राजशेखर पंत
हर बड़ी विभीषिका ने समाज को बदला है. यूं तो समाज और उससे जुड़ा हर पहलू समय के साथ-साथ हमेशा बदलते रहते हैं, ठीक वैसे ही जैसे प्रकृति की हर जैविक संरचना बदलती है. पर यह परिवर्तन इतना सहज, इतना स्वाभाविक और इतना चुपचाप होता है कि हम इसका संज्ञान नहीं ले पाते. पर कोई भी विभीषिका, चाहे वह मानवजन्य हो या फिर कथित रूप से दैवीय, एक ही झटके में बहुत कुछ बदल देती है.
14वीं शताब्दी में आयी ब्लैक डैथ ने चर्च के पराभव की भूमिका लिखी थी और तत्कालींन सामंती व्यवस्था के शताब्दियों पुराने किले की दीवारों पर सेंध लगाना शुरू कर दिया था. स्पेनिश फ्लू, विश्व युद्धों तथा तीस के दशक की खतरनाक मंदी ने राष्ट्रवाद की प्रबल भावना की निरर्थकता की पोल खोल कर रख दी थी. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से मानव-जाति के भविष्य को सुरक्षित और सुन्दर बनाने का विचार इन विनाशकारी दुर्घटनाओं के बाद ही जन्मा था.
एक रोचक तथ्य यह भी है कि इस तरह की घटनाओं की पृष्ठभूमि में किसी अतिमानवीय शक्ति का हवाला देने वाले भी हर युग में मौजूद रहे हैं. कोविड-19 के संदर्भ में तो इस तरह की निरर्थक और हास्यास्पद बयानबाज़ी के उदहारण काफी हालिया हैं. होमर के ज़माने में अपोलो की नाराजगी ग्रीक्स पर प्लेग का कहर बरपा दिया करती थी. ब्लैकडेथ ने ब्रदरहुड आव फ्लेगेलेन्ट्स जैसे संस्थाओं को जन्म दिया था, जिसके सदस्य समाज के सामूहिक पापों का प्रायश्चित खुद को सार्वजानिक रूप से कोड़े मार कर किया करते थे. एच.आई.वी. के शुरुवाती दौर में समलैंगिकता के बढ़ते हुए कथित पाप को इस आपदा का कारण मानने वालों की कमी नहीं थी. मृत्युबोध और विनाश की अपरिहार्यता संभवतः मनुष्य के अचेतन मन को सभ्यता के प्रारंभिक दौर से ही कुरेदती रही होगी; और इसी भय के चलते उसने किसी पराशक्ति के क्रोध को विनाश का कारण मान लिया होगा. यूं भी किसी गुस्सैल ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास कर लेना ईश्वर को न मानने से ज्यादा सहज और सुविधाजनक रहा है मानव समाज के लिए.
यहाँ पर यह जानना भी रोचक है कि अधिकांश काल्पनिक कहानी/उपन्यासों में भी एलियंस द्वारा धरती में विषाणु फैला कर मानव जाति का विनाश किये जाने की कल्पना की गयी है. पिछली सदी के तीस्ररे दशक में प्रकाशित एच.पी. लवक्राफ्ट की रचना ‘द कलर आउट आव स्पेस’ में एक उल्कापिंड द्वारा आये वायरस की कहानी गढ़ी गयी है. सत्तर के दशक के चर्चित उपन्यास ‘द एनद्रोमेडा स्ट्रेन’ (माइकेल क्रिचटन) में भी विषाणु आउटर स्पेस से ही आता है. उपन्यासों से ले कर विडियो गेम्स तक बहुत से उदहारण हैं ऐसे, जहाँ दुनिया के विनाश के कारणों की खोज इंसानी कल्पना को इस धरती के बाहर ले जाती है. किस्सा-कोतहा ये कि खुद को पाक-साफ़ या फिर अजेय समझने बावजूद बेहद डरे हुए इंसानों ने दुनिया के विनाश की असंभव-संभावना का ठीकरा हमेशा ही कहीं और फोड़ने की कोशिश की है.
बात कल्पना और दुनिया के संभावित विनाश की चल रही हो तो यह जानना भी रोचक होगा कि दुनिया में अब तक घटी विनाशकारी दुर्घटनाओं/महामारियों की संभवतः संयोगवश की गयी कल्पनाओं को सहज रूप से पूर्वाभास जैसा कुछ मान लेना हमेशा ही ज्यादा आसान और चमत्कृत करने वाला रहा है. लेखकों/उपन्यासकारों द्वारा कई दुर्घटनाओं की कल्पना इनके घटने से बहुत पहले ही कर ली गयी थी. डब्लु.टी. स्टीड और मॉर्गन रोबर्टसन ने अपने लघु उपन्यासों में टाइटैनिक जैसे जहाज के डूबने का जिक्र तब किया गया था जब टाइटैनिक का निर्माण भी शुरू नहीं हुआ था. मॉर्गन रोबर्टसन ने तो अपने जहाज़ का नाम भी बाकायदा टाइटन रखा था. अमरिकी लेखक जैक लन्दन के 1912 में छपे उपन्यास ‘स्कारलेट प्लेग’ को तो प्रथम विश्वयुद्ध के बाद फ़ैली स्पेनिश फ्लू जैसी महामारी की भविष्यवाणी ही कहा जाता है. कोविड-19 के पूर्वाभास का श्रेय भी इन दिनों 1981 में प्रकाशित थ्रिलर ‘द आईज ऑव डार्कनेस’ (डीन क्रून्त्ज़) को दिया जा रहा है. इस उपन्यास में वायरस का नाम वुहान-400 है. 2008 में प्रकाशित सिल्विया ब्राउन की किताब ‘एंड ऑव डेज’ में भी 2020 के आसपास निमोनिया की तरह की किसी ऐसी बीमारी के वैश्विक स्तर पर फैलने की बात कही गयी है जिसके इलाज की उस समय तक कोई संभावना नहीं होगी. यह भी कहा गया है कि यह बीमारी अचानक ही गायब हो जायेगी और फिर पूरी तरह से समाप्त होने से पहले दस वर्ष बाद दोबारा उभरेगी.
निश्चित ही मानव मस्तिष्क की संभावनाओं की परतें खुलना अभी बाकी है. हो सकता है कि इन संवेदनशील लेखकों की अंतर्दृष्टि ने भविष्य के संकेतों को पढ़ा हो; या फिर उनकी उर्वरा कल्पना-शक्ति ने संयोगवश ऐसा कुछ लिख डाला हो जो कि एक सीमा तक सच हो गया. फिलहाल मुझे तो यह पढ़ कर अच्छा लगा कि ये बीमारी अचानक गायब हो जायेगी- कम से कम अगले दस वर्षों के लिए.
पर यह प्रश्न अब भी अनुत्तरित है कि कोवीड-19 के बाद की दुनिया कैसी होगी. जो कुछ भी घट रहा है, जो हम देख-पढ़ रहे हैं, उसे आधार बना कर कुछ सोचना, कुछ उम्मीदों को जगाना और दु:स्वप्नों को परे धकेलना शायाद रोचक होगा… मैं कोशिश कर रहा हूँ –आप भी कीजिये.