स्मृति व्याख्यान का ज़िक्र आते ही अमूमन सोच में एक खाका
आता है कि कोई अधिकृत वक्ता खड़ा है पोडियम पर, वह ऑडियंस से मुखातिब होने के पहले पीछे लगे बैनर — जिनकी स्मृति में है यह आयोजन, उनकी फोटो, नाम आदि की तरफ़ देखता है एक बार. ……
‘चन्द्रकला जोशी – शेखर जोशी न्यास’ ने व्याख्यान माला के इस रूढ़ ढर्रे को न सिर्फ़ तोड़ा है अपितु कई अर्थों में रिच, उपादेय और सुंदर बना डाला है.
कथाकार शेखर जोशी और सहधर्मिणी की याद में पुत्र प्रतुल जोशी + संजय जोशी ने स्मृति व्याख्यान -1 के आयोजन हेतु उत्तराखंड के एक ऐसे विद्यालय को चुना, जहां सिनेमा को पाठ्यक्रम में समाहित करते हुए किताबों के मूक कांसेप्ट को आवाज़ और शक्ल देने की कोशिश हो रही है. सर्वथा ऐसे नए “सिनेमा-इन-स्कूल” मामले में नानकमत्ता पब्लिक स्कूल ( उधम सिंह नगर ) राज्य का पहला स्कूल है. इतना ही नहीं, यहां परंपरागत शिक्षा से इतर, वास्तव में समग्र शिक्षा के मक़सद को प्राप्त करने की दिशा में भी ठोस कार्रवाई हो रही है.
ऐसी शिक्षण संस्था के बच्चों के बीच व्याख्यान के लिए नियोजित भी किए गए उद्भट विद्वान व मूल्यवान वक्ता शेखर पाठक. आपने भी क्या खूबसूरत और जबर्दस्त तरीका ईजाद किया इस मौके पर बच्चों को संबोधित करने का, वाह !
व्याख्यानमालाओं के प्रति उद्बोधन की यह प्रेरक पहल भी ठहराई जा सकती है. चन्द्रकला जोशी – शेखर जोशी स्मृति व्याख्यान – 1 के अवसर पर जिस पुस्तिका “बिगड़ते हुए बनने की ज़रुरत” का प्रकाशन हुआ, उसकी अंतर्वस्तु को देख कर ही यह सब रेखांकित किया जा रहा है.
नवारुण प्रकाशन की पुस्तिका में किसी न किसी तरह हिमालय और उसके विस्तार से जुड़े कुछ पुरखों, पूर्वजों के बारे में ऐसी जानकारी का सार है कि वह तरुण – तरुणियों को ही नहीं वयस्कों तक को
‘क़ुबाटा’ चलने का जोखिम उठाने का हौंसला देने लगता है.
पुस्तिका में विलियम मूरक्राफ्ट (1767 – 1825) हैं, जो हिमालय पार कर कैलास मानसरोवर जाने वाले पहले अंग्रेज बने. अरबी इतिहास के स्कॉलर एलेक्जेंडर सोमा द कोरोस ( 1784 – 1842) हैं, जो 58 की उम्र में ल्हासा जाने के लिए दार्जिलिंग तक पहुंच गए. पंडितों के पंडित नैन सिंह रावत (1830 ने- 1832) हैं, जिन्होंने सर्वे शिक्षण – प्रशिक्षण हेतु उपयोगी “अक्षांश दर्पण” जैसा प्राइमर तैयार किया. यहां
“डोला पालकी आंदोलन” के सूत्रधार जयानन्द भारती (1881 – 1952) भी हैं.
‘वोल्गा से गंगा’ के कलमकार, महायात्री राहुल सांकृत्यायन (1893 – 1963) के बाबत भी पुस्तिका में विरल सामग्री दी गई है तो संग्रामी सरला बहन (1901 – 1982) से संबंधित भी काफी कुछ.
सबसे पहले दुनिया के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने वाले हिमालय के बेटे शेरपा तेनज़िंग नोर्गे ( 1914 – 1986) के बारे में यहां एक कम ख्यात तथ्य है कि शेरपा को उनकी मां ने खार्ता घाटी में लंगमाला दर्रे के रिनपोचे झील के पास जनमा था, समुद्र तल से 18000 फीट ऊंचाई पर. तभी तो उनके लिए एवरेस्ट कठिन नहीं रहा न ?
फिल्म डिवीजन के पहले कैमरा मैन नारायण सिंह थापा (1924 -2004), गंगा और बनारस के बगैर सांस भी न ले सकने वाले बिस्मिल्लाह खां (1916 – 2006) और नेपाली – कुमाऊंनी गीत गायन की अनूठी आवाज़ कबूतरी देवी (1939 – 2018) के संघर्ष की कहानी भी पुस्तिका में है. इसी तरह हिंदुस्तान के गोर्की शैलेश मटियानी और भू विज्ञान के असली आचार्य खड्ग सिंह वल्दिया की अपने अपने प्रक्षेत्र में जो ऊंचाई हैं, वह क्योंकर है — इसका जायज़ा विद्यार्थी लें और अपने भीतर कुछ जज़्बा भी पैदा करें.
हां, इतनी शानदार पुस्तिका में अनुक्रमणिका भी रहती तो अच्छा होता.