चन्द्रशेखर जोशी
जैसे सरकारी तंत्र को तोड़ना कठिन, वैसे ही वायरस का जटिल रासायनिक बॉड नष्ट करना भी मुश्किल है। समाज की बुद्धि बिगड़े तो तंत्र पर अपराधी काब्जा कर लेते, गर प्रकृति चक्र बदले तो शरीर पर वायरस हावी हो जाते हैं। दोनों जानलेवा हैं। इनसे संघर्ष भी समान है। हौसला बुलंद, विचार दुरुस्त और शरीर पुष्ट रहे।
…भय दिखा कर डाक्टर-दुकानदार लूटेंगे, सरकार इसकी आड़ में बड़े खेल कर बैठेगी। मीडिया के अनपढ़ों की बातों पर न जाएं, डब्लूएचओ की ताजा बुलेटिन और अंतर्राष्ट्रीय फिक्रमंद चिकित्सकों की बातें जरूर सुनें। समाज के असभ्य लड़के-लड़कियों के मुंह पर बंधे मास्क से प्रभावित न होवें, वायरस 10-20 रुपए के नकाब से नहीं रुकता। मोबाइल की ट्यून से परेशान होने की जरूरत नहीं, भारत सरकार की औकातानुसार सतर्क रहने के लिए इतना भी काफी है।
…कोरोना वायरस (SARS CoV2) अटैक को हल्के में नहीं लेना चाहिए। जब तक मानव शरीर इसकी पहचान न कर ले तब तक यह प्राणलेवा है। अणु, जीवाणु या वायरस को खत्म करने के लिए उसके रासायनिक बांड को तोड़ना जरूरी होता है। अध्ययन में अब तक स्पष्ट नहीं कि धरती पर पहले जीव आया या वायरस। विषाणु जीवन संरचना का एक रूप है। अब तक की परिकल्पना में माना गया कि धरती पर जब कोशिकाएं बनीं उसके बाद ही वायरस अस्तित्व में आए। वायरस जीवित कोशिकाओं के डीएनए या आरएनए की बीट्स से पैदा हुए।
20वीं शताब्दी का दूसरा भाग वायरस की खोज का स्वर्ण युग था। इन वर्षों में दो हजार से अधिक जानवरों, पौधों और जीवाणु वायरसों की खोज हुई। वायरस प्रोटीन, जैविक स्थूल अणुओं के महत्वपूर्ण वर्ग हैं, जो सभी जैविक अवयवों में मौजूद होते हैं। मुख्य रूप से यह कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, आक्सीजन और सल्फर तत्वों से बने होते हैं। सभी प्रोटीन, अमीनो एसिड के बहुलक हैं। अपने भौतिक आकार द्वारा वर्गीकृत किए जाने वाले प्रोटीन, नैनोकण हैं जो अवशेष के रूप में भी जाने जाते हैं। अब तक ज्ञात वायरसों में कोरोना नई पीढ़ी का है।
…खैर, यह जटिल संरचना न जीवित है और न ही मृत। तापमान में बदलाव आने पर यह जीवित हो जाते हैं और तेज रफ्तार से दौड़ने लगते हैं। वायरस जीव-जंतु और पौधों से दूसरे शरीर में प्रवेश करते हैं। शरीर में इनकी रेंडम रफ्तार विकट घाव पैदा करती है। इससे पूरी संरचना बदलने लगती है। इससे मस्तिष्क, फेफड़े और रक्त संचार प्रभावित होने लगता है। सफेद रक्त कणिकाएं आपस में चिपकने लगती हैं। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो तो जिंदगी पर बन आती है। शरीर जब तक इनको नहीं पहचान पाता, तब तक इनसे लड़ने के लिए एंटीबाडीज तैयार नहीं कर सकता।
विज्ञानी विविध वायरसों से लड़ने के लिए वैक्सीन तैयार करते हैं। मौजूदा व्यवस्था ऐसी नहीं है कि जल्द कोरोना के लिए वैक्सीन तैयार की जा सके। लिहाजा इससे शरीर को स्वयं ही लड़ना है। एंटीबाडीज बनने के लिए पौष्टिक आहार की जरूरत होती है। इस प्रक्रिया के लिए मानसिक संतुलन जरूरी है। अगर दहशत पैदा हो गई तो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाएगी और एंटीबॉडीज नहीं बन पाएंगे।
…विशेषज्ञों के अनुसार वायरस एक खास तापमान में सक्रिय होते हैं। मौसम में अचानक बदलाव इनकी सक्रियता के लिए अनुकूल होता है। उम्मीद थी कि भारत में 15 दिन के भीतर इसका असर कम हो जाएगा पर बेमौसम बारिश और ठंडक के कारण इसके प्रभाव का समय बढ़ेगा।
…दुकानों में मिल रहे मास्क बीमारियां पैदा करते हैं। इनमें कोई एंटी बैक्टीरियल दवा नहीं है। श्वास की नमी के साथ धूल के कण मास्क पर बैक्टीरिया पैदा करते हैं, इससे घातक बीमारियां होंगी। मेडिकल स्टोरों में बिक रहे मास्कों पर एल्कोहल छिड़का गया है। एल्कोहल एंटी वायरस नहीं होता। मास्कों के कपड़े पर बने छिद्र वायरस को नहीं रोक सकते। एक अच्छी क्वालिटी का मास्क भी एक घंटे से ज्यादा प्रयोग में नहीं लाना चाहिए। फिलहाल वायरस का संक्रमण देश-विदेश जाने वाले उच्च-मध्य वर्ग तक सीमित है। अगर मौसम ने साथ नहीं दिया तो यह निम्न वर्ग तक फैलेगा फिर इसे रोकना मुश्किल होगा।
..मानव समाज का हर संघर्ष अंतर्राष्ट्रीय है, महामारी भी। मानवता के हित में साथ निभाएं, डट कर करें संघर्ष भी।