अनसूया प्रसाद मलासी
भगीरथ प्रयासों से धरती पर उतारी गई गंगा मां विज्ञान के हाथों कितनी निरीह और विवश हो गई है, इसका अंदाजा टिहरी में बनी 5 किलोमीटर लंबी झील और गंगा की धारा उलटी दिशा में बहने से लगाया जा सकता है। गंगा को पतित पावनी मानने वाले करोड़ों सनातन धर्मावलंबी लोग इस अप्राकृतिक कार्य से आहत हुए हैं, वहीं करीब एक लाख लोग अपने घरों, गांवों, मंदिर, बस्तियां और अतीत की सभी यादों, ऐतिहासिक टिहरी रियासत की विरासत और भागीरथी भिलंगना के ऐतिहासिक संगम व राज दरबार के जलाशय में डूबने से गमगीन हैं।
5 दिसंबर 2001 बुधवार की रात्रि 8 बजे टिहरी बांध के सुरंग T-3 व T-4 पर अंतिम चैनल (गेट) गिरने से सन् 1815 में बसाये गये टिहरी रियासत के इस नगर के डूबने की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
टिहरी बांध की झील बनने की प्रक्रिया के बाद ‘डूबते शहर के उठते सवालों’ को तलाशने के लिए रुद्रप्रयाग से पत्रकारों का एक दल उस समय टिहरी गया था। इसमें सर्वश्री अनसूया प्रसाद मलासी, आशा प्रसाद सेमवाल, ओमप्रकाश बहुगुणा, सुधीर बर्तवाल, संतोष बेंजवाल और रमेश नौटियाल शामिल थे। उस दिन तक भागीरथी नदी पर टिहरी शहर को जोड़ने वाला पुल डूबने ही वाला था और इस पर यातायात बंद कर दिया गया था। तब हमने पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा जी से भी मुलाकात कर उनके दिव्य दर्शन किये थे।
जिला परिषद के पूर्व प्रशासनिक अधिकारी बचन सिंह नेगी जी के भागीरथी के बाएं तट पर स्थित पुराने मकान में श्री सुंदरलाल बहुगुणा अपनी पत्नी श्रीमती बिमला बहुगुणा के साथ रह रहे हैं। अस्त-व्यस्त मकान असुरक्षित जैसा। वहाँ उन्हें फोन की सुविधा तक उपलब्ध नहीं है। प्रस्तुत है उनके साथ हुई बातचीत के अंश :-
प्रश्न- भागीरथी तो रुक गई। अब क्या योजना है ?
उ.- देखिए हमारा महत्व हिमालय और गंगा की खातिर है। पहाड़ में बाघ की तरह बाँध बन गये। ठोस हिमालयी नीति बने, ताकि प्राकृतिक सौंदर्य कायम रहे। इसे टूरिस्ट प्लेस न बनाएं।
जनवरी 2002 में मेरे जीवन के 75 वर्ष पूरे हो गए। जीवन के 72 वर्ष यहीं पहाड़ में रहा और सार्वजनिक जीवन के 62 वर्ष पूरे हो गए हैं। पहले लोग 75 साल बाद मुँह नहीं दिखाते थे, लेकिन यहां उलटी गंगा बह रही है। लोगों का मुँह बाहर की ओर (पलायनवादी प्रवृत्ति) है। मेरी पीठ मैदान की ओर है क्योंकि दक्षिण यमराज का निवास है, इसलिए मैं अपना मुख उत्तर की ओर रखता हूँ। अभी जो जीवन शेष बचा है, उसको लोगों की भलाई, उनमें जनचेतना विकसित करने और अधिकारों के लिए लड़ने की प्रवृत्ति पैदा करने में लगाऊंगा। आजादी की लड़ाई में मैं कर्मभूमि अखबार से जुड़ा था। आप युवा लोग भी ऐसा ही कुछ करने की तो ठानिये!
प्रश्न- सिर्फ दाढ़ी-मूँछ या सिर के बाल बनाने तक ही आपका बाँध विरोध है या कोई इसके पीछे कोई अन्य कारण भी हैं?
उ.- बाल उतारना तो सिर्फ विरोध प्रदर्शन का एक विशुद्ध पहाड़ी तरीका था। गंगा को हम सब माँ मानकर आए हैं और मां की मृत्यु हो गई, तो अपना धर्म निभाना ही था। मुझे आश्चर्य है कि और ज्यादा लोगों ने क्यों नहीं ऐसा किया? हम तो धार की जोन (चंद्रमा) हैं। अब जवान लोग देखें कि क्या गलत है और क्या सही!
प्रश्न- नए उत्तराखंड राज्य में आप क्या उम्मीद करते हैं?
उ.- मेरा तो साफ मानना है कि उत्तराखंड राज्य तो नीचे है। वह उकाळ (चढ़ाई) नहीं चढ़ सकता। (हँसते हुए)… ऐसी हालत में तो पलायन होगा ही। ऊपर की बड़ी पार्टियों के भरोसे ना रहें। क्षेत्रीय पार्टी बनाओ। तुम जैसे नौजवान तुरुप के इक्के बनें। चुनाव में 35 से ऊपर के लोगों को मत आने दो। जो न शोषण करें, न शोषण करायें। अस्तित्व खतरे में है। युवा सरकार में आएं, तो परिवर्तन संभव है।
प्र.- युवा वर्ग को आपका कोई संदेश?
उ.- युवावस्था जीवन की बसंत ऋतु है। हमारा इस्तेमाल डिक्शनरी की तरह करें, टेस्ट बुक की तरह नहीं। मेरा एक सूत्र आप याद रखें… धार ऐंच पाणीं, ढाळ पर डाळा।बिजली बणावा, खाळा-खाळा। युवक थ्री एच- (हैंड, हैड एंड हार्ट) हाथ, सिर और हृदय का सही इस्तेमाल करें। हैंड निर्माण के लिए, हैड सृजनात्मक और हार्ट करुणा पैदा करने के लिए कार्य करें, तभी नवोदय उत्तराखंड राज्य आदर्श राज्य बन सकेगा।
फोटो इंटरनेट से साभार