तारा चन्द्र त्रिपाठी
आज अधिकतर छात्र और उससे भी अधिक उसके अभिभावक उनका पाल्य क्या पढे़, अधिकतम अंक कैसे प्राप्त करे, किस संस्थान में विशिष्ट अध्ययन की तैयारी करे और वह किस पद या व्यवसाय में निरत हो, इस बात पर रात दिन एक किये रहते हैं, पर मेरे युग में तो बन्ने का एफ.ए. बी.ए. कर कालेज पढ़ने की तैयारी ही बहुत बड़ी अर्हता थी। तब अभिरुचि और आज की तरह की विषय वासना तो कल्पनातीत थी। बस सीमित विषयों वाली टोकरी में जो विषय पकड़ में आया, वही ले लिया। बचपन में पिताजी द्वारा लायी गयी बाल पोथियों से मानवशास्त्र और पुरातत्व के प्रति आकर्षण था यदि महाविद्यालय में इनके अध्ययन की व्यवस्था होती तो यही मेरे औपचारिक विषय भी होते पर हिन्दी के साथ इतिहास और अर्थशास्त्र लेकर संतोष करना पड़ा।
मुझे बार बार लगा है कि जैसे निर्माता मेरे व्यक्तित्व में ’सम्यक’ नाम का उपकरण जोड़ना भूल गया। फलतः जिधर झुका, झुकता ही चला गया। ध्यान ही नहीं रहता कि इसके परे भी कुछ महत्वपूर्ण दायित्वों की अनदेखी हो रही है जो सफलता को बाधित करेगी। जूनियर हाईस्कूल के अंकगणित और हिन्दी के अध्यापक ने मेरे मानस में इन विषयों बीज बोया वह मेरे जीवन भर के लिए हस्तामलकवत हो गया। पर निद्रावतार उदासीन केवलानन्द जी ने बीजगणित और रेखागणित का जो पारायण कराया वह उनसे विदा होते उन्हीं के साथ चला गया। यहां तक कि कक्षा 8 की परीक्षा में मैंने बीजगणित की नदी भी अंक विद्या की नाव के सहारे मर खप कर पास की। यही हाल कक्षा 9 में बहीखाता पद्धति का हुआ पर रैमजे इंटर कालेज के वाणिज्य के अध्यापक गुप्ता जी, जिनका उपनाम ही बी.काम. मास्साप था, केवल एक वादन में ही मेरे लिए इस बहीखाता पद्धति को हस्तामलकवत कर दिया और इस विषय में सत्तर अंकों के पार कर जाना मेरे लिए सहज हो गया।
अंक गणित के मामले में दस लाख तक की घन संख्याओं का तत्काल मौखिक घनमूल निकालना, बड़ी संख्याओं का मौखिक गुणा भाग, का तरीका भी मैंने कई छात्रों को समझाया। उन सामान्य कक्षाओ में अध्यापक जैसे ही श्यामपटृ पर कोई घनसंख्या लिखता बच्चे तत्काल उसका घनमूल बता देते। यह सूत्र अपनी कनिष्ठ पुत्री कल्पना को धनमूल के सवाल समझाते हुए प्रतिभासित हुआ।
सूत्र इस प्रकार है।
1 दी हुई घनसंख्या हमेशा अ × अ × अ से निर्मित होती है अतः घन संख्या तीन तीन अंकों में समूह बनाने होंगे लें। जैसे यदि दी हुई संख्या है 912673 हो तो उसे 912/ 673 के रूप् में लिखना होगा।
2. यदि हम किसी इकाई को घन संख्या में बदलें तो ज्ञात होता है कि 0,1,4,5,6 और 9 घनसंख्या की इकाई में भी यथावत् रहते हैं। लेकिन 2, 3, 7 और 8 का घनसंख्याकी इकाई में 2 के स्थान पर 8, 8 के स्थान पर 2, 3 के स्थान पर 7 और 7 के स्थान पर 3 संख्या प्राप्त होती है।
3. अब दहाई पर आते हैं। ज्ञात होता है कि घन संख्या में 1-7 तक 1, 2- 15 तक 2, 16 से 26 तक 3, 27 से 63 तक 4, 64 से124 तक 4, 125 से 215 तक 5, 216 से 342 तक 6, 343 से 511 तक 7, 512 से 728 तक 8 और 729 से 999 तक 9 आती है।
सामान्य छात्र जिसके बारे में अध्यापक की धारणा भी गणित में औसत से भी कम होती है, धन संख्या घनमूल निकालने में कमाल की तेजी दिखा कर अध्यापक को चकित कर देते थे।
यह सूत्र तो 999999 तक की घसंख्या पर लागू होता है पर इसे किसी भी घन संख्या तक विस्तारित किया जा सकता है। मुझे अनेक बार विभिन्न प्रकरणों में प्रतिभास हुआ है। और यह तभी होता है जब आप लगातार किसी विषय के चिन्तन में लीन होते हैं।