राजीव लोचन साह
वर्ष 2024 के पहले महीने का उत्तरार्द्ध घटनापूर्ण रहा। अयोध्या में रामलला के मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम 22 जनवरी को भव्य रूप से सम्पन्न हो गया। कहा जा रहा था कि पत्नी के साथ न होने के कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आयोजन के प्रतीकात्मक यजमान होंगे और मुख्य यजमान कोई डॉ. अनिल मिश्रा होंगे। मगर अनिल मिश्रा तो कहीं दिखाई नहीं दिये और पूरे वक्त टी.वी. पर नरेन्द्र मोदी ही छाये रहे। इससे मोदी के आलोचकों के इस आरोप को बल मिला कि शंकराचार्यों की आपत्तियों को भी दरकिनार कर वे इस आयोजन के बहाने आगामी लोकसभा चुनावों के लिये अपनी छवि मजबूत करना चाहते हैं। बहरहाल सिर्फ भाजपा के समर्थकों में ही नहीं, अधिकांश हिन्दू मतावलम्बियों में इस समारोह को लेकर बहुत उल्लास दिखाई दिया। हिन्दीभाषी प्रदेशों में भगवा झंडों की भरमार हो गई और खूब पटाखे छूटे। प्रधानमंत्री ने इस घटना को नये कालचक्र का उदय बताया। अगले ही दिन केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने प्रस्ताव पारित किया कि 1947 में देश का सिर्फ शरीर स्वतंत्र हुआ था और 22 जनवरी को इसमें आत्मा की भी प्राण प्रतिष्ठा हो गई है। देश की आत्मा वास्तव में संविधान में होनी चाहिये, लेकिन चार दिन बाद होने वाला इस बार का गणतंत्र दिवस राम मन्दिर की छाया में छिपा रहा। समस्त सरकारी आयोजन एक तरह की औपचारिकता में, बगैर किसी गर्मजोशी में सम्पन्न हुए। लेकिन इसके बाद बिहार में जो कुछ घटा, उससे साबित हुआ कि रामलला के अपने मन्दिर में प्रतिष्ठित हो जाने के बाद भी राजनीति में रामराज्य जैसी कोई नैतिकता प्रतिष्ठापित नहीं हुई। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार 19 साल में पाँचवी बार पलटी मार कर एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री बन गये। इस तरह महज छः महीने पहले तक एक दूसरे को गाली देने वाले नीतिश कुमार और भाजपा के नेता एक बार फिर साथ आ गये। राम मन्दिर के साथ रामराज्य आने का सपना देखने वाले धर्मप्राण लोग इस घटना को देख कर सदमे में आ गये हैं।
One Comment
b.d.paliwal@gmail.com
एकदम सटीक एवम सत्यता से परिपूर्ण लेख है।।