जगमोहन रौतेला
चारधाम ‘आल वेदर’ सड़क परियोजना पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त उच्चाधिकार समिति (एचपीसी) के अध्यक्ष और वरिष्ठ पर्यावरणविद रवि चोपड़ा ने समिति के अधिकारक्षेत्र को केवल दो ‘नॉन डिफेंस स्ट्रेचेज’ तक सीमित किए जाने के अदालत के आदेश पर निराशा जताते हुए पद से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने कहा कि उनका यह विश्वास कि एचपीसी इस हिमालयी पारिस्थितिकी की रक्षा कर सकती है, वह टूट गया है. चोपड़ा ने सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल को भेजे अपने इस्तीफे में कहा कि समिति के निर्देश और सिफारिशों को सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने या तो अनदेखा किया है या उस पर देरी से प्रतिक्रिया दी है.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 14 दिसंबर के अपने आदेश में 900 किलोमीटर लंबी सड़क परियोजना के 70 फीसदी काम की निगरानी का काम एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली निरीक्षण समिति को सौंप दिया था और समिति की भूमिका को परियोजना के केवल दो ‘नॉन डिफेंस स्ट्रेचेज’ तक सीमित कर दिया था. चोपडा ने अपने इस्तीफे में कहा, ‘मुझे इस पद पर बने रहने का कोई उद्देश्य नजर नहीं आ रहा है.’ इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए चोपड़ा ने कहा, ‘मुझे लगता है कि मैं किसी आधिकारिक समिति का हिस्सा होने की सीमाओं के बिना मैं बेहतर तरीके से काम करने में सक्षम हूं. शायद अधिक सार्थक ढंग से जनता को जागरूक करूं और चारधाम परियोजना पर करीब से नजर रख पाऊं और इस बारे में लिख पाऊं, विशेष रूप से भागीरथी इको सेंसेटिव जोन में, जहां एचपीसी ने सड़कों के लिए स्पष्ट शर्तें रखी हैं.’ 75 वर्षीय चोपड़ा ने पत्र में बताया कि कैसे उन्हें अपनी बढ़ती उम्र के बावजूद सितंबर 2019 में यह जिम्मेदारी उठाने के लिए विवश होना पड़ा था.
उन्होंने कहा कि 2019 में समिति का अध्यक्ष बनने की पेशकश हिमालयी पर्यावरण में आ रही गिरावट को ठीक करने और यहां रह रहे लोगों की आजीविका को सुधारने में मदद करने की 40 साल की प्रतिबद्धता की वजह से निकली अपनी अंतरात्मा आवाज के कारण स्वीकार की थी लेकिन अब यही आवाज उन्हें बाहर निकलने के लिए मजबूर कर रही है.’ उन्होंने कहा, ‘नाजुक पारिस्थितिकी को संरक्षित करने का समिति का विश्वास टूट गया है. मैं अब इस जिम्मेदारी को और नहीं निभा सकता इसलिए मैंने इस्तीफा देना चुना.’ अख़बार द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें निराशा हुई, चोपड़ा ने कहा, ‘एक दशक पहले गांवों की यात्रा करते हुए मुझे आश्चर्य होता था कि चिपको आंदोलन के बारे में लोगों को कितना कम जानकारी है. आज देहरादून में युवा पेड़ को काटे जाने का विरोध कर रहे हैं. यह एक संकेत है कि हमें काम करते रहना है, इसका फल हमें जरूर मिलेगा.’
हिमालय को प्रकृति का चमत्कार बताते हुए चोपड़ा ने अपने त्यागपत्र में कहा, ‘सतत और टिकाऊ विकास के लिए भूगर्भीय और पारिस्थितिक दोनों रुख की जरूरत है. इस तरह के विकास आपदा से बचाव में मदद करते हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा में भी मददगार होते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘एचपीसी के सदस्य के रूप में मैंने हिमालय को नष्ट होते देखा है. मैंने आधुनिक तकनीकी हथियारों से लैस इंजीनियर्स को हिमालय पर प्रहार करते देखा है. मैंने इन इंजीनियर को ऐसा करते इनकी तस्वीरों को सर्कुलेट करते भी देखा है, जो इसे प्रकृति पर अपनी जीत बताते हैं लेकिन उन्हें शायद एहसास नहीं है कि वे भी इस प्रकृति का हिस्सा है और अगर वह इस प्राकृतिक पर्यावरण को नष्ट कर देंगे तो वह खुद भी जीवित नहीं रह सकते.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हालांकि, प्रकृति न तो भूलती है और न ही इसके खजाने पर इस तरह जानबूझकर किए गए अपराधों को माफ करती है. पहले से ही हमने देखा है कि सड़कों के बड़े हिस्से गायब हो गए, बाद में जिनकी मरम्मत में महीनों लगे. प्रकृति ने जून 2013 और फरवरी 2021 में विनाशकारी परिणामों के बारे में चेताते हुए खतरे की घंटी बजाई थी.’ केंद्र की इस महत्वकांक्षी 12,000 करोड़ रुपये की राजमार्ग विस्तार परियोजना की परिकल्पना 2016 में की गई थी, जिसमें ऊपरी हिमालय में चार धाम सर्किट – बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री में सभी मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए 889 किलोमीटर पहाड़ी सड़कों को चौड़ा किया गया था.
2018 में एक गैर सरकारी संगठन द्वारा पेड़ों की कटाई, पहाड़ियों को काटने और खुदाई की गई सामग्री को डंप करने के कारण हिमालयी पारिस्थितिकी पर इसके संभावित प्रभाव को लेकर स परियोजना को चुनौती दी गई थी. 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इन मुद्दों की जांच के लिए चोपड़ा की अगुवाई वाली एचपीसी का गठन किया था और सितंबर 2020 में सड़क की चौड़ाई आदि को लेकर दी गई उनकी सिफारिश को स्वीकार कर लिया था. नवंबर 2020 में रक्षा मंत्रालय ने सेना की जरूरतों को पूरा करने का हवाला देते हुए चौड़ी सड़कों की मांग उठाई.
दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने सितंबर 2020 के आदेश में संशोधन करते हुए चारधाम राजमार्ग परियोजना को मंज़ूरी दे दी. सड़क निर्माण से होने वाली पर्यावरणीय दिक्कतों से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा था कि अदालत परियोजना की न्यायिक समीक्षा में सशस्त्र बलों की बुनियादी ज़रूरत का अनुमान नहीं लगा सकती.