिए नेहरू ने दशकों बाद अपना वकील वाला चोगा निकाला था।
महात्मा गांधी उन क्रांतिकारियों से मिलने गए। आजाद हिंद फौज के लोगों ने गांधी जी को बताया, यहां सुबह हांक लगाई जाती है कि हिंदू चाय तैयार है। मुसलमान चाय आ गई है।
क्रांतिकारियों ने बताया, ये लोग हमको रोज़ सुबह बांटते हैं, जबकि हमारे अंदर कोई भी मंशा नहीं होती, हमारे बीच कोई झगड़ा नहीं है, फिर भी सरकार का हुक़्म है कि हिंदू चाय अलग बने और मुसलमान चाय अलग बने।
गांधी जी ने उनसे पूछा, फिर आप क्या करते हैं?
क्रांतिकारियों ने कहा, ‘हमने एक बड़ा सा बर्तन रखा है और उसमें हिंदू चाय और मुसलमान चाय मिला देते हैं और फिर बांट के पी लेते हैं।’
लाल क़िले से लौटने के बाद गांधी ने बयान दिया, ‘सुभाष चंद्र बोस एक राष्ट्रवादी नेता हैं और उनका सबसे बड़ा योगदान एक पूरा संगठन खड़ा करना और उसमें हिंदू मुसलमान का भेद मिटा देना है। इसके लिए मैं उन्हें सलाम करता हूं।’
आजाद हिंद फौज के सभी सैनिक बरी हो गए तो कैप्टन प्रेम सहगल, कर्नल गुरुबख्श सिंह ढिल्लन, और मेजर जनरल शाहनवाज खान के साथ कई सैनिक गांधी जी से मिलने गए। कर्नल ढिल्लन ने अपनी आत्मकथा ‘फ्रॉम माय बोन्स’ में लिखा है, गांधी जी ने मुस्कुराते हुए पूछा, ”तुम तीनों में से ब्रह्मा, विष्णु महेश कौन-कौन है।”
कर्नल ढिल्लन ने कहा, ”आपने तो हमें इतना बड़ा बना दिया। अब आप ही यह भी तय कर दीजिए।” सब लोग एक साथ हंसने लगे।
नफरत करने के हजार बहाने हैं। प्रेम और शांति चाहने के भी उतने ही। हिंदू चाय, मुसलमान चाय का फिरंगी दौर लौट आया है। यह आप पर है कि आप क्या चाहते हैं?