अशोक कुमार पाण्डेय
कश्मीर की एक यात्रा में मुझसे बात करते हुए एक कश्मीरी मित्र ने कहा था कि अगर सब ठीकठाक होता तो बहुत पहले ख़ुद कश्मीरी ही मांग कर चुके होते कि 370 हटा दिया जाए ताकि पूँजी आये और नौकरियाँ मिलें।
यहां यह “सब ठीकठाक होना” बेहद महत्त्वपूर्ण है। असल में एक बहुत बड़ा खेल परसेप्शन का भी है न। आख़िर यह परसेप्शन ही है कि जो लोग दिल्ली में रहते सारी उम्र किराए के मकानों में गुज़ार देते हैं उन्हें लगता है कश्मीर में कौड़ियों के मोल ज़मीन मिल जाएगी। ख़ैर इस पर बात आगे। चीज़ें ठीकठाक न होने के कारण ही आम कश्मीरी के लिए 370 उस वादे का प्रतीक है जो भारत सरकार ने कश्मीर से किया था। यह उसके लिए धीरे-धीरे उसकी अस्मिता का प्रतीक बनता गया और इसीलिए तो इस निर्णय के पहले इतनी सुरक्षा व्यवस्था करनी पड़ी कि कश्मीर जैसे चूहेदानी में बदल गया है : सब जानते हैं कि यह कश्मीरियों की इच्छा के विरुद्ध है।
जनतंत्र में जनता की इच्छा सर्वोपरि है। यह हमेशा राष्ट्रीय नहीं ,स्थानीय भी होती है। दुखद यह कि यह बात सबरीमाला में तो सीमाएं तोड़ के स्थापित की जाती है, कश्मीर में नहीं।
मैं संविधान विशेषज्ञ नहीं हूँ। 370 के ही तहत 370 को राष्ट्रपति कश्मीर की संविधान सभा की सहमति से हटा सकते थे। इसके पहले 370 के अधिकतर महत्त्वपूर्ण हिस्से राष्ट्रपति द्वारा ऐसे ही हटाए गए थे। संविधान सभा भंग होने के बाद असेम्बली की सहमति ली गई थी। लेकिन संविधान सभा को विधानसभा और विधानसभा को राज्यपाल मान लेना कितना सही या ग़लत है यह कोई संविधान विशेषज्ञ ही बता पायेगा। इतना तो है कि इस पूरी प्रक्रिया में कोई कश्मीरी शामिल नहीं है।
बायफर्केशन की मांग पुरानी है। बल्कि तीन हिस्सों में बांटने या राज्य के भीतर ही जम्मू और लद्दाख को स्वायत्त बनाने की मांग तो बलराज पुरी जैसे प्रोग्रेसिव लोगों ने भी की थी। लेकिन जम्मू कश्मीर को एक साथ रख केंद्रशासित प्रदेश बनाने के पीछे का लॉजिक केंद्रीय नियंत्रण के अलावा क्या है, मेरी समझ नहीं आया। बहस होगी सदन में तो और कुछ समझ आये शायद।
सबसे बड़ी बात यह कि इससे आतंकवाद पर कैसे काबू पाया जाएगा, यह मैं नहीं समझ पा रहा। कोई रचनात्मक पहल तो है नहीं। वही सैन्य समाधान है जो अब तक था और नाक़ामयाब रहा। बल्कि यह फैसला भारत समर्थक पार्टियों को पूरी तरह से हाशिये पर डाल देगा तो कट्टरपंथी और अलगाववादी ताक़तों का असर और बढ़ेगा। बाक़ी तो भविष्य ही बताएगा। यह भी कि कश्मीरी पंडितों की अलग राज्य की मांग नहीं मानी गई है। ज़मीन तो वे पहले भी ख़रीद सकते थे लेकिन उनके लौटने के लिए अलग से क्या हुआ है, मुझे नहीं पता।
अगर शांति न हुई और मामला सुप्रीम कोर्ट (जो 2017 में ही दुहरा चुका है कि 370 परमानेंट हिस्सा है संविधान का) या इंटरनेशनल कोर्ट में गया तो सुलझने के बजाय चीज़ें उलझेंगी। ऐसे में अडानी अम्बानी से लेकर टाटा बिड़ला तक सेना के साये में व्यापार करने जाएंगे या नहीं, देखना होगा। अब तक टूरिज्म कश्मीरियों के पास था इसलिए टूरिस्ट पवित्र थे, आगे क्या होगा, पता नहीं।
ज़मीन ख़रीदने के लिए बेचैन लोग पैसे बचाना शुरू कर दें। यह याद रखें कि क़ब्ज़ा नहीं करना, ख़रीदना है और कल अगर कोर्ट ने कुछ पलट दिया तो एक्को पैसा नहीं मिलेगा। फिर अभी से पहाड़ों पर चलने की प्रैक्टिस कर लें। इस साल अक्टूबर से ही मार्च तक का राशन, सूखी सब्ज़ियाँ, मांस वग़ैरह इकट्ठा करने की प्रैक्टिस करें। उन्हें सूखा करके कैसे रखते हैं उसकी प्रैक्टिस करें। रात के बारह बजे सेना दरवाज़ा खटखटाये तो क्या करना है जान लें। शादियाँ करने को बेचैन लोगों से यह कि अगर तुम लोग दिल्ली- यूपी- बिहार-तमिलनाडु वग़ैरह में अपने लिए एक अदद बीबी नहीं ढूंढ पाए तो कश्मीर की सुंदरियां तुम्हें घण्टा भाव देंगी! हाँ अक्टूबर नवम्बर में जो लोग छठ मनाने जा रहे हैं उन्हें बस इतनी सलाह कि पानी में सूरज निकलने के बाद जाएँ और पॉलीथिन पहनकर जाएँ। गन्ना, दौरी वग़ैरह यहीं से लेकर जाएँ और …ख़ैर जाने दें।
आख़िरी बात। जिन्हें लगता है कि यह कोई एकीकरण है और “अब कश्मीर हमारा है” उनके लिए यह कि अब तक भी हमारा ही था भाई /बहन। कोई धारा जोड़ी नहीं गई नई। अब तक भी सरकारी भवनों पर तिरंगा ही फहराता था। 371 के तहत सिक्किम, नागालैंड, असम, मिजोरम, मणिपुर में भी बाहरी ज़मीन नहीं ख़रीद सकते तो वह कम हिंदुस्तान नहीं हो गया। जिन्हें लगता है यह गोवा जैसा काम है उन विद्वानों को बताना चाहूंगा कि गोवा में विदेशियों का क़ब्ज़ा था। याद दिलाना चाहूँगा कि पटेल के क़रीबी अयंगर ने कहा था 370 तोड़ने नहीं जोड़ने वाली धारा है। गुलजारी लाल नन्दा ने इसे वह सुरंग बताया था जिससे भारत कश्मीर से जुड़ता था। बाक़ी इतिहास की हर घटना एक मोड़ होती है। मंज़िल नहीं। नशे में झूमते लोगों को एक दिन रोता भी देखा है इतिहास ने। आख़िर कश्मीरी भी 1948 में कबायलियों को भगाकर हिंदुस्तानी झंडा लिए जश्न मना ही रहे थे।
कल क्या होगा कोई नहीं जानता। मुझे अपने देश की फ़िक़्र है और उसमें कश्मीरी शामिल हैं। मैं उनकी जान को लेकर चिंतित हूँ। मैने उनके घरों में कहवा पिया है, खाना खाया है, सुंदर क्षण बिताए हैं। मैं उन घरों को खुशहाल और शांत देखना चाहता हूँ – आपकी आप जानें।