अरविन्द शेखर
प्रसिद्ध कवि, पत्रकार और अनुवादक त्रिनेत्र जोशी का बृहस्पतिवार 22 सितंबर 2022को हरियाणा के गुरुग्राम में निधन हो गया । उनकी तबीयत बीते कुछ समय से नासाज थी। त्रिनेत्र जोशी के निधन से पत्रकारिता व साहित्य जगत में शोक की लहर है। 26 मई 1948 को उत्तराखंड के रानीखेत में जन्मे त्रिनेत्र जोशी की प्रमुख कृतियों में काव्य संग्रह- घूम गया कई मोड़, गर्मियाँ, चिट्ठी, जाते हुए, झिलमिल, नेकांत, भीतर-बाहर, महानगर और एक नाटक तूफान है। वह सत्तर के दशक में आनन्द स्वरूप वर्मा, मंगलेश डबराल, सुरेश सलिल, पंकज सिंह, अजय सिंह, प्रभाती नौटियाल, बिभास दास , नीलाभ, वीरेन डंगवाल की मित्र मंडली के अहम साथी रहे थे। वरिष्ठ पत्रकार विपिन धूलिया Vipin Dhuliya के मुताबिक त्रिनेत्र जी अल्मोड़ा के मूल निवासी थे… वे सत्तर के दशक के दौरान जेएनयू में चाइनीज के छात्र थे और तभी उन्होंने अपनी सहपाठी पूनम जी से विवाह किया… अमूमन उत्तराखण्ड के लड़के एआईएसफ ज्वाइन किया करते थे, क्योंकि वहां सीपीआई का अच्छा जनाधार था… लेकिन त्रिनेत्र जी इसके उलट नक्सलवादी आंदोलन से जुड़ गये और भूमिगत रहते हुए सिलसिला नामक अखबार निकाला करते थे… बाद में उन्होंने चाइनीज में टौप किया और परिवार के साथ नौकरी करने बीजिंग चले गए…. अस्सी के दशक के आखिर में वे स्वदेश लौटे और फिर कई न्यूज संगठनों में वरिष्ठ पदों पर कार्य किया। स्व.
त्रिनेत्र जोशी Trinetra Joshi ने हिंदी में भी परास्नातक किया था और वह देश के तमाम बड़े अखबारों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे। वह देश के उन विरले अनुवादकों में थे जिन्होंने चीनी भाषा का साहित्य हिंदी साहित्यिक समाज को उपलब्ध कराया। बारिश में करुणानिधान, स्वतः स्फूर्त, यों ही व नववर्ष की पहरेदारी उनके द्वारा अनूदित महत्वपूर्ण कृतियां हैं।उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौर में देहरादून में उन्होंने हिमालय दर्पण अखबार की कमान भी संभाली थी। वह विदेश मामलों के भी बड़े जानकार थे और हालिया रूस यूक्रेन संकट, श्रीलंका संकट आदि पर उन्होंने महत्वपूर्ण टिप्पणियां लिखीं थीं। कवि राजेश सकलानी के मुताबिक त्रिनेत्र जोशी का देहरादून से संबंध बहुत पुराना था। जे एन यू से चीनी भाषा की पढ़ाई करने से पहले वे आई टी बी पी , देहरादून में सेवारत रहे। फिर दूसरे दौर में हिमालय दर्पण समाचार पत्र के पहले संपादक के रूप में आए। यहां एम डी डी ए कालोनी, चन्दर रोड पर उनका निवास था। यहां के रचनाकारों से अखबार के लिए संपर्क करते थे।कुछ वर्ष पूर्व हल्द्वानी में घर बना लिया था लेकिन वहां शायद ज्यादा समय नहीं रहे। हिरावल पत्रिका के संपादक के रूप में उन्होंने बहुत से साहित्यकारों को प्रगतिशील मूल्यों के प्रति सजग किया।