रमदा
स्वचालित वाहनों की बेरोकटोक आवाजाही से मुक्त, समुद्र सतह से तकरीबन 8०० मीटर की ऊंचाई पर बसा महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट का विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल/ नगर ‘ माथेरान ’ ( माथे या शीर्ष पर वन ) एशिया का अकेला स्वचालित- वाहन मुक्त, मनोरम और अनूठा हिल-स्टेशन है.
पदयात्री-पर्यटकों के लिए विशेष इस अकेले गंतव्य और पर्यावरण के प्रति इस संवेदनशील क्षेत्र के कंक्रीट मुक्त रास्तों पर कंक्रीट-ब्लॉक्स बिछाये जाने पर माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा अभी हाल में ही रोक लगाई गयी है. कहा गया है कि पर्यावरण और वन मंत्रालय की 2003 की अधिसूचना पर आधारित एक समुचित निगरानी-समिति/ मॉनिटरिंग-कमेटी बनाई जानी चाहिए जिसे आठ-सप्ताह के भीतर यह तय करना है कि माथेरान में ई-रिक्शा के परिचालन और रास्तों पर कंक्रीट-ब्लॉक्स बिछाने की अनुमति दी जाये या नहीं.
माननीय न्यायाधीशों के अपने महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि जाहिरा तौर पर हमारा मानना है कि इन ब्लॉक्स का बिछाया जाना नगर के प्राकृतिक सौन्दर्य को क्षति पहुंचाएगा. चूंकि ब्लॉक्स बिछाये जाने से पहले से यहाँ के रास्तों पर हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शे चल रहे हैं, इन्हीं रास्तों पर ई-रिक्शा चलाने में भी कठिनाई नहीं होनी चाहिए. रिज़र्व-फौरेस्ट में चलने वाली सफारी ऐसे ही रास्तों पर तो चलती हैं और हमारी समझ में यही माथेरान के लिए उपयुक्त होगा. यह हमारे विचार से दोनों पक्षों को भी स्वीकार्य होगा. अतः मौनिटरिंग-कमेटी को ब्लॉक्स बिछाए जाने और ई-रिक्शा के इन दो मामलों में अपनी रपट देनी चाहिए.
न्यायालय ‘घोड़ावाला-संगठनों’ की ओर से दाखिल की गयी उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें हस्त-चालित रिक्शा के स्थान पर पर्यावरण-अनुकूल ई-रिक्शा के परिचालन को, प्रयोग के स्तर पर, अपनाये जाने संबंधी एक आदेश में बदलाव की प्रार्थना की गयी थी. याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि यह नगर की ‘हेरिटेज-वैल्यू’ और पर्यावरण मंत्रालय द्वारा प्रदत्त ‘स्पेशल-स्टेटस’ के प्रतिकूल है. कंक्रीट-ब्लॉक्स प्राकृतिक सौन्दर्य को हानि तो पहुंचायेंगे ही रहवासियों और घोड़ों के लिए रपटने का खतरा भी पेश करेंगे. यह ई-रिक्शा पायलेट-प्रोजेक्ट कालांतर में मोटर-चालित वाहनों के माथेरान में गुपचुप प्रवेश का कारण बनेगा. याचिकाकर्ताओं के वकीलों का कहना था कि नगरपालिका-प्राधिकरण ने इस संरक्षित क्षेत्र की पारिस्थितिकी और पर्यावरण को विस्तृत और स्थाई तौर पर हानि पहुँचाने वाली विशाल स्तरीय निर्माण गतिविधियों को इस पायलेट-प्रोजेक्ट के बहाने अनुमति दी है. महाराष्ट्र राज्य और माथेरान नगरपालिका ने माथेरान की पार्रिस्थितिकी और पर्यावरण को संरक्षित किये जाने के लिए अतीत में उठाये गए कदमों की घोर उपेक्षा की है. 2002 में ई-रिक्शा के परिचालन से पूर्व इस शांत हिल-स्टेशन पर मोटर-चालित वाहनों की अनुमति नहीं थी. पर्यटक और निवासी लम्बी दूरियों के लिये घोड़ों और टॉय-ट्रेन का इस्तेमाल करते थे.
यद्यपि “एमिकस-क्युरी/ न्यायमित्र” का तर्क था कि यातायात का अभाव इस औपनिवेशिक नगर के लिए कठिनाई का सबब रहा है इसलिए हाथ-रिक्शा के स्थान पर ई-रिक्शा आना ही चाहिए. जिस समय माथेरान को पर्यावरण-संरक्षित क्षेत्र माना गया था उस समय ई-वाहन अस्तित्व में ही नहीं थे, अतः इस तकनीक से माथेरान को वंचित नहीं किया जाना चाहिए.
इन तमाम तर्कों-वितर्कों पर विचारोपरांत माननीय न्यायाधीशों ने साफ-साफ कहा है कि माथेरान की पारिस्थितिकी और पर्यावरण को जहां बचाया ही जाना चाहिए वहीं दोनों पक्षों की चिंताओं की भी परवाह की जानी चाहिए. निवासियों की कठिनाइयों और हाथ-रिक्शा परिचालन के एकमात्र यातायात विकल्प पर विचार करते हुए निगरानी -समिति को ई-रिक्शा परिचालन और कंक्रीट-ब्लाक संबंधी प्रश्नों पर अपनी सम्मति देनी चाहिये.
{ इस प्रकरण में एक पक्ष उन पथारोही-पर्यटकों का भी होना चाहिए था जो माथेरान के कच्चे, सीमेंट-कंक्रीट विहीन रास्तों को बनाये रखने के तो पक्षधर हैं किन्तु “घोड़ों की अति” की परेशानियों से भी मुक्ति चाहते हैं }
फोटो : इंटरनेट से साभार
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mrigeshpande3@gmail.com
वाह।