राजीव लोचन साह
18वीं लोकसभा के निर्वाचन में बमुश्किल नौ महीने रहे हैं। इसीलिये देश की राजनीति में गतिविधियाँ बहुत तेज हो गई हैं। एक ताजा घटना में केन्द्र सरकार ने घरेलू गैस सिलिण्डरों की कीमत में एकमुश्त दो सौ रुपये की कटौती कर दी है। निश्चित रूप से इसका लाभ देश के करोड़ों परिवारों को मिलेगा। राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे प्रदेशों में, जहाँ इसी साल के अन्त तक विधान सभा चुनाव होने हैं, लोक लुभावन घोषणाओं की झड़ी लग गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, जिनका प्रिय शगल ही चुनाव लड़ना, विदेश यात्रायें करना और उद्घाटन करना है, और ज्यादा सक्रिय हो गये हैं। 20 मई 2014 को प्रधानमंत्री के रूप में पहली बार संसद में प्रवेश करते वक्त संसद की देहरी पर मत्था टेकने वाले नरेन्द्र मोदी को अब संसदीय कार्रवाइयों से कोई लगाव नहीं रह गया है। मगर पिछले मानसून सत्र में उन्हें विपक्ष द्वारा लाये गये अविश्वास प्रस्ताव का जवाब देने के लिये संसद में आना ही पड़ा तो उन्होंने इस मौके का उपयोग मणिपुर का मुख्य विषय छोड़ कर अपनी उपलब्धियाँ गिनाने में किया। 15 अगस्त के लालकिले के रस्मी भाषण में भी उन्होंने ‘अगले साल फिर लालकिले पर लौट कर आने’ का विश्वास व्यक्त किया तो 23 अगस्त को चन्द्रयान 3 के चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की ऐतिहासिक घटना का भी इस्तेमाल अपनी छवि चमकाने के लिये किया। उधर दो दर्जन से अधिक विपक्षी दलों ने ‘इंडिया’ नाम से एक चुनावी गठबंधन तैयार कर भाजपा सरकार को चुनौती देने की तैयारी की है। इनमें से बहुत सारे दल एक दूसरे को फूटी आँखों नहीं सुहाते। मगर उन्हें मालूम है कि और कोई चारा नहीं है। नरेन्द्र मोदी तीसरी बार सत्ता में आये तो ई.डी. जैसी संस्थाओं के सहारे उन्हें नेस्तनाबूत कर देंगे। राजनीति के निष्पक्ष प्रेक्षकों का मानना है कि नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता में पिछले कुछ समय में निश्चित रूप से कमी आयी है। मगर अभी भी मोदी के प्रशंसकों और अंधभक्तों की संख्या इतनी अधिक है कि उनकी गद्दी को कोई खतरा फिलहाल नहीं दिखाई देता।