उद्यान विभाग विगत 20-30 वर्षों से 10 से 15 करोड़ रुपए का अदरक बीज उत्तर पूर्वी राज्यों से दलालों के माध्यम से मंगाता आ रहा है, यह बीज कृषकों को न तो समय पर मिलता है और न ही इस बीज से अच्छी उपज प्राप्त होती है, हिमांचल प्रदेश की तरह राज्य में कभी भी अदरक बीज उत्पादन के प्रयास नहीं किए गए।
राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में नगदी फसल के रूप में अदरक का उत्पादन कई दशकों से किया जा रहा है। विभागीय आकडों के अनुसार 4876 हैक्टियर में अदरक की कास्त की जाती है जिससे 47120 मैट्रिक टन का उत्पादन होता है।
अदरक बीज प्राप्त करने के मुख्य स्रोत हैं-
1-आई.आई.एस.आर प्रयोगिक क्षेत्र केरल ।
2-कृषि एवं तकनीकी वि० वि० पोट्टांगी उडीसा।
3-वाइ.एस.परमार यूनिवर्सिटी आफ हार्टिकल्चर नौणी सोलन हिमांचल प्रदेश हैं।
उद्यान विभाग विगत 20-30 वर्षों से पूर्वोत्तर राज्यों असम, मणिपुर, मेघालय व अन्य राज्यों से सामान्य किस्म के अदरक को प्रमाणित/Truthful बीज के नाम पर रियो—डी—जिनेरियो किस्म बता कर 10 से 15 करोड़ रुपये का अदरक प्रति बर्ष क्रय कर राज्य के कृषकों को बीज के नाम पर बांटता आ रहा है।
अदरक बीज के आपूर्ति करने वाले (दलाल) इन राज्यों की मंडियों से 10-15 रुपये प्रति किलो की दर से क्रय करते हैं तथा अदरक बीज के नाम पर उद्यान विभाग 60-80 रुपये प्रति किलो की दर से इन दलालों के माध्यम से क्रय कर राज्य में कृषकों को योजनाओं के अंतर्गत वितरित करता आ रहा है जिस पर 50 प्रतिशत का अनुदान विभाग द्वारा दिया जाता है।
अदरक बीज की खरीद पर कई बार सवाल उठे हैं तथा विवाद भी हुए हैं। पूर्ववर्ती सरकार में भी अदरक बीज खरीद प्रकरण खूब चर्चाओं में रहा। समय—समय पर जब अदरक बीज खरीद पर सवाल उठते है तो विभाग के एक-दो अधिकारियों को निलंबित कर या बीज आपूर्ति कर्ता को ब्लैक लिस्ट कर प्रकरण वहीं समाप्त कर दिया जाता है।
अदरक बीज आपूर्ति कर्ता/ठेकेदार (दलाल) न तो अदरक बीज उत्पादक होते हैं और न ही किसी बीज आपूर्ति करने वाली कंपनी/फर्म के अधिकृत विक्रेता। सम्मपरीक्षा/Audit से बचने के लिए इनके द्वारा फ्रुटफैड हल्दानी, नैनीताल या अन्य सहकारिता समितियों के बिल का प्रयोग किया जाता है ये समितियां न तो अदरक उत्पादक होते हैं और न ही बीज आपूर्ति करने वाली संस्था। इस प्रकार अदरक बीज क्रय में/Seed act/उत्तराखंड पर्चेज रूल्स दोनों का उल्लघंन किया जाता है। अधिकतर कास्तकारों का कहना है कि स्थानीय उत्पादित अदरक बोने पर उपज ज्यादा अच्छी होती है विभाग द्वारा प्रमाणित बीज के नाम पर दिये गये अदरक बीज मै बीमारी अधिक लगती है साथ ही उपज भी कम होती है।
अदरक उत्पादित क्षेत्रों मै सहकारिता समितियाँ बनी हुई हैं जिनका मुख्य कार्य अदरक का विपणन करना है।ये समितियाँ कास्तकारौ से 15/20 रुपया प्रति किलो अदरक खरीद कर 30/40 रुपया प्रति किलो की दर से मंण्डियों मै बेचते हैं। यदि जनपद स्तर पर स्थानीय समितियों से ही यहां के उत्पादित अदरक को विभाग उपचारित कर अदरक बीज के रूप में खरीद कर योजनाओं में कास्तकारों को उपलब्ध कराये तो इससे दोहरा लाभ होगा एक तो कास्तकारों को समय पर अच्छी गुणवत्ता का बीज उपलब्ध होगा साथ ही कास्तकारों को अदरक के अच्छी कीमत भी मिलेगी।
टिहरी जनपद के फगोट विकास खण्ड के अन्तर्गत आगराखाल के अदरक उत्पादकों ने स्थानीय अदरक बीज से उत्पादन कर इस वर्ष माह अगस्त में ही एक करोड़ से अधिक का अदरक बेच दिया। इस क्षेत्र के कृषक कई दशकों से अदरक की व्यवसायिक खेती करते आ रहे हैं।
धमांदस्यू, दोणी व कुंजणी पट्टी के कसमोली, आगर, सल्डोगी, द्यूरी, कुखुई, चल्डगांव, कटकोड़, नौर, बसुई, पीडी, मठियाली, तिमली, मुंडाला, ससमण, बेराई, बांसकाटल, कोटर, रणाकोट, कुखेल, खनाना, जयकोट, जखोली, मैगा, लवा, तमियार गांवों के कृषक अदरक उत्पादन करते हैं।
इस वर्ष माह अगस्त में ही इस क्षेत्र के कृषकों द्वारा एक करोड़ से भी अधिक का अदरक देश की विभिन्न मण्डियों में भेजा गया। इस बार यहां का उत्पादित अदरक मुख्य रूप से इलाहबाद व जौनपुर की मंडियों में गया। अदरक की मुख्य फसल माह नवम्बर में तैयार होती है। इस समय जो अदरक बेचा गया वह बोया हुआ अदरक का पुराना बीज है जिसे कृषक अदरक का पौधा स्थापित होने के बाद माह अगस्त में पौधों से अलग कर बेच देते हैं।
अधिकांश प्रगतिशील कृषक स्थानीय रूप से उत्पादित अदरक बीज से ही अदरक का उत्पादन करते हैं, स्थानीय बीज की मांग अधिक रहती है किन्तु उतनी मात्रा में अदरक बीज उत्पादन नहीं हो पाता कृषकों का कहना है कि उद्यान विभाग द्वारा अदरक का बीज समय पर नहीं मिलता इस क्षेत्र में अदरक बीज की बुआई फरवरी में हो जाती है जब कि विभाग द्वारा अदरक बीज की आपूर्ति माह अप्रैल मई तक हो पाती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है साथ ही विभाग द्वारा आपूर्ति अदरक बीज बोने पर कई तरह की बीमारियों व कीट खड़ी फसल पर लगते हैं।
अदरक उत्पादित क्षेत्रों में कुछ कास्तकार स्वयं अदरक का बीज उत्पादित करते हैं। टिहरी जनपद के फगोट विकास खण्ड के अन्तर्गत आगरा खाल, कस्मोली आगर आदि ग्राम सभाओं के अदरक उत्पादकों के साथ मैंने स्वयं बैठक की जिसमें हरियाली ग्रामीण कृषक श्रमिक सहकारी समिति के अध्यक्ष श्री हरीश चंद्र रमोला, ग्रामीण श्रमिक कृषक कल्याण सहकारी समिति आगराखाल के अध्यक्ष श्री कुंवर सिंह रावत व अन्य कृषकों ने भाग लिया स्थानीय रूप से उत्पादित अदरक बीज की मागं काफी रहती है। अन्य अदरक उत्पादित क्षेत्रों देहरादून के चकरौता विकास नगर आदि क्षेत्रों में भी कास्तकार अदरक का बीज स्वयंम उत्पादित करते हैं।
ग्रामीण कृषक सहकारी समिति आगराखाल के अध्यक्ष व पूर्व क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष श्री वीरेंद्र कंडारी का कहना है कि इस बार शुरुआत में अदरक की अच्छी बिक्री हुई है। अगस्त माह में करीब एक करोड़ तक के अदरक की बिक्री हुई यह सब स्थानीय बीज व कृषकों की मेहनत का परिणाम है। उन्होंने कहा कि विभाग द्वारा आपूर्ति अदरक बीज समय पर नहीं मिलता साथ ही उसमें कई तरह की व्याधियां व कीट लगे होते हैं। श्री कन्डारी जी ने उद्यान विभाग को स्थानीय अदरक बीज उत्पादन को बढ़ावा देने व योजनाओं में स्थानीय अदरक बीज किसानों को वितरित करने की सलाह दी है।
अदरक बीज ग्राम विकसित कर अदरक उत्पादकों की आय कई गुना बढ़ाई जा सकती है। उद्यान विभाग में केंद्र सरकार की कई योजनाएं- हार्टिकल्चर टैक्नौलाजी मिशन, परम्परागत कृषि विकास योजना आदि हैं जिनके अन्तर्गत कृषकों को अदरक बीज उत्पादन हेतु सहायता दी जा सकती है।
किन्तु उद्यान विभाग की रुचि अदरक बीज बाहर के राज्यों से ही खरीदने में रहती है। राज्य बनने पर आस जगी थी कि विकास योजनायें राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार कृषकों के हित में बनेंगी किन्तु दुर्भाग्य से राज्य को हिमाचल प्रदेश की तरह डा० परमार जैसा सक्षम व अनुभवी नेतृत्व नहीं मिला जिसका प्रशासकों ने खूब फायदा उठाया, योजनाएं वैसे ही चल रही है जैसे उतर प्रदेश के समय में चल रही थी।
विभाग योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए कार्ययोजना तैयार करता है, कार्ययोजना में उन्हीं मदों में अधिक धनराशि रखी जाती है जिसमें आसानी से संगठित/संस्थागत भ्रष्टाचार किया जा सके। योजनाओं से केवल कर्मचारियों अधिकारियों एवं सामान आपूर्ति करने वाले दलालों का ही आर्थिक लाभ पहुंच रहा है।
यदि विभाग को/शासन को सीधे कोई सुझाव/शिकायत भेजी जाती है तो कोई जवाब नहीं मिलता। माननीय प्रधानमंत्री जी/माननीय मुख्यमंत्री जी के समाधान पोर्टल पर सुझाव शिकायत अपलोड करने पर शिकायत शासन से संबंधित विभाग के निदेशक को जाती है वहां से जिला स्तरीय अधिकारियों को वहां से फील्ड स्टाफ को अन्त में जबाव मिलता है कि किसी भी कृषक द्वारा कार्यालय में कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं है। सभी योजनाएं पारदर्शी ठंग से चल रही है।
उच्च स्तर पर योजनाओं का मूल्यांकन सिर्फ इस आधार पर होता है कि विभाग को कितना बजट आवंटित हुआ और अब तक कितना खर्च हुआ। राज्य में कोई ऐसा सक्षम और ईमानदार सिस्टम नहीं दिखाई देता जो धरातल पर योजनाओं का ईमानदारी से मूल्यांकन कर योजनाओं में सुधार ला सके।
योजनाओं में जब तक कृषकों के हित में सुधार नहीं किया जाता व क्रियावयन में पारदर्शिता नहीं लाई जाती कृषकों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी सोचना बेमानी है। योजनाओं पर प्रति वर्ष हजारों करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी उद्यान विभाग राज्य बनने के 19 बर्षौ बाद भी पहाड़ी क्षेत्रों के अदरक उत्पादकों को समय पर शुद्ध अदर बीज उपलब्ध नहीं करा पा रहा है।
अदरक उत्पादकों को सलाह है कि अदरक की भरपूर उपज के लिए, स्वयं की उत्पादित अदरक का बीज हेतु भंडारण।
उद्यान विभाग द्वारा, कृषकों को समय पर योजनाओं में मांग के अनुसार अदरक बीज नहीं मिल पाता, साथ ही विभाग द्वारा आपूर्ति अदरक बीज की गुणवत्ता पर कई बार प्रश्नचिन्ह भी लगें हैं।
अदरक उत्पादकों का कहना है कि उद्यान विभाग व अन्य संस्थाओं से प्राप्त अदरक बीज से कई तरह की बीमारियों खेतों में आने का डर रहता है। प्रगतिशील अदरक उत्पादक स्वयं अपनी अदरक उपज से अदरक को बीज हेतु भंडारित करते हैं। इसलिए आवश्यक है कि अधिक अदरक उत्पादन हेतु कृषक अपनी स्वस्थ उपज से ही अदरक बीज का भंडारण करें।
अदरक बीज का भंडारण कैसे करें-
1. अदरक को बीज हेतु लम्बे समय याने तीन माह से अधिक समय तक भंडारण करना होता है इसलिए आवश्यक है भंडारण सही विधि से करें जिससे अदरक सड़े नहीं।
2. जिस खेत में अदरक की फसल पर बीमारियों लगी हों उस खेत के अदरक को बीज के लिए भंडारण न करें।
3. अच्छे सुडौल प्रकंदों का चयन करके उन्हें अलग से रखें तथा अच्छी तरह से छाया में सुखा लें। प्रकन्दों का भंडारण सूखे, ऊंचे एवं छाया दार स्थान पर एक उचित वायु संचार युक्त गड्ढों में करना चाहिए। भंडारण से पहले गड्ढे को भलीभांति सफाई कर लें तथा उसे एक सप्ताह तक धूप में खुला छोड़ दें जिससे गड्ढे में नमी न रहे। भंडारण करने से पूर्व गड्ढे को एक भाग फौरमिलीन तथा 8 भाग पानी का घोल बनाकर उपचारित कर दें, गड्ढे के अन्दर घास फूस जलाकर भी गड्ढे को उपचारित किया जा सकता है। भंडारण करने से पूर्व प्रकन्दों को कार्बेन्डाजिम (100 ग्राम) + मैन्कोजैव (250 ग्राम) को 100 लीटर पानी में घोल तैयार कर लें इस घोल में 70-80 किलोग्राम अदरक को एक घंटे तक उपचारित करें।
यदि रासायनिक दवायें उपलब्ध नहीं हो पा रही है तो ट्राइकोडर्मा कल्चर से अदरक को छाया में उपचारित करें तेज धूप में ट्राइकोडर्मा जीवाणु मर सकते हैं। अदरक पर हल्का सा पानी छिड़क कर, दस ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो अदरक बीज की दर से (याने एक कुन्तल बीज हेतु एक किलोग्राम ट्राइकोडर्मा ) उपचारित करें, जिससे ट्राइकोड्रमा की पर्त अदरक कन्दो पर बन जाय।
उपचारित अदरक को छाया में भली भांति सुखायें। बीज भंडारण से पूर्व गड्ढे में सबसे नीचे एक परत रेत या बुरादा या धान की पुलाव बिछा दें फिर उपचारित बीज को भरें। हवा के संचार के लिये छिद्र युक्त प्लास्टिक के पाईप को गड्ढे के बीच में डालें। गड्ढे में प्रकन्दों को पूरी तरह से न भरें 1/4 भाग खाली रखें। ऊपर के खाली भाग में सूखी घास रखें तथा गड्ढे को ऊपर से लकड़ी के तख्ते से ढक दें। तख्तों किनारों को मिट्टी से पोत दें। हवा के आवागमन हेतु यदि छिद्र युक्त पौलीथीन पाइप की व्यवस्था नहीं हो पा रही है तो ऊपर से बिछे तखत्तो के बीच में हवा के आवगमन हेतु जगह छोड़ दें।
सही भंडारण के लिए खत्तियों को अच्छी तरह ढकना जरूरी है इसके लिए पत्तियों व घास का रिंगाल/ बांस के साथ कच्चा ढांचा बनाया जा सकता है जिससे वर्षा का पानी खत्तियों में जाने से रोका जा सके।
हिहरी जनपद के आगरा खाल में अदरक उत्पादक खत्तियों में बीज हेतु अदरक भरने के बाद ऊपर से मालू के पत्तों से बने विशेष आवरण जिसे स्थानीय भाषा में पितलोट कहते हैं, से ढक देते हैं जिससे वर्षा का पानी अन्दर नहीं जा पाता साथ ही हवा का आवागमन भी बना रहता है जिससे अदरक बीज सुरक्षित रहता है।