मृगेश पाण्डे
आर्थिक समीक्षा में देश की अर्थव्यवस्था में बदलाव के तमाम नुस्खे, टोने-टोटके, तंत्र मौजूद हैं। समाधान के उपाय और अनुष्ठान भी। इस कर्मकांड में एक ओर मौजूद रहते हैं वह तमाम मात्रात्मक चर, जिनमें आपसी तालमेल और गठबंधन होता है। इन्हें व्यापक आर्थिक चर कहा जाता है जैसे सकल उत्पाद, आय, उपभोग, बचत व विनियोग इत्यादि। जी.डी.पी. का खेल यही शुरू करते हैं और इनका गणित अर्थव्यवस्था के कुछ प्राचलों व स्थिर घटकों की जुगलबंदी से मात्रात्मक मॉडल या प्रारूप के रूप में सामने आता है। इसमें कुछ प्रौक्सी वेरिएबल भी हैं और वह गुणात्मक घटक भी जिनका सम्बन्ध समाज की सोच, मनोदशा, मानसिकता व काम के तरीकों के साथ सभ्यता, संस्कृति, धर्म, लोक विश्वास, आस्था व अध्यात्म के साथ भी जुड़ा होता है। 2019 के आर्थिक सर्वेक्षण में जन के व्यवहार या आचरण को बदलने और उसे धनात्मक बनाने की पुरजोर कोशिश की गई है। सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक मापदण्डों पर आधारित गुणवत्ता पर जोर दिया गया है। इस प्रकार व्यावहारिक समीक्षा का ताना-बाना मौजूद है जिसे नीतिगत धक्के (पालिसी नज) की संज्ञा दी गई है। नीति आयोग में ‘नज इकाई‘ स्थापित करने की तैयारी है।
आर्थिक समीक्षा में देश के चालू हालातों के जिक्र, उसकी उपलब्धियों और खामियों के साथ बड़े बोल, बड़ी सोच और नीतिगत कुशलता का बखान होता है। इसके आधार पर ही भावी क्रियान्वयन का रास्ता बनाया जाता है। देश के हालात पर गहरा दखल रखने वाले अर्थशास्त्रीद्वय कौशिक वासू और अरविंद सुब्रमण्यम ऐसे यूटोपिया पहले भी संवार चुके है। इसी भावभूमि में अब मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम व्यवहार-आचरण जनित परिवर्तनों का उपजाने की पहल करते हैं। इसके लिए सामाजिक, सांस्कृति व धार्मिक कारकों को रेखांकित किया गया है। यह विकास को प्रभावित करने वाले अनार्थिक घटक हैं, जिनका मापन व प्रभाव आंकलन जटिल है, कठिन है। यह सोच और दृष्टिकोण को तय करती हैं। यदि इनकी दशा व दिशा प्रबल आशावाद व सकारात्मक परिर्वतन की ओर ठेल दी जाए तो निश्चय ही अर्थव्यवस्था के व्यापक चरों में वृद्धि होगी। यह संकल्पना है।
व्यवहार/आचरण अर्थशास्त्र के इस संधि बिंदु में आर्थिक समीक्षा 2019 में मोदिनॉमिक्स और मोदी नीति के मध्य संतुलन साधने की भरपूर कोशिश की गई है। पूंजीपतियों की गांठ निचोड़ कर मुफलिसों में बांट देने की कीमियागरी वाला राबिनहुड है, जो महानायक की तरह उभरा है। पहले चरण में रिफॉर्म पर फोकस करता नजर आता है तो सूटबूट की सरकार की तोहमत झेलता है तो अब इसे गरीबों की सरकार की छवि प्रदान कर दी गई है। आखिर इतनी प्रचंड जीत के पीछे वंचितों की दुआ तो मिली ही थी। फकीर की झोली भी भरी। ऐसी योजनाऐं चली जिन्हें आम जन ने हाथोंहाथ लिया। इसीलिए अब प्रधानमंत्री आवास योजना का टारगेट बढ़ा दिया गया। हर घर को बिजली मिलने का भी फरमान है। हर घर को मिलने वाली बुनियादी जरूरतों को भी अमली जामा पहनाने के जतन हुए। सबका कुशल नियोजित प्रबंधित विज्ञापन हुआ। दिशा मैदान की जगह शौचालय, लकड़ी के बदले गैस, साफ सफाई स्वच्छता को संदेश, पर्यावरण प्रेम। अब हर घर जल की योजना, पेंशन योजना के विस्तार की घोषणा है। किसानों को फौरी सहायता तो अब परम्परागत खेती पर जोर। जैविक जमाने की ओर। अभी बस विरासत में मिलने वाली सम्पत्ति पर कर का प्रस्ताव भी था जो सरकार ने परे सरका रखा है। वही आंध्र, उड़ीसा, बिहार जैसे राज्य विशेष दर्जे की मांग कर रहे थे, पर किसी एक राज्य को भी अलग से कुछ अतिरिक्त नहीं दिया गया।
इस बार सारी आधारभूत बातें अंतरिम बजट में ही साफ कर दी गयी थीं। फाइनल बजट लाल वस्त्र में लिपटे बही खाते से प्रकट हुआ, जिसे मुख्य आर्थिक सलाहकार के. सुब्रमण्यम विशिष्ट भारतीय परम्परा का अनुष्ठान बताते हैं। 49 वर्ष के उपरांत नारी शाक्ति की हाथ वित्त की कमान लगी। निर्मला अम्मा ने 2 घंटे 10 मिनट के अपने भाषण के बीच पानी का एक घूंट तक नहीं पिया। हाशमी के शेर से शुरूआत हुई कि, ‘‘यकीन हो तो कोई रास्ता निकलता है, हवा की ओट ले कर चिराग जलता है‘‘। माई ने यह भी बताया कि दृढ़ संकल्प के साथ किया गया कार्य पूरा होता है और सरकार इसका पालन करती है। यह चाणक्य नीति का सूत्र था,
‘‘कार्य पुरूष कारेण लक्ष्य संपधते‘‘। फिर कल्याणकारी राज्य की अवधारणा रखने वाले कर्नाटक के बागवाड़ी में 1131 ई. में ब्राह्मण परिवार में जन्मे भगवान बसवेश्वरा के ‘‘कयाकव कैलाशा‘‘ का सूत्र दे उन्होंने बताया कि कर्म ही पूजा है। भगवान बसवेश्वरा ने कविताओं के द्वारा कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था।
अस्तु, 2019 की आर्थिक समीक्षा नीले आकाश में उड़ान भरते भारत के आर्थिक विकास प्रारूप के उस ढांचे को सामने रखने का प्रयोजन रचती है जिससे 8 प्रतिशत शुद्ध जी.डी.पी. प्राप्त की जा सके। इस दस्तावेज का मुखपृष्ठ आवरण आसमानी नीला है। आपको याद होगा पिछले साल की रपट का कवर ‘पिंक’ था जिसे महिला सशक्तीकरण और लैगिक समानता का प्रतीक बताया गया था।
परिवर्तन और धक्के यानी ‘नज‘ की आस से अपना अभीष्ट पानी की कोशिश करती 2019 की आर्थिक समीक्षा नए बदले सुरों का फ्यूजन है। बेटी बचाव से बदलाव, स्वच्छ भारत से आगे सुंदर भारत, घरेलू गैस सबसिडी छोड़ने के स्थान पर इसके बारे में विचार व चिंतन तथा कर चोरी, कर कपट व कर वंचन करने के इरादे छोड़ कर दायित्व की ओर झुकने की झंकार है। पूर्व के बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और स्वच्छ भारत अभियान की प्रगति से तरंगित है सत्ता। इसीलिए अब जन-जन की सोच व जनव्यवहार व आचरण की मनोदशाओं की सकारात्मक छलांग से वह रागिनी झंकृत की जा रही है जो रूढ़ि व परम्परा से जन मन में रची बसी है। संस्कृति, धर्म, सभ्यता, अखण्ड भारत की ताल सम। इन शक्तियों का जागर आरम्भ हो चुका है। इष्ट पूजे जा रहे हैं।
आर्थिक समीक्षा में बदलाव का सूत्र है, ‘बेटी आपकी धन लक्ष्मी और विजय लक्ष्मी है’। यह आदर्श सूक्ति निश्चित रूप से लैंगिक समानता का परिचायक भी है और नारी सशक्तीकरण का संदेश भी। इस प्रयोजन के लिए रोल मॉडल बनाया गया है देवी लक्ष्मी को। उनकी महिमा अपार अनंत है। एक ओर वह सम्पत्ति एवम् पूंजी अर्थात धन लक्ष्मी की द्योतक हैं तो दूसरी तरफ जीत यानी विजय की (लक्ष्मी की कृपा के बिना लोकतंत्र के पहरुए भी अपनी बिसात नहीं बिछा सकते)।
साथ ही परम्परा व घर्म के साथ जुड़े कई मिथकों, लोक विश्वासों का पिटारा भी समाए हुए है यह बजट। इसके भीतर कई नामी ब्रांड हैं। आप जिससे प्रभावित हों, जिसे चुन लें वह आपका अधिमान है। महात्मा गांधी ने आदमजात के भीतर धंस गई जिन सात सामाजिक बुराइयों या पाप का उल्लेख किया उनसे निजात पानी है। साथ ही हिन्दू, इस्लाम व ईसाई परम्पराओं के नैतिक व्यवहार से उन तमाम कलंको का समूल नाश संभव है जो आर्थिक व्यवहार विकास की बाधाऐं हैं। यह फिलासफी आर्थिक समीक्षा के दूसरे चैप्टर ‘पालिसी फॉर होमोसेपियन्स, नॉट होमोइकोनोमिक्स, लीवरेजिंग बिहेवियरल इकॉनोमिक्स आफ नजेज’ में काफी विस्तार से समझाया गया है।
यह तर्क दिया गया है कि व्यवहार-आचरण जनित अर्थशास्त्र व्यक्तिगत अभिरुचियों, पसंद, प्रतिमानों से प्रेरित व प्रभावित है। इनका सीधा सम्बन्ध हाउसहोल्ड द्वारा की जा रही आर्थिक क्रियाओं अर्थात उपभोग व उत्पादन की क्रिया, बचत व विनियोग की आदतों व आय कमाने के प्रयासों से है। अब आचरण व व्यवहार है तो अनार्थिक या गुणात्मक घटक पर वह काम ध्ांधे, खेती-किसानी, उघोग-धंधा चलाने के तौर तरीकों, सेवा प्रदाताअें के रुझान के साथ जीवनयापन व रहन सहन की तमाम क्रियाओं पर अपना गहरा असर डालता है। इन्हें यदि और जागृत कर दिया जाये तो कमोबेश आर्थिक विकास ‘स्वयंस्फूर्त’ से उछल ‘परिपक्वता की दशा’
(डू्राइव टु मैचोरिटी) प्राप्त कर लेगा। अब जागर लगाओगे तो द्याप्ता तो जगेगा ही। गलती, भूल-चूक भी बताएगा और समाधान का अनुष्ठान रचाएगा। अब 2019 की आर्थिक रपट गुणात्मक सोच के संस्थानीकरण को दिशा देने के ऐसे ही सम्पुट दे रही है। साथ ही हर सरकारी कार्यक्रम में उसके क्रियान्वयन से पूर्व एक व्यवहार-आचरण युक्त आर्थिक ऑडिट की प्रस्तावना भी रच रही है।
पूर्ववत ‘बिहेवियरल इकोनोमिक्स‘ का यह विचार यूनाइटेड किंगडम में लागू किया जा चुका है। व्यवहारजनित अन्तर्दृष्टि टीम का भी गठन किया गया। इसे अंग्रेजी में ‘नज‘ यूनिट कहा गया। वर्ष 2010 मे लोक नीतियों में व्यवहार आर्थिकी का यह परीक्षण किया गया। अमेरिका ने भी बंधी बंधाई लीक काफी पहले तोड़ दी थी। युद्ध की समयावधि में अमेरिका की सरकार ने फैक्ट्री-कारखानों में पुरुषों के द्वारा सम्पन्न किये जा रहे कार्यो में महिलाओं की भरती की। ‘रोजी द रिवेटर‘ के संस्कृति आइकॉन का दृष्टान्त दिया गया। अनेक उदाहरण व संदेशों का प्रसारण-प्रचार हुआ कि किस प्रकार महिलाऐं अपने स्त्रीत्व को आहत किए बिना पुरुषों द्वारा किए जा रहे कार्यो को बेहतर व कारगर तरीके से सम्पन्न कर सकने में समर्थ हैं, सफल बनीं। अब हमारे देश की ताजा आर्थिक समीक्षा में भी वैश्विक स्तर पर चले ‘मीटू’ अभियान का हवाला देते हुए यह नीतिगत फैसला दिया गया कि अब विभिन्न उत्पादक व सेवा प्रदाताओं द्वारा लैंगिक मजदूरी के मध्य के अंतर को साफ तौर पर बताया जाएगा। सिर्फ यह जता देना ही पर्याप्त नहीं होगा कि कितनी कंपनियों-प्र्रतिष्ठानों में बोर्ड पर शीर्ष पर कुछ महिलाऐं विद्यमान हैं। अब यह बताना असरकारी होगा कि कितनी महिलाऐं इनमें कार्यरत हैं और उनकी सहभागिता कितनी है।
अस्तु, आर्थिक सर्वे का दूसरा अध्याय जनमानस के आचरण-व्यवहार को विकास के लिए आवश्यक न्यूनतम प्रयास की तरह लेता है। भारत / 75 को नवभारत (न्यू इंडिया) में रूपान्तरित होने की प्रक्रिया मान कर चलता है। व्यवहार-आचरण आर्थिकी की वह बड़ी रूपरेखा है, जिस पर चलते नोबुल पुरस्कार सम्मानित रिचर्ड थेलर की सोच रही कि यह ‘नज’ नीतियां क्रमशः देश के प्रति व्यक्ति के व्यवहार को आशावादी बना देती हैं। साथ ही उनके चुनाव की स्वतन्त्रता पर भी कोई आधात नहीं होगा। अब भारतीय अर्थशास्त्री भी सत्ता की रपटों में यह स्वीकारोक्ति कर रहे हैं कि भारत की तो यह विशिष्ट परम्परा रही है। यहां प्रत्येक जन लोक के प्रति प्रचलित थात से अपनी पूरी क्षमताओं व संभावनाओं को महसूस करने के प्रति संदेदनशील है। आर्थिक समीक्षा अब ऐसी छलांग की प्रतीक्षा में है जहां यह अभी तक उपेक्षित जन राज्य के विकास में अपना गुणात्मक योगदान दे सके। अब उसे मात्र सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं को पाने, लपक लेने की काशिश नहीं करनी है। परम्परा से पोषित आचरण व्यवहार की मर्यादा का पालन कर विकास में सहभागी बनना है।
2019 की आर्थिक समीक्षा में उन धार्मिक रीति रिवाजों, सामाजिक मूल्यों व सांस्कृतिक परम्परा का खाका खींचा गया है जिन पर चल कर लोग सरकार को कर देने के लिए प्रेरित हों। नैतिक मूल्यों का अनुसरण कर युवा पीढ़ी मदिरा, नशे व अन्य व्यसनों से दूर रहेगी और साथ ही लैंगिक समानता की पक्षधर भी बनेगी। मान्यता ली गई कि लोग व्यावहारिक अर्थशास्त्र के सामाजिक मापदण्डों पर चलना पसंद करते हैं (आप यह न समझे कि वह लकीर के फकीर होते हैं)। लोगों में समाज के ढांचे में खपने, उसका अनुसरण करने की प्रवृत्ति होती है और वह इसके बनाए खांचे में फिट होना चाहते हैं। अनेक उदाहरणों की बानगी आर्थिक समीक्षा में दी गई हैं, जैसे पानीपत का युद्ध जो कन्या जन्म की रूढ़ियों के विरुद्ध लड़ा गया था। साथ ही लैंगिक समानता स्थापित करने के लिए संस्कृति व परम्पराओं का रक्षण करती शिव की अर्द्धनारीश्वर की कल्पना, गार्गी और मैत्रेयी के उदाहरण। फिर प्राचीन भारतीय समाज में पुरुषों का उनकी मां के नाम से किया जाने वाला उद्बोधन यथा यशोदानन्दन, गांधारी पुत्र। पत्नी/प्रिय की श्रेष्ठता के प्रतीक जैसे जानकी रमन, राधाकृष्ण, जिन्हें धनात्मक अन्तर्दृष्टि की तरह उकेरा गया है और जो लैंगिक असमानताओं का हरण-वरण करती हैं बल। संभवतः यह और ऐसे ही और बहुत बिम्ब भारतीय समाज के मन में गहरे धंसे है। सो इनकी सोच पारायण से बदलाव के नये कार्यक्रम की उम्मीद जगाई गई। आधुनिक विकसित भारत के लिए जो 2025 में 5 ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था होगी, 4 प्रतिशत मुद्रा प्रसार नियमित रखते हुए 8 प्रतिशत शुद्ध जी.डी.पी. की वृद्धि के साथ।
भारतीय संस्कृति में धर्म व आत्मिक-पारलौकिक विधानों से आचरण व्यवहार का शुद्धीकरण कर, कर की चोरी व अपवंचन के साथ आर्थिक अपराधों से मुक्त रहने के लिए कई उदाहरण प्रस्तुत हैं 2019 की आर्थिक समीक्षा में, जैसे हिंदुओं में ‘ऋणों’ का न चुकाया जाना एक पाप भी है और पितरों के लिए भटकाव भरा भी। ऐसे में योग्य संतान का यह कर्तव्य है कि वह अपने दिवंगत पिता, जो प्रेत योनि में भटक रहा है, के कर्ज को चुकाए। उसकी आत्मा को असीम विस्तार दे। इस्लाम के भी उदाहरण हैं कि उधारी चुकाए बिना जन्नत नसीब नहीं होती। सरपरस्त की मौत अगर कर्जे में डूब ही गई तो उसका माल असबाब खुर्द-बुर्द कर उसकी भरपाई की जाये और फिर भी अगर रकम चुकता न हो तो उसके एक या अनेक वारिस स्वैच्छिक रूप से उस रकम की भरपाई कर कर्जे से निजात दिलाऐं। ऐसे ही ब्याज लेना गुनाह है। जकात का विचार विषमता निवारक। आर्थिक समीक्षा में बाइबिल के सम्पुट भी हैं कि सारे उधार चुकाए जा सकते हैं पर एक दूसरे से प्रेम का जो उधार है बस, उसे चुकाया नहीं जा सकता। प्रभु के मार्ग पर चलने वाला भौतिक पूंजी के उधार चुका सही रास्ता चुनते हैं। आमीन।
आर्थिक आचरण और व्यवहार में आज विश्व अर्थव्यवस्था उलट पुलट के दौर मे है। वैश्वीकरण के विरुद्ध जा रहे हैं विकसित देश। अब उनकी स्वयं की नीतियां राष्ट्र राज्य के देशी दायरे में रह उन्हें एकाधिकारी शक्ति बना पाऐंगी। संरक्षण व प्रतिबंध की नीतियां पनप रही हैं। गैट की नीतियां अतिक्रमण की चपेट में थीं। विश्व व्यापार संगठन में खलबली है। अंकटाड अधिवेशन की संस्तुतियां प्रभावहीन बन रही हैं। व्यापार युद्ध गहरा रहे हैं। आपसी गुटों व द्विपक्षीय लेन देन बढ़ रहे हैं। ऐसे में आंतरिक स्थायित्व बाह्य संतुलन हेतु आर्थिक समीक्षा में जिस व्यूह नीति का आश्रय लिया है वह स्वावलम्बन से प्रेरित दीखती है। आंतरिक स्थायित्व के लिए जिन आंरभिक कार्यक्रमों को चुना गया है, वह है ‘सुंदर भारत’ जो स्वच्छ भारत मिशन है, फिर जनधन योजना है, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की सोच है। गैस, आवास, बिजली, पानी, परम्परागत खेती, जैविक उत्पाद, आयुष, मन की बात है। सबसे बढ़ कर देश में संस्कृति व आध्यात्मिक मूल्यों की समृद्ध परम्परा है। आचरण और व्यवहार की जुगलबन्दी से संयोजित अर्थशास्त्र की झलक है आर्थिक समीक्षा 2019 में।
प्रश्न कितने उठ रहे हैं ? संदेह कितने उभर रहे हैं ? शंकाए क्या हैं ? संशयात्मा विनश्यति!