राजीव लोचन साह
आखिर कोविड की यह बीमारी है क्या ? डेढ़ साल से इसने पूरी दुनिया को हलकान कर रखा है और अभी भी यह रहस्यों के घेरे में ही है। विज्ञान को इतना असहाय होते हमने कभी नहीं देखा था। विज्ञान सत्य और तर्क के आधार पर चलता है, मगर कोविड प्रकरण में चिकित्सा विज्ञानी किसी सड़कछाप ज्योतिषी की तरह व्यवहार कर रहे हंै। विश्व भर में लगभग चालीस लाख लोगों के काल के गाल में समा जाने के बाद भी यह बीमारी कैसे शुरू हुई, कब और कैसे यह खत्म होगी, इसका सही इलाज क्या है, इस बारे में अभी सिर्फ अनुमान ही लगाये जा रहे हैं। इलाज जो चल रहा है, वह अंधेरे में टटोलने जैसा है। पहले रोगी को प्लाज्मा चढ़ाने की बात की जा रही थी, अब उसे खारिज कर दिया गया है। रेमिडिसिवियर दवाई पर जोर था, अब बताया जा रहा है कि उससे कोई फायदा नहीं है। यही बात स्टीराॅयड्स के बारे में है। कहा जा रहा है कि ज्यादा स्टीराॅयड्स लेने से ब्लैक फंगस का खतरा है। टीकों की दोनों डोज लगा देने के बाद भी विश्वास के साथ यह नहीं कहा जा रहा है कि ऐसे लोग अब निश्चिन्त हो सकते हैं और उन पर कोई रोक-टोक नहीं होगी। मार्च 2020 में जब भारत में इसकी शुरूआत हुई थी, तब यह बीमारी इतनी खतरनाक नहीं लगती थी। बड़ी उम्र के वे लोग जो पहले से ही किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त थे, इसका शिकार हुए थे। इसी से आम जनता ही नहीं, सरकार तक असावधान हो गई। मगर इसकी दूसरी लहर बहुत खतरनाक थी, जिससे अपेक्षाकृत कम आयु के लोग भी प्राण गँवाने लगे। अब यह दूसरी लहर कमजोर पड़ रही है तो कहा जा रहा है कि जल्दी ही इसकी तीसरी लहर आयेगी जो कम उम्र के बच्चों के लिये ज्यादा घातक होगी। इस निष्कर्ष पर पहुँचने का वैज्ञानिक आधार क्या है, इसे कोई नहीं बता पा रहा है। लगता है बड़ी-बड़ी फार्मा कम्पनियों ने विश्व को बंधक बना लिया है और उनकी सनक और रहमोकरम पर ही अब मनुष्य को जिन्दा रहना है।