जगमोहन रौतेला
रानीबाग ( हल्द्वानी ) के चित्रशिला घाट में गार्गी ( गौला ) नदी के किनारे अंतिम संस्कार के लिए हर रोज कई शव पहुँचते हैं । कभी – कभी तो इनकी संख्या दो से तीन दर्जन तक भी पहुँच जाती है । नदी के किनारे ही अंतिम संस्कार किए जाने से अंतिम संस्कार के लिए प्रयोग होने वाली सामग्री में से कुछ कूड़ा करकट बच जाता है । जिसे शवदाह के लिए आये हुए लोग या तो गार्गी नदी में ही फैंक देते हैं या फिर नदी के किनारे ही छोड़ देते हैं । कल 10 दिसम्बर 2019 को कका मोहन सिंह रौतेला के शवदाह के लिए चित्रशिला घाट पहुँचा तो वहॉ इधर – उधर बिखरे प्लास्टिक , पोलिथीन , प्लास्टिक की बोलतों को देखकर मन को बहुत पीड़ा हुई । शवदाह के दौरान व शवदाह के बाद मैंने अपने अनुजों नृपेन्द्र सिंह रौतेला , सौरभ रौतेला और नितिन रौतेला के साथ घाट की कुछ सफाई की और इधर – उधर बिखरे कूड़े को कूड़ेदान के हवाले किया ।
लोगों द्वारा यह तब किया जा रहा है , जब कि वहॉ कूड़ेदान लगे हुए हैं । शवदाह के लिए हर तरह के लोग पहुँचते हैं । जिनमें पर ” पढ़े – लिखे”, बौद्धिक , चिंतक , समाजिक सरोकारों व राजनीति आदि से जुड़े हर तरह के लोग होते हैं। पर मैं जब भी किसी शवदाह में जाता हूँ तो किसी को भी कूड़ा करकट फैलाने से रोकते हुए नहीं देखता हूँ । इधर , कुछ सामाजिक संगठन वहॉ बार – बार जाकर सफाई का कार्य करते हैं । पर उनकी मेहनत दो – चार दिन में ही बेकार सी हो जाती है , क्योंकि लोग घाट की सफाई पर ध्यान न देकर कूड़ा फैलाने पर ज्यादा ” ध्यान ” देते हैं । जो बेहद चिंताजनक व शर्मनाक है ।
उल्लेखनीय है कि चित्रशिला घाट से लगभग तीन किलोमीटर नीचे की ओर काठगोदाम में गौला नदी पर बैराज बना हुआ है । इस बैराज से गॉवों को सिंचाई के लिए नहरों द्वारा पानी भेजा जाता है । इसके अलावा नहर के द्वारा शीषमहल स्थित फिल्टर प्लॉन्ट के लिए पानी पहुँचाया जाता है । जहॉ से हल्द्वानी नगर निगम की 60 प्रतिशत जनसंख्या को पेयजल की आपूर्ति की जाती है । चित्रशिला घाट में शवदाह के दौरान गौलानदी का प्रदूषित जल भी पेयजल के तौर पर घरों में पहुँचता है । हॉलाकि फिल्टर प्लॉन्ट में पानी को प्रदूषण मुक्त करने की कोशिस जलसंस्थान द्वारा की जाती है । इसके बाद भी पानी पूरी तरह से शुद्ध ( प्रदूषण रहित ) नहीं हो पाता है । जिसका वजह से हल्द्वानी की एक बड़ी जनसंख्या पेट की बीमारी से पीड़ित है और उनके पेट में कीड़े हो जाते हैं। जिससे कई बार लोग पेट की भयानक बीमारियों से पीड़ित भी हो जाते हैं ।
शवदाह के दौरान लोग शव की अंतिम क्रिया को फटाफट निपटाने के चक्कर में अक्सर डीजल , पेट्रोल , मिट्टी तेल का उपयोग करने के साथ ही टायरों का भी उपयोग करते हैं । जो गौला नदी के पानी को खतरनाक तौर पर प्रदूषित करता है । लोग ऐसा तब करते हैं , जबकि उनमें से अधिकांश लोग गौला नदी का पानी पीते हैं । पानी की शुद्धता का ख्याल रखने की बजाय शवदाह जल्दी निपटाने के चक्कर में लोग इतना खतरनाक व लापरवाही वाला कदम क्यों उठाते हैं ? यह मुझे कभी समझ नहीं आया ।
स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा इस बारे में जागरूकता वाले बोर्ड लगाने से लोगों में थोड़ा चेतना आई तो है , पर वह इस स्तर पर नहीं है कि चित्रशिला घाट को पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त किया जा सके । इस बारे में मेरा नगर निगम प्रशासन से अनुरोध है कि वह वहॉ छह – छह घंटे की ड्यूटी के आधार पर दो लोगों की नियुक्ति कर दे । जो शवदाह के लिए आए लोगों पर नजर रखे और उन्हें किसी भी तरह का प्रदूषण फैलाने से रोकने के साथ ही इससे होने वाली हानि के बारे में भी बताए । इसके लिए हर शवदाह पर 50 या 100 रुपए का शुल्क निर्धारित कर दे । इस शुल्क से वहॉ नियुक्त कर्मचारियों का वेतन निकाला जा सकता है ।
नगर निगम प्रशासन को इसके अलावा चित्रशिला घाट में विद्युत शवदाहगृह के निर्माण की प्रक्रिया को भी तेज करना चाहिए । विभिन्न संस्थाओं द्वारा इस बारे में समय – समय पर नगर निगम प्रशासन , स्थानीय व जिला प्रशासन को भी ज्ञापन देकर विद्युत शवदाहगृह के निर्माण की मॉग की जाती रही है । कई बार समाचार पत्रों में इसके लिए बजट तक आवंटित हो जाने की खबरें तक प्रकाशित होती रही हैं । पर विद्युत शवदाहगृह के निर्माण का कार्य अभी प्रारम्भिक अवस्था में भी नहीं पहुँचा है , जबकि गार्गी नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए यह एक बहुत बड़ा कारगर कदम होगा । क्या नगर निगम , स्थानीय व जिला प्रशासन इस ओर गम्भीरता से ध्यान देकर कोई निर्णायक कदम उठायेगा ? ***